सम्पादक के नाम पत्र : धरती के देवता या हैवान
सम्पादक के नाम पत्र : धरती के देवता या हैवान… कहीं जिंदे व्यक्ति का कागजों में पोस्ट मार्टम हो रहा हैं और जिंदे को मृत बताया जा रहा और अंतिम संस्कार के समय उसके शरीर में हरकत हो रही हैं। तो कहीं आपरेशन के दौरान महिला के पेट में तौलिया ही छोडा जा रहा हैं। क्या ये धरती के देवता हैं या हैवान। #सुनील कुमार माथुर, जोधपुर, राजस्थान
डाक्टरों को धरती के देवता कहा जाता हैं जिसका कार्य रोगी के प्राणों की रक्षा करना होता हैं। जो एक तरह का समाज सेवा का कार्य हैं लेकिन आज डाक्टरों ने उपचार को व्यवसाय बना लिया है। यहीं वजह है कि वे अस्पतालों में भर्ती रोगी की सेवा कम करते हैं और धन कमाने के चक्कर में अनावश्यक जांचे कराते हैं। अनावश्यक दवाइयां लिखते हैं और मोटा कमीशन कमा कर माला माल हो रहें हैं।
चूंकि रियायती दर पर सरकार इन्हें जमीने दे देती है और दो तीन साल में इनका कारोबार इतना बढ जाता है कि एक मंजिला इमारत कई मंजिलों की बन जाती हैं व अनेक जगह इनकी शाखाएं खुल जाती हैं, चूंकि जमीन देने के बाद भी इन पर सरकारी नियंत्रण नहीं है।
सरकारी अस्पतालों का तो भगवान ही मालिक है। अस्पताल सरकारी हो या निजी। चंद अस्पतालों को छोड कर अधिकांश के हालात किसी से भी छिपे नहीं है।
कहीं जिंदे व्यक्ति का कागजों में पोस्ट मार्टम हो रहा हैं और जिंदे को मृत बताया जा रहा और अंतिम संस्कार के समय उसके शरीर में हरकत हो रही हैं। तो कहीं आपरेशन के दौरान महिला के पेट में तौलिया ही छोडा जा रहा हैं। क्या ये धरती के देवता हैं या हैवान। सरकार इन्हें पढाते समय इनकी शिक्षा पर लाखों रुपए खर्च करती है जिसका यह नतीजा। अगर डाक्टर ही लापहरवाही बरतने लगे तो जनता का इन धरती के देवताओं पर से विश्वास उठ जाएगा.
हां यह सच है कि सभी डाक्टर ऐसे लापहर वाह नहीं है लेकिन लापहरवाही बरतने वाले डाक्टरों का चिकित्सा क्षेत्र से बहिष्कार करना चाहिए। अन्यथा ऐसे लापहर वाह डाक्टर समूचे चिकित्सा जगत को बदनाम कर देंगे। सरकार को भी चाहिए कि वो दोषी डाक्टरों की डिग्री तत्काल रद्द कर उन्हें सख्त से सख्त सजा दे ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो।