आया सावन झूम के…

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ओम प्रकाश उनियाल

‘सावन का महीना पवन करे शोर, जियरा झूमे ऐसे जैसे वन मा नाचे मोर’। सन् 1967 के दौर की मिलन फिल्म का यह गाना तब बहुत प्रचलित हुआ था। हरेक की जुबान पर छाया हुआ रहता था यह गाना।

जी हां, इस गाने का उल्लेख इसलिए किया जा रहा है कि सावन मास शुरु हो चुका है रिमझिम फुहारों के साथ। इस माह को विभिन्न प्रकार से महत्वपूर्ण माना गया है। धरती भी हरियाली की चादर ओढ़ने लगी है। बारिश धरती की प्यास बुझा रही है। शांत बहने वाली नदियां भी कल्लोल करने लगी हैं।

वृक्षों की शाखाओं पर झूले पड़ गए हैं। सावन के मधुर गीत गांव-गांव में गूंजने लगे हैं। आसमान में छाए बादल, पहाड़ों पर लिपटती कुएड़ी(सफेद धुंध)। कुल मिलाकर प्रकृति का वास्तविक रूप देखना हो तो सावन मास में देखा जा सकता है।

बच्चों को बारिश की बूंदों संग खेलते देखना, मिट्टी की सौंधी-सौंधी खुशबू का अहसास मन को सुकून देने वाली अनुभूति होती है। खेती व बागवानी के लिए भी यह माह फलीभूत साबित होता है। खेतों में धान की रोपाई की जाती है। तरह-तरह की सब्जियों और फलों से बेलें व पेड़ लकदक होते हैं।

हिन्दू धर्म में पौराणिक महत्व भी है इस मास का। भगवान शिव का माह माना जाता है। भगवान शिव की आराधना सोमवार के व्रत रख कर की जाती है। कांवड़-यात्रा की शुरुआत भी इसी माह से होती है। जो कि शिवरात्रि तक चलती है।

भोले के भक्त कंधों पर कांवड़ रखकर गंगा व अन्य प्रमुख नदियों से जल लाते हैं और स्थानीय शिव मंदिरों में जलाभिषेक करते हैं। हर तरफ ‘बम-बम भोले, हर-हर भोले’ के जयकारे गूंजते रहते हैं।

याद आने लगता है ‘आया सावन झूम के’ फिल्म का वह गाना, ‘ बदरा हाय… बदरा छाए ….कि झूले पड़ गए, हाय कि ….. मेले लग गए ओ मच गयी धूम रे, आया सावन झूम के……।


¤  प्रकाशन परिचय  ¤

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ओम प्रकाश उनियाल

लेखक एवं स्वतंत्र पत्रकार

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कारगी ग्रांट, देहरादून (उत्तराखण्ड) | Mob : +91-9760204664

Publisher »
देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड)

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