आपके विचार

भारतीय सभ्यता और संस्कृति बडी ही अनमोल

सुनील कुमार माथुर

भारत पर्वों और त्यौहारों का देश हैं । यहां विभिन्न जाति व धर्म के लोग रहते हैं जिसके कारण शायद ही कोई सप्ताह या पखवाडा ऐसा निकलता होगा जब कोई तीज या त्यौहार न मनाया गया हो । भारत कश्मीर से कन्या कुमारी तक एक हैं और यहां विविधता में भी एकता देखने को मिलती हैं । यही वजह है कि इस देश की सभ्यता और संस्कृति विश्व की सभी संस्कृतियों में से श्रेष्ठ मानी गई हैं ।

अतः हर भारतीय का मन दर्पण की तरह से साफ होना चाहिए और चमकना चाहिए । तभी तो हम कह सकते हैं कि मन ही मंदिर हैं । लेकिन आज का इंसान एक – दूसरे से जलता हैं । ईर्ष्या, छल कपट करता हैं और तो और आज भाई – भाई से लड रहा हैं । पिता – पुत्र लड रहें है । अपने ही पराये हो रहें है । यहां तक की पति – पत्नी लड रहे हैं जो एक दुःख की बात हैं । हमारी सभ्यता और संस्कृति में इन बातों का कोई स्थान नहीं है फिर भी आज का इंसान एक- दूसरे को येन केन प्रकारेण नीचा दिखाने में लगा हुआ है ।

जबकि इंसान को सदैव सत्य की राह पर ही चलना चाहिए और सद् कर्म ही करते रहना चाहिए चूंकि आपके कर्मों का फल आपकों ही भोगना हैं किसी और को नहीं । आपके पुण्य का कर्म आपकों ही भोगना हैं तो फिर अच्छे कर्म ही कीजिए चूंकि बुरे कर्मों का बुरा फल भी आपको ही भोगना होगा । जैसे कर्म आप करेगे वैसा ही फल आपको भोगना हैं यह आपको सोचना हैं कि हमें कैसे कर्म करने हैं । भगवान के यहां देर हैं पर अंधेर नहीं ।

अतः अपने जीवन को परोपकार के कार्यों में लगाईये । मगर आज के इंसान का इतना नैतिक पतन हो गया हैं कि वह अब धार्मिक स्थलों में भी चोरियां करने लगा हैं । मंदिरों से भगवान के चांदी के छत्र , दानपात्र , ट॔कोरे , पूजा के बर्तन , घंटिया तक लोग चुराने लगे हैं । वे मंदिर में भगवान के भक्त बनकर जाते हैं और मौका देखकर चोरी कर जातें है । वे ऐसा करके इस अमूल्य मानव जीवन को बर्बाद कर रहें है ।

जो लोग धर्म स्थलों पर चोरी करते हैं भला उनसे कैसे नेक कार्यों की आशा की जायें । वे भले ही मंदिरों में चोरी कर शराब , जुआ या अन्य अनैतिक कृत्यों में वह राशि खर्च कर कुछ समय का सुख भोग ले लेकिन परमात्मा उसे इस अनैतिक कृत्य की सजा अवश्य ही देते हैं ।

अरे ! ईश्वर ने हमें यह मानव जीवन दिया है तो फिर इसे नेक कार्यों में लगाईये बुरे कर्म करके जीवन को क्यों बर्बाद कर रहे हो । चोरी करने वालों का तो भगवान क्या घर – परिवार वालें भी साथ नहीं देते हैं । अतः मेहनत करके धन अर्जित करें और अपनी जरूरतों को पूरा करें । जीवन में जितना मिला हैं उसी में संतोष करें । बेईमानी करने वालों को ईश्वर दंड अवश्य ही देता हैं । कहने का तात्पर्य यह है कि जीवन में आदर्श संस्कारों का होना नितान्त आवश्यक है ।

अतः बच्चों को बचपन से ही आदर्श संस्कार दिये जायें । तभी तो कहा गया हैं कि भारतीय सभ्यता और संस्कृति अनमोल है और इसका अनुसरण करें और जीवन को संवारते रहें । हमारी संस्कृति पाश्चात्य संस्कृति से कोसो दूर हैं यह भोगवादी संस्कृति नहीं है अपितु आदर्श संस्कार देने वाली संस्कृति हैं ।अतः जीवन में कभी भी किसी की भावना को ठेस न पहुंचायें और न ही किसी की आलोचना करें ।

गऊशाला में गायों की सेवा करें । उन्हें चारा – पानी दीजिए । पक्षियों के लिए गर्मी के मौसम में परिंडे लगाईये । उन्हें दाना डालें । पशु – पक्षियों को धूप से बचाने की व्यवस्था करें । गायों को गुड , रोटी , लापसी , चारा डालें । पशु- पक्षियों की सेवा ईश्वर की सेवा हैं ।

आप जब भी मंदिर जायें तब ईश्वर के सामने सिक्के न फेंके । हमारी क्या औकात है कि हम प्रभु के सामने सिक्के फैके । वही तो हमारा पालनहार है । अगर आपको दान पुण्य करना ही हैं तो दान की राशि दान पात्र में डालें । लेकिन कभी भी दान स्वरूप खुलें पैसे भगवान के सामने फैक कर उनका अपमान न करें।


¤  प्रकाशन परिचय  ¤

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सुनील कुमार माथुर

लेखक एवं कवि

Address »
33, वर्धमान नगर, शोभावतो की ढाणी, खेमे का कुआ, पालरोड, जोधपुर (राजस्थान)

Publisher »
देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड)

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