उत्तराखंड के मतदाताओं का रुख किधर?
राज्य में वैसे भी भाजपा का धुंआधार प्रचार जनता का आकर्षण बना हुआ है। जिसके कारण जनता का एकदम भाजपा से मोहभंग होना बड़ा मुश्किल लग रहा है। एक कारण यह भी है कि विपक्ष भी उत्तराखंड में काफी कमजोर है। या यूं कहिए विपक्षी दल चारों खाने चित हैं। #ओम प्रकाश उनियाल, देