बाल कविता : चोरी तो चोरी है

राज शेखर भट्ट
एक दिन बिल्ली मौसी ने, उड़न खटोला चलाया अपना।
चूहा चाचा साथ में बैठे, नयनों में सजाये सुंदर सपना।
दोनों एक दूजे के संग, गप्पों में गप्पे हांक रहे।
नभ में उड़ते चील ताऊजी, उन दोनों को झांक रहे।
जंगल में पहुंचे अब दोनों, उड़न खटोला रोक दिया।
शरे राम दादा के संग, लोमड़ी दीदी का दरस किया।
सबने सबके हाल भी पूछे, बिस्किट के संग चाय पिया।
भालू अंकल भी आ बैठे, दोनों ने था नमस्कार किया।
जंगल में अब सबने जाना, चूहा-बिल्ली आये हैं।
सब आए और सबने पूछा, आप यहां क्यों आए हैं।
बिल्ली बोली हम दोनों की शादी है, न्यौता देने आए हैं।
आप सभी बुजुर्गों का, आशीर्वाद लेने आए हैं।
बस इतना ही बोला बिल्ली ने, पीठ पे झाडू पड़ गया।
रसोई में जाकर की दूध की चोरी, सपना भी मंहगा पड़ गया।
केवल कल्पनाओं के भरोसे, मानव की दुनिया कोरी है।
छोटी हो या बड़ी हो ‘राज’, चोरी तो बच्चों चोरी है।
¤ प्रकाशन परिचय ¤
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