साहित्य लहर

तन्हा दिल

संजना

तन्हा दिल है न जाने कब से ,
तुम मिलकर भी न मिल पाए।

तन्हा है दिल न जाने कब से ,
तुम छोड़ कर भी ना छोड़ पाए।

तन्हा है दिल न जाने कब से,
तुम देख कर भी नजर ना मिला पाए।

तन्हा है दिल न जाने कब से,
तुम प्रेम करके भी प्रेम ना निभा पाए।

तन्हा है दिल न जाने कब से,
तुम बातें करके भी हमें ना समझ पाए।

तन्हा है दिल न जाने कब से,
तुम गलती से भी याद ना कर पाए।

तन्हा है दिल न जाने कब से,
तुम सोच कर भी हमारे बारे में नहीं सोच पाए।


¤  प्रकाशन परिचय  ¤

Devbhoomi
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संजना

11वीं कक्षा की छात्रा, कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश)

Publisher »
देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड)

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