साहित्य लहर

जिधर देखूँ लगे वो ही खड़ी है…

कौशल किशोर मौर्य ‘दक्ष’

जिधर देखूँ लगे वो ही खड़ी है।
जटिलता से हृदय में वो जड़ी है।

यकायक इश्क़ जब उससे हुआ था
नहीं वो भूलती मंगल घड़ी है।

भुला आलम उसे अपलक निहारूँ
अगर मेरी नजर उस पे पड़ी है।

सामने से मेरे जब भी गुजरती
निलय में तीव्र मचती हड़बड़ी है।

बहुत मासूमियत मुखड़े पे उसके
यही मुझको लगी अच्छी बड़ी है।

अधर, रुखसार, करतल अति मुलायम;
कमल की पँखुड़ी लगती कड़ी है।

छुए उसकी मधुर आवाज दिल को
लगे आवाज में मिश्री पड़ी है।

अकेले बंद कमरे में तिमिर में
विलोचन अग्र आ होती खड़ी है।

प्यार उसके लिए दिल में असीमित
कहूँ कैसे? परीक्षा अति कड़ी है।

स्वयं को मानकर लालू ऐ! यारों
मेरा दिल बोलता वो राबड़ी है।

मुझे है फक्र अपने हिय, दृगों पर
उन्होंने टॉप की लड़की तड़ी है।

नहीं सौंदर्य में कोई मिलावट
मुझे भाती वो सुंदर फुलझड़ी है।

मुझे तू! काट लेने दे ओ! पगली;
फसल जो खेत में तेरे खड़ी है।

कसक कैसे करूँ इकरार उससे
क्योंकि मुझसे उमर में वो बड़ी है।

बड़ी है वो भले मुझसे उमर में;
मगर संग में नहीं लगती बड़ी है।

मुझे विश्वास इक दिन पास होगी;
प्रतिक्षा की लड़ाई जो लड़ी है।

पढ़े हँसकर लिखा जिसके लिए गर
‘दक्ष’ फिर वो भी मम् पीछे पड़ी है।


¤  प्रकाशन परिचय  ¤

Devbhoomi
From »

कौशल किशोर मौर्य ‘दक्ष

मीतौं, सण्डीला, हरदोई (यूपी) | मो. नं. : 8090051242

Publisher »
देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड)

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