साहित्य लहर

लघुकथा : जाति-धर्म

वीरेंद्र बहादुर सिंह

शाहिद को कार्डियाक (हृदय) सर्जिकल ऑपरेशन थिएटर से बाहर लाया गया। शाहिद को ऑपरेशन के समय दिए गए एनेस्थेथिया का असर अभी भी था। अभी वह पूरी तरह से होश में नहीं आया था। उसे कार्डियाक आईसीयू में भर्ती कर दिया गया।

तभी शाहिद की बेटी रजिया रोते हुए आईसीयू की ओर बढ़ी। लेकिन दरवाजे के पास पहुंच कर उसके कदम थम गए। सालों पहले घटी घटना उसे याद आ गई। उसके अब्बू ने उससे संबंध तोड़ लिए थे। उन्होंने स्पष्ट कह दिया था कि अब उनकी कोई बेटी नहीं है। क्योंकि रजिया ने आठ साल पहले एक हिंदू लड़के से प्रेमविवाह कर लिया था। जबकि उसके अब्बू इसके सख्त विरोधी थे। फिर भी रजिया आईसीयू में जा कर अब्बू के बैड के पास बैठ गई।

थोड़ी देर बाद शाहिद को होश आया। रजिया को देख कर उन्हें गुस्सा आ गया। अपना मुंह फेर कर उन्होंने कहा, “तू हट जा मेरे सामने से। मैं तेरा मुंह नहीं देखना चाहता। अगर तू ने किसी मुस्लिम लड़के से प्यार किया होता तो मैं खुशी-खुशी तेरा निकाह उसके साथ करा देता। पर तू ने एक काफिर से निकाह किया है, इसलिए अब तेरा और मेरा कोई रिश्ता नहीं रहा।”

“अब्बा, आप भले ही मेरा और मेरे पति आशिष के हिंदू होने का विरोध करें, मुझे कोई प्राब्लम नहीं है। परंतु आप एक बात याद रखिएगा, आप के अंदर जो हृदय धड़क रहा है, वह एक हिंदू का ही है। आप के शरीर में धड़कने वाला हृदय आशिष के चचेरे भाई राकेश का है। उनका एक्सीडेंट होने की वजह से डाक्टर ने उन्हें ब्रेन डेड घोषित कर दिया था। इसलिए उनका हृदय आप को प्रत्यारोपित कर दिया गया है।”

यह सुन कर शाहिद रजिया को सीने से लगा कर रोने लगे। अभी तक वह जिस जाति-धर्म को मान रहे थे, वास्तव में वह कुछ नहीं होता। अब तक वह जो नहीं समझ पाए थे, आज उनकी लाडली बेटी रजिया ने समझा दिया था।


¤  प्रकाशन परिचय  ¤

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वीरेंद्र बहादुर सिंह

लेखक एवं कवि

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जेड-436-ए, सेक्टर-12, नोएडा-201301 (उत्तर प्रदेश) | मो : 8368681336

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देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड)

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