डीयू में अंबेडकर अध्ययन केंद्र की मांग

नई दिल्ली: दिल्ली विश्वविद्यालय में शोधार्थी/छात्रों का संगठन, यूथ फॉर सोशल जस्टिस के तत्वावधान में संसद भवन, नई दिल्ली में अम्बेडकर महोत्सव समारोह कार्यक्रम में सोमवार को भारत रत्न बाबा साहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर की 134वीं जयंती बड़े धूमधाम से मनाई गई। अरबिंदो कॉलेज में प्रोफेसर हंसराज सुमन ने बाबा साहेब की मूर्ति पर माल्यार्पण कर कार्यक्रम प्रारम्भ किया। मुख्य अतिथि प्रोफेसर हंसराज सुमन ने बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर को नमन करते हुए राष्ट्र के प्रति उनके योगदान को स्मरण करते हुए कहा कि उनके विचारों ने देश को एक नई दिशा दी है।
शिक्षा और सामाजिक न्याय के लिए बाबा साहेब का संघर्ष : उन्होंने समाज के वंचित वर्गों को शिक्षा के माध्यम से मुख्यधारा में लाने के लिए आजीवन संघर्ष किया, साथ ही उन्होंने जातिप्रथा के खिलाफ जोरदार तरीके से आवाज उठाई। बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर ने समाज के पिछड़े और शोषित वर्ग के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। उन्होंने भारतीय संविधान का निर्माण कर देश के प्रत्येक व्यक्ति को समान अधिकार और स्वतंत्रता प्रदान की। प्रोफेसर सुमन ने बताया कि उनका जीवन संघर्ष का प्रतीक है और उनके द्वारा बताए गए आदर्शों पर चलकर समाज में समानता, न्याय, बंधुत्व स्थापित करने की दिशा में काम करना चाहिए।
बाबा साहेब: एक बहुआयामी व्यक्तित्व : प्रोफेसर हंसराज सुमन ने अपने सम्बोधन में आगे बताया कि बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर एक सच्चे देशभक्त, राष्ट्रवादी व संविधान निर्माता थे। डॉ. अम्बेडकर न केवल विधि विशेषज्ञ थे बल्कि अर्थशास्त्री, साहित्यकार, पत्रकार, राजनीतिज्ञ विशेषज्ञ, समाजशास्त्री एवं युग दृष्टा थे। कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं जिसमें उनका योगदान न रहा हो। वे मात्र संविधान निर्माता नहीं थे बल्कि राष्ट्र निर्माता भी थे। उन्होंने कहा कि बाबा साहेब अम्बेडकर ऐसे इकलौते महान नायक हैं जिनकी जयंती महोत्सव पर संसद भवन प्रांगण में लाखों लोग पुष्पांजलि अर्पित करने आते हैं और उनके विचारों से अवगत होकर अपने जीवन में उतारने का प्रयास करते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि वे किसी एक वर्ग के नेता नहीं थे बल्कि सम्पूर्ण विश्व के नेता थे, इसीलिए उन्हें ज्ञान का प्रतीक कहा जाता है।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बाबा साहेब की स्वीकार्यता : उन्होंने बताया कि डॉ. अंबेडकर की जयंती भारत से बाहर विदेशों में भी उनके अनुयायी मनाते हैं। आज दुनिया के लगभग 150 से अधिक देशों में बाबा साहेब की जयंती को मनाया जाता है। यही नहीं बल्कि दुनिया के सर्वाधिक शक्तिशाली समझे जाने वाले राष्ट्रों अमेरिका और योरोप तक में उनके अध्ययन से संबंधित पीठ की स्थापनाएं की गई हैं।
युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणा हैं बाबा साहेब : मुख्य वक्ता श्री राजकुमार सरोज ने कहा कि आजाद भारत के संविधान निर्माण में उनका योगदान देश के करोड़ों लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत है। उन्होंने कहा कि वे केवल संविधान निर्माता ही नहीं बल्कि समाज सुधारक भी थे। आज की युवा पीढ़ी को उनके आदर्शों पर चलकर एक ऐसे समाज की स्थापना करनी चाहिए जहाँ हर व्यक्ति समान अवसर और अधिकार प्राप्त हो।
अध्ययन केंद्र और पाठ्यक्रम में समावेश की मांग : कार्यक्रम की अध्यक्षता यूथ फॉर सोशल जस्टिस के अध्यक्ष डॉ. सुरेंद्र सिंह ने की और कहा कि बाबा साहेब को किसी एक क्षेत्र में सीमित करके नहीं देखा जा सकता बल्कि वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि तभी होगी जब हम सभी देशवासी उनके बताए हुए मार्ग पर चलें। उन्होंने कहा कि वर्तमान सरकार ने बाबा साहेब के सम्मान के लिए अनेक कार्य किए हैं, जिसमें पूरे देश के गरीबों, पिछड़ों के लिए कार्य योजनाएं बनाई गई हैं और ऐसे में जहाँ बाबा साहेब का महत्व बढ़ रहा है वहीं देश के कल्याण की दिशा भी स्पष्ट हो रही है। डॉ. सिंह ने कहा कि दिल्ली विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में बाबा साहेब को मुख्य विषय के रूप में पढ़ाया जाना चाहिए, यहाँ उनके नाम पर अम्बेडकर भवन बने व उनके नाम पर शोध अध्ययन केंद्र खोलने के लिए विश्वविद्यालय कुलपति से मांग करेंगे।
गीत और धन्यवाद : कार्यक्रम के अंत में डॉ. अम्बेडकर से संबंधित एक गीत राजकुमार ने गाया। इस संगोष्ठी को सफल बनाने में श्री अनिल प्रथम, जनार्दन लाडनू, मनमोहन सिंह, डॉ. मनी सागर, श्री विकास, एडवोकेट मृगांग व डॉ. अनिल कुमार आदि शोधकर्ताओं व शिक्षकों की महत्वपूर्ण भूमिका रहीं।