कविता : जिंदगी की धूप
कविता : जिंदगी की धूप… तीखे तेवर के साथ अक्सर पूछती रहती किसका पता ठिकाना कोई बना फिरता आकाश का दीवाना गन्नों के खेत के पास आकर तुम्हारी राह देखते अब थककर चली जाती हंसती धूप तुम्हारे साथ प्यार की गलियों में घूमते अक्सर चले जाते… #राजीव कुमार झा
तुम्हारे साथ मन के
खूबसूरत जंगल में
दिसंबर के दिन
दुपहरी में बहारों के फूल
महकाते
यादों में हम तुम्हें
रोज दिल में बसाते
गीत गाते
अलाव जलाकर
तुम्हें रातभर बुलाते
यह चांद का आंगन
कुहासे में लिपटी हवा में
खोया हुआ जीवन
सुबह की मुस्कान
धूप मुंडेरों पर आकर
अब सुना रही जिंदगी की
तान
प्यार की बहती नदी
गुनगुनाती हवा में पसरी
कितनी दूर तक अब तुम
मौसम की करवट में
यह जीवन ओस से
भीगा
हरा-भरा जंगल सरीखा
यहां आकर
तीखे तेवर के साथ
अक्सर पूछती रहती
किसका पता ठिकाना
कोई बना फिरता
आकाश का दीवाना
गन्नों के खेत के पास
आकर
तुम्हारी राह देखते
अब थककर चली जाती
हंसती धूप
तुम्हारे साथ प्यार की
गलियों में घूमते
अक्सर चले जाते
अब समंदर के किनारे
किसी थके शहर से दूर