साहित्य लहर

प्रणय-पुष्प से हम खिलने लगे

प्रेम बजाज

हया ने भी दिया साथ हमारा, लब से जब लब उनके मिलने लगे
पलकें झुक गई शर्म से थरथर्राहट लबों मे होने लगी, प्रणय-पुष्प से हम खिलने लगे।

वो चूमते हुए मेरे पलकों के बादल, फिर चूमने लगे मेरे होंठों के पाटल,
जब तू गए उनके होंठ मेरी गर्दन के तिल को, खुशी के अश्कों से ढलक गया काजल।

रखें जो होंठ मेरे गालों पे, लगे धुलने सब, जो लगे थे जंग उर के तालो पे,
कस्तूरी पर मेरी उसने लबों से प्यार लिखा था, ना रही मैं होश में तब, मेरे प्यार में वो भी तब बिका था।

था नशा नैनों में इश्क का, लुट गए थे हम भी उसके प्यार में,
छुप गए आगोश‌ में यार की, टूट कर बिखर गए हम कूचा-ए-यार में।

वो पी रहे थे घूंट-घूंट हमें, हम भी ले रहे थे चुस्कियां उनके प्यार की,
खोलने लगे वो गेसुओं से हमारे, उंगलियां भी चल रही कमर पर मेरी यार की।

खुद को कर दिया नाम उनके इस तरह प्यार का कर्ज अदा किया,
परोस दिया उन्हें प्याले में खुद को, इस तरह उन्होंने हमारी प्रीत का जाम पिया।

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