उत्तराखंड में चकबंदी है पलायन रोकने का विकल्प
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ओम प्रकाश उनियाल
उत्तराखंड राज्य बनने से पहले व पृथक राज्य बनने के बाद भी सरकारों की जिस प्रकार से चकबंदी के प्रति ढुलमुल नीति रही है उसके परिणामस्वरूप चकबंदी आज भी अधर में लटकी हुयी है। चकबंदी का संघर्ष सालों से चला आ रहा है। सरकारी योजनाएं अनेकों बार बनी, जो कि सिमट कर रह जाती हैं।
चकबंदी का मतलब बिखरे खेतों को एकत्रित कर ‘चक’ का रूप देना। जिससे खेती करने में हर किसान को आसानी रहेगी और अन्य कई तरह के फायदे भी होंगे।
पलायन रुकेगा, कृषि के प्रति युवाओं का भी रुझान बढ़ेगा। बंजर भूमि का सदुपयोग तो होगा ही पर्यावरण संरक्षण और संवर्धन भी होगा। चकबंदी के प्रणेता गणेश सिंह ‘गरीब’ का कहना है कि पहाड़ के युवा साधनहीन, विवेकहीन हैं। साधन न होने के कारण पिछड़ रहे हैं। पहाड़ से जिसने भी पलायन किया वह बाहर का ही होकर रह गया।
यहां तो उनका आना केवल पर्यटक के तौर पर होता है। कोरोना काल में काफी पहाड़ के युवा विभिन्न शहरों में रोजगाररत थे वे बेरोजगार हो गए थे। जो कि पहाड़ लौटे, लेकिन खेती की तरफ रुचि बहुत कम ने दिखायी। चकबंदी हुयी होती तो शायद उनका आकर्षण खेती की तरफ होता भी। पलायन रोकने का यह भी एक बेहतर विकल्प है।
उन्होंने कहा कि गांवों की पहचान तभी तो बनेगी, बरकरार रहेगी जब बाहर बसे लोग अपने गांवों को लौटेंगे। अपने पूर्वजों की धरोहर का संरक्षण करना सब पहाड़वासियों का दायित्व बनता है। राज्य में भू-कानून न होने के कारण यहां की जमीन बाहरी लोगों को कौड़ी के भाव बेची जा चुकी है। यही सिलसिला अभी भी जारी है। यही हाल रहा तो पहाड़वासियों को एकदिन पछताना पड़ेगा।
¤ प्रकाशन परिचय ¤
![]() | From »ओम प्रकाश उनियाललेखक एवं स्वतंत्र पत्रकारAddress »कारगी ग्रांट, देहरादून (उत्तराखण्ड)Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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