मेष संक्रांति: दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया का सांस्कृतिक नववर्ष

सत्येन्द्र कुमार पाठक
मेष संक्रांति, भारतीय ज्योतिष और सनातन धर्म में एक महत्वपूर्ण खगोलीय घटना है, जो सूर्य के मेष राशि में प्रवेश को चिह्नित करती है। यह न केवल एक विशिष्ट सौर गति का प्रतिनिधित्व करती है, बल्कि दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया के विभिन्न क्षेत्रों में पारंपरिक सौर नववर्ष के रूप में भी मनाई जाती है। असम, ओडिशा, पंजाब, केरल, तमिलनाडु और बंगाल जैसे भारतीय राज्यों के साथ-साथ थाईलैंड, लाओस, कंबोडिया, म्यांमार और श्रीलंका जैसे पड़ोसी देशों में इस दिन का सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व अत्यधिक है। खगोलीय आधार और ज्योतिषीय महत्व है। मेष संक्रांति भारतीय ज्योतिष में बारह संक्रांतियों में से एक है, जिनमें से प्रत्येक सूर्य के एक राशि से दूसरी राशि में गोचर को दर्शाती है। ‘संक्रांति’ शब्द का अर्थ ही है ‘स्थानांतरण’ या ‘प्रवेश’, और ‘मेष’ राशि चक्र की पहली राशि है। इस प्रकार, मेष संक्रांति उस क्षण को इंगित करती है जब सूर्य अपनी वार्षिक यात्रा में मीन राशि से मेष राशि में प्रवेश करता है। प्राचीन संस्कृत ग्रंथों, विशेष रूप से ज्योतिष के वेदांग और सूर्य सिद्धांत जैसे खगोलीय ग्रंथों में मेष संक्रांति का विस्तृत उल्लेख मिलता है। ये ग्रंथ समय की गणना और खगोलीय घटनाओं के महत्व को समझने के लिए आधार प्रदान करते हैं।
मेष संक्रांति को ऋतु परिवर्तन के प्रतीक के रूप में भी देखा जाता है, क्योंकि यह वसंत ऋतु के आगमन और ग्रीष्म ऋतु की शुरुआत का संकेत देता है। मेष संक्रांति को नदी, सरोवरों, कूपों के जल को पवित्र घड़ों में रख कर दान एवं पक्षियों, पूर्वजों को अर्पित करते हैं। श्रद्धालुओं द्वारा स्नान कर चने, जौ का सतुआन, आम, गुड़, जल दान कर अपने को तृप्त एवं पूर्वजों को तृप्त करते हैं। भगवान भास्कर को जल अर्पित करते हैं। गंगा जल, गोदावरी, यमुना, नर्मदा, सोन, ब्रह्मपुत्र, पुनपुन, क्षिप्रा आदि नदियों, कूपों, तलाओं के जल को निवास स्थल पर जल से पवित्र करते हैं। क्षेत्रीय पंचांगों में मेष संक्रांति का महत्व है। दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया के चंद्र-सौर पंचांगों में मेष संक्रांति का विशेष महत्व है। जबकि कई क्षेत्रों में चंद्र कैलेंडर के अनुसार नए साल की शुरुआत चैत्र मास से होती है, सौर चक्र वर्ष मेष संक्रांति से आरंभ होता है। विभिन्न क्षेत्रीय पंचांगों में मेष संक्रांति का महत्व है।
असम: असम में, मेष संक्रांति को बोहाग बिहू या रोंगाली बिहू के रूप में मनाया जाता है। यह असमिया नववर्ष का प्रतीक है और सात दिनों तक चलने वाला एक जीवंत त्योहार है, जिसमें पारंपरिक नृत्य, संगीत, और विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
ओडिशा: ओडिशा में इसे पना संक्रांति या महा विषुव संक्रांति के रूप में मनाया जाता है। इस दिन, लोग ‘पना’ नामक एक विशेष पेय का सेवन करते हैं और नए साल की शुरुआत का स्वागत करते हैं। यह दिन हनुमान जयंती के रूप में भी मनाया जाता है।
पंजाब: पंजाब में मेष संक्रांति को बैसाखी के रूप में मनाया जाता है। यह सिखों के लिए एक महत्वपूर्ण त्योहार है, जो खालसा पंथ की स्थापना की याद दिलाता है। इस दिन, लोग गुरुद्वारों में जाते हैं, विशेष प्रार्थनाएं करते हैं और पारंपरिक लोक नृत्य भांगड़ा और गिद्दा करते हैं। यह फसल कटाई का त्योहार भी है।
