स्त्री को स्त्री ही रहने दो पुस्तक की समीक्षा
नेहा शर्मा, दुबई, यू.ए.ई.
एम के कागदाना दीदी की पुस्तक हाथ में लेकर जितनी खुशी हुई वह शब्दों में बयान नही कर सकती। भारत से पुस्तक दुबई तक आना मेरे लिए किसी बड़े चैलेंज से कम नही था। जब भी मैं भारत से पुस्तक लाती तो डर रहता कि कोई पुस्तक कस्टम में बाहर न कर दे। पर सच में जब मैने यह पुस्तक मंगवाई और उसे हाथ में महसूस किया तो बेहद खुशी हुई। मैंने इसका चित्र बस दीदी को भेजा और कहा कि जल्दी ही समीक्षा के साथ प्रस्तुत होउंगी तो लीजिये पुस्तक की समीक्षा के साथ मैं यहां प्रस्तुत हूँ।
सच कहूं तो पुस्तक की बहुत सी रचनाओं ने मुझे बहुत सी यादों से जोड़ दिया। जैसे पुस्तक में एक रचना है बेटी का वजूद जिसे पढ़कर मुझे जे एस नामदेव अंकल जी रचना अजन्मी लड़की की पुकार याद आगयी वह पढ़कर भी मेरे ऐसे ही रोंगटे खड़े हो गए थे।
पुस्तक की शुरू से यदि बात करूं तो स्त्री को जितना जाए कम ही लगता है और इसका कवर देखकर तो स्त्री को जानने की इच्छा और बढ़ जाती है। जैसे जैसे हम पुस्तक के अंदर प्रवेश करते जाते हैं हम खुद को खुद के उतना ही करीब पाते हैं।
एम के कागदाना जी ने पुस्तक अपने हमसफ़र सरजीत जी को समर्पित की है जिन्होंने लेखन में प्रतिपल उनका साथ दिया। साथ ही नफे जी ने बड़े सुन्दर शब्दों में लेखिका को बधाई प्रेषित की है। अब बढ़ते हैं रचनाओं की ओर, पुस्तक में कुल 86 रचनाएँ हैं। यकीन।मानिए आप पुस्तक एक बार पढ़ने बैठेंगे तो पूरी किये बिना नही उठ पाएंगे।
रचना खिड़की आपके प्रेम से पगी आपकी ही भावनाएं है जो यहां से होकर वहां तक पहुंचती है। कन्यादान, दुखी नारी अधिकतर रचनाओं में स्त्री के हर उस हक की लड़ाई की कहानी है जो कहने को तो आजादी है पर सच कहें तो हमारे इर्द गिर्द एक फंदा बनाये हुए है हमें जकड़े हुए है। बेटियां कहीं हँसती हैं तो कहीं रोती हैं। बस एक ही बात हर बार चींख चींख कर कहती है कि स्त्री को स्त्री ही रहने दो।
त्योहार किसी भी धर्म का हो, मनाओ नही तो निंदा भी मत करो, इन अंतिम दो पंक्तियों में पूरी रचना का सार छुपा है। पुस्तक पढ़ते वक्त समझ आता है कि लेखिका ने अनगिनत भाबनाओं से गुजरते हुए कितने नाजुक विषयों को पुस्तक में समाहित कर दिया है। ऊंच नीच, अंग्रेजीकरण में भाषा के प्रति प्रेम, बचपन लौट आओ न, एकाकीपन नही चाहती, और न जाने कितनी ऐसी रचनाएँ जिससे कोई इस तरह बांध जाता है कि मुक्त होना ही नही चाहेगा।
पुस्तक में प्रकाशित रचनाओं की सबसे अच्छी बात यह है कि सरल लहजा, सरल शब्दावली जो पाठक अक्सर ढूंढते हैं। मैं निसंदेह सभी पाठकों से कहूंगी की पुस्तक मंगाने में देरी न करें क्योंकि इस पुस्तक के माध्यम से आप जीवन को और करीब से महसूस कर पाएंगे। यह पुस्तक आपको भूतकाल के हालात से वर्तमानकाल तक ले जाएगी। साथ ही आपको हर एक उस जगह की सैर कराएगी जहां से आपकी सोच शुरू होती है।
पुस्तक में सभी रचनाएँ एक से बढ़कर एक हैं मैं किसी भी रचना को कमतर नही आंक सकती। मैं सबसे ज्यादा प्रभावित इसकी शब्दावली से हुई हूँ। और सबसे अच्छी बात की प्रत्येक रचना छोटी है इतनी बड़ी नही है कि उसे बीच में रोकना पड़े। यदि आप पढ़ने बैठेंगे तो मेरा दावा है कि आप पूरा करके ही उठेंगे, प्रकाशक ने अपना काम भी बढ़िया किया है।
हार्ड बाउंड की पुस्तक है पेज भी सुंदर है साज सज्जा बढ़िया है। एम के कागदाना दीदी आपको खूब सारी शुभकामनाएं जल्दी ही आपकी अगली पुस्तक हम सभी को पढ़ने को मिले।
पुस्तक का नाम : स्त्री को स्त्री ही रहने दो
लेखिका : एम. के. कागदाना
प्रकाशक : Book rivers | प्रकाशन वर्ष – 2021 | मूल्य – 199 रुपये