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बाबा साहब डॉ.भीमराव अंबेडकर की 134 वीं जयंती पर विशेष

यह सर्वेक्षण भारतीय समाज में आए बदलाव के बारे में भी बताता है।अमेरिका के जिस कॉलेज में बाबा साहब ने अपनी पढ़ाई की थी वहां उनकी प्रतिमा बनाई गई है और उसके ऊपर सिंबल ऑफ नॉलेज ( ज्ञान के प्रतीक) अंकित किया गया है।  #सुनील कुमार, बहराइच, उत्तर प्रदेश

युगदृष्टा भारतीय संविधान निर्माता डॉ.भीमराव अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल सन 1891ई.को मध्यप्रदेश के महू नामक गांव में हुआ था। इनके पिता का नाम रामजी सकपाल तथा माता का नाम भीमाबाई था। डॉ.अंबेडकर अपने माता-पिता की 14 वीं संतान थे।इनका पालन-पोषण एक आदर्श धार्मिक वातावरण में हुआ था। डॉ.अंबेडकर बचपन से ही पढ़ने-लिखने में बहुत कुशाग्र थे। इन्होंने अपनी बुद्धि और योग्यता का उपयोग अपनी निजी उन्नति के लिए नहीं किया,बल्कि दलित, अपवंचित समाज के उत्थान के लिए किया।

बाबा साहब के इन्हीं गुणों के कारण लोग इन्हें दलितों का मसीहा कहते हैं।डॉ.अंबेडकर ने सन 1907 ई. में मैट्रिक तथा 1912 ई. में स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण की।दुर्भाग्यवश इसी बीच उनके पिता का अचानक देहांत हो गया, जिसके कारण संपूर्ण परिवार की जिम्मेदारी इनके नाजुक कंधों पर आ पड़ी, फिर भी अंबेडकर ने हिम्मत नहीं हारी और साहस पूर्वक कठिन परिस्थितियों का सामना किया। पिता के आकस्मिक निधन के बाद अंबेडकर के सम्मुख आर्थिक समस्याएं थीं जिनके कारण उनकी आगे की शिक्षा नहीं हो पा रही थी।

डॉ.अंबेडकर की प्रखर बुद्धि और अदम्य साहस को देखकर बड़ौदा नरेश ने इन्हें विदेश में जाकर अध्ययन करने के लिए सशर्त छात्रवृत्ति देना स्वीकार किया । डॉ. अंबेडकर उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए सन 1913 ई. में अमेरिका गए और सन 1923 में स्वदेश लौटे।इस दौरान इन्होंने एम.एस-सी., डी.एस-सी, बार- एट-ला, पी.एच. डी., डी. लिट. आदि उपाधियां प्राप्त की। डॉक्टर ऑफ साइंस जिसे विश्व की सबसे कठिन परीक्षा माना जाता है, को पास करने वाले प्रथम भारतीय व्यक्ति डॉ.भीमराव अंबेडकर ही थे।

डॉ.अंबेडकर सन 1935 से 1954 तक राजनीतिक और सामाजिक कार्यों में संलग्न रहे। सन 1935 में डॉ.अंबेडकर की नियुक्ति गवर्नमेंट लॉ कॉलेज मुंबई में प्रिंसिपल तथा कानून शास्त्र प्रवक्ता के पद पर हुई। इसके बाद सन 1942 ई. में भारत के गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी समिति में श्रम सदस्य तथा 15 अगस्त सन 1947 ई. को वर्षों की दास्तां के बाद जब भारत आजाद हुआ तब 29 अगस्त सन 1947 को डॉ.अंबेडकर को भारतीय संविधान निर्माण समिति का अध्यक्ष मनोनीत किया गया तथा स्वतंत्र भारत के प्रथम मंत्रिमंडल में इन्हें विधि मंत्री के पद पर आसीन किया गया।

डॉ.अंबेडकर ने अपना संपूर्ण जीवन दलित समाज के उत्थान के लिए समर्पित कर दिया। समाज के अपवंचित वर्गों,गरीबों व महिलाओं को समानता का अधिकार दिलाने में डॉ. अंबेडकर का अविस्मरणीय योगदान रहा है।डॉ.अंबेडकर जीवन भर समानता के लिए संघर्ष करते रहे इसलिए इनके जन्मदिवस को समानता दिवस के रूप में मनाया जाता है। बाबा साहब के प्रगतिशील विचारों के आधार पर भारतीय संविधान के द्वारा देश से सभी प्रकार के भेद-भाव सदा के लिए समाप्त कर दिए गए।06 दिसंबर सन् 1956 को भारत की इस महान विभूति के सक्रिय और संघर्षशील जीवन का अंत हो गया।



डॉ.अंबेडकर एक कुशल अर्थशास्त्री के साथ-साथ एक महान इतिहासकार, कुशल राजनीतिक, विधिवेत्ता,नारियों के मुक्तिदाता व समाज सुधारक थे।डॉ.भीमराव अंबेडकर को स्नेह, आदर एवं श्रद्धा से लोग बाबा साहेब कहते हैं।बाबा साहेब डॉ.भीमराव अंबेडकर के उल्लेखनीय कार्यों व सामाजिक योगदान के लिए उन्हें मरणोपरांत सन 1990 में भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से भी विभूषित किया गया।हाल में हुए एक सर्वेक्षण में डॉ.अंबेडकर को आजादी के बाद का सर्वाधिक महान व्यक्तित्व बताया गया है।



यह सर्वेक्षण भारतीय समाज में आए बदलाव के बारे में भी बताता है।अमेरिका के जिस कॉलेज में बाबा साहब ने अपनी पढ़ाई की थी वहां उनकी प्रतिमा बनाई गई है और उसके ऊपर सिंबल ऑफ नॉलेज ( ज्ञान के प्रतीक) अंकित किया गया है। सामाजिक क्षेत्र में जिस किस्म की आधुनिकता आज दिखाई दे रही है उसके पीछे बाबा साहब का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। डॉ.अंबेडकर के योगदान को हमारे देश के नागरिक युगों- युगों तक भुला नहीं पाएंगे, और इस महान व्यक्तित्व से संपूर्ण जीवन प्रेरणा लेते रहेंगे।


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