जलन छोड़ो कमी ढूंढ़ो
प्रेम बजाज
जलन क्या है और क्यों होती है हमें किसी से?
दरअसल जब हमसे किसी का सुख नहीं देखा जाता, किसी की खुशी बर्दाश्त नहीं होती, किसी की तरक्की होते हुए नहीं देख सकते, तब हमारे अन्दर कभी-कभी हीन भावना आ जाती है। जलन अर्थात इर्ष्या असुरक्षा की भावना को दर्शाती है, ईर्ष्या लाचारी, घृणा और अप्रयापतता की भावना को दर्शाती है। एक ऐसी चीज़ है, जो किसी के पास कुछ ऐसा होने से होती है, जो हमारे पास नहीं।
इसे ऐसे समझा जाए कि कोई प्रतियोगिता है और उसमें मैं हार गई, अर्थात दूसरा जीता। जो जीत मेरे पास नहीं, तै उस शख्स से मुझे इर्ष्या होगी, क्योंकि उसके सामने मैं अपूर्ण साबित हुई, इर्ष्या अपूर्णता के भाव से भरी है.
दरअसल हम अच्छे को महत्व देते हैं, बचपन से ही बच्चों को अच्छा बनना सिखाया जाता है, हम कभी बुद्धि और बोध को प्रोत्साहित नहीं करते। अच्छे बनना अर्थात बनाने वाले ने हम में कुछ कमी रखी है, जिसे हमें पूरा करना है? जब बनाने वाला ही हमें पूर्ण नहीं बना सका तो उसे हम कैसे अच्छा बना सकते हैं? क्या हमारा रचयिता हमें पूर्ण नहीं बना पाया।
इसी अच्छाई की सोच के कारण दया या सहानुभूति शब्द पैदा होते हैं, और दया या सहानुभूति कोई पसंद नहीं करता, अगर किसी को देना है तो प्रेम दे ना कि दया। कहीं इर्ष्या प्रेम का कारण भी बन जाती है, जिसे कि साकारात्मक भाव भी माना जाता है, जैसे बच्चों में पाया जाता है जो डर और स्नेह का कारण होता है। जिसमें बच्चा खोने का डर और स्नेह के कारण कुछ बेहतर बनाने या करने का प्रयास करता है।
लेकिन जहां दया या सहानुभूति हासिल होती है वहीं इर्ष्या और द्वेष की भावना पनपती है, जो इन्सान को नाखुश करती हैं, और नाखुश इनसान चेतना शून्य है जाता है। कभी-कभी यह इर्ष्या भयानक रूप धारण कर लेती है, जैसे झूठ, धोखा, चल रही इत्यादि हानिकारक कृत्यों का रूप ले लेती है। इर्ष्या एक मानसिक केंसर की तरह पनपती है।
जब हमें अपनी क्षमताओं और कौशल पर संदेह होता है, यह एक नाकारात्मक भावना होती है, जब हमें लगता है, हम किसी से किसी गुण में कमतर है, तब भी पनपती है इर्ष्या, हमें अपने-आप को पूर्ण समझना, पूर्ण बनाना चाहिए। जब कोई इन्सान अन्दर से आनन्द से पूर्ण है तो वो इर्ष्या नहीं कर सकता, जब एक इन्सान आनन्द से पूर्ण नहीं तो इर्ष्या का पनपना लाज़मी है।
हमें जब यह समझ आ जाता है कि मेरा कुछ ग़लत हो रहा है, अर्थात मैं कुछ ठीक नहीं कर रहा तो मुझे उस कुछ ग़लत को पकड़ना है, और उसे समझना और सुधारना है, ना कि दूसरों पर आक्रोश, क्रोध या इर्ष्या जाहिर करना है कि दूसरा मुझसे बेहतर क्यों?
जिस दिन मुझे यह समझ आ जाएगा कि मैं कहां- क्या ग़लत कर रहा हूं, कहीं तो मैं कुछ ठीक नहीं कर रहा हूं, मुझे उसे ठीक करना है। जिस दिन यह बात मुझे सही तरीके से समझ आ जाएगी, उस दिन मेरा जीवन सुखमय और आनन्द पूर्ण हो जाएगा।
… दोस्तों हमें अपनी कमी को पकड़ना है, उसे ढूंढना है ना कि इर्ष्या संग जीना है, तो जीवन अवश्य ही सुखमय होता जाएगा
¤ प्रकाशन परिचय ¤
From »प्रेम बजाजलेखिका एवं कवयित्रीAddress »जगाधरी, यमुनानगर (हरियाणा)Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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