केरल: केरल में मेष संक्रांति को विशु के रूप में मनाया जाता है। यह मलयाली नववर्ष है। इस दिन, ‘विशुक्कणी’ नामक एक विशेष व्यवस्था देखी जाती है, जिसमें शुभ वस्तुएं जैसे फल, सब्जियां, सोना और धार्मिक चित्र शामिल होते हैं। लोग नए साल के लिए समृद्धि और सौभाग्य की कामना करते हैं।
तमिलनाडु: तमिलनाडु में मेष संक्रांति को पुथांडु के रूप में मनाया जाता है। यह तमिल नववर्ष है। इस दिन, लोग अपने घरों को सजाते हैं, नए कपड़े पहनते हैं और विशेष व्यंजन बनाते हैं। ‘पंचांगम’ पढ़ा जाता है, जो नए साल के लिए ज्योतिषीय भविष्यवाणियां बताता है।
बंगाल: बंगाल में मेष संक्रांति को पोइला बोइशाख के रूप में मनाया जाता है। यह बंगाली नववर्ष है और यह एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक उत्सव है। इस दिन, नए व्यापारिक खाते खोले जाते हैं (‘हाल खाता’), मेले लगते हैं और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। बिहार में सतूणी, सतुआन, सतुआनी कहा जाता है।
दक्षिण पूर्व एशिया में सोंगक्रान मनाया जाता है
भारत के बाहर, दक्षिण पूर्व एशियाई देशों थाईलैंड, लाओस, कंबोडिया, म्यांमार और श्रीलंका में भी मेष संक्रांति के आसपास बौद्ध पंचांग आधारित नववर्ष के त्योहार मनाए जाते हैं, जिन्हे सामूहिक रूप से सोंगक्रान कहा जाता है। इन त्योहारों में पानी की लड़ाई एक महत्वपूर्ण और मजेदार परंपरा है, जो शुद्धि और नए साल की शुरुआत का प्रतीक है।
थाईलैंड: थाईलैंड में सोंगक्रान एक राष्ट्रीय अवकाश है और इसे बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। लोग एक-दूसरे पर पानी डालते हैं, मंदिरों में जाते हैं और पारंपरिक अनुष्ठान करते हैं।
लाओस: लाओ नव वर्ष को पि माई लाओ कहा जाता है और यह थाईलैंड के सोंगक्रान के समान ही मनाया जाता है, जिसमें पानी की लड़ाई और धार्मिक अनुष्ठान शामिल हैं।
कंबोडिया: कंबोडिया में खमेर नव वर्ष ‘चौल छनाम थ्मे’ के रूप में मनाया जाता है और इसमें तीन दिन तक चलने वाले उत्सव शामिल होते हैं, जिसमें पानी डालना, चेहरे पर पाउडर लगाना और पारंपरिक नृत्य शामिल हैं।
म्यांमार: म्यांमार में थिंगयान नामक नववर्ष उत्सव भी पानी के त्योहार के रूप में मनाया जाता है और यह बुराई को धोने और नए साल का स्वागत करने का प्रतीक है।
श्रीलंका: श्रीलंका में सिंहली और तमिल नव वर्ष ‘अलुथ अवरुद्धा’ के रूप में मनाया जाता है और यह मेष संक्रांति के आसपास ही होता है। इसमें विभिन्न पारंपरिक खेल, अनुष्ठान और सामाजिक गतिविधियां शामिल होती हैं।
सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व में मेष संक्रांति न केवल एक खगोलीय घटना है, बल्कि यह विभिन्न समुदायों के लिए सामाजिक और सांस्कृतिक एकता का भी प्रतीक है। यह लोगों को एक साथ आने, खुशियां साझा करने और अपनी परंपराओं और रीति-रिवाजों को मनाने का अवसर प्रदान करता है। यह त्योहार कृषि चक्र से भी जुड़ा हुआ है, खासकर उन क्षेत्रों में जहां यह फसल कटाई के समय पड़ता है। मेष संक्रांति भारतीय ज्योतिष और सनातन धर्म में एक महत्वपूर्ण दिन है, जो सूर्य के मेष राशि में प्रवेश को दर्शाता है। यह दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया के कई क्षेत्रों में सौर नववर्ष के रूप में मनाया जाता है और इसके साथ जुड़े विभिन्न सांस्कृतिक और पारंपरिक उत्सव इस क्षेत्र की समृद्ध और विविध विरासत को दर्शाते हैं। यह खगोलीय घटना न केवल समय के चक्र को चिह्नित करती है, बल्कि लोगों के बीच खुशी, सद्भाव और नए आरंभ की भावना का भी संचार करती है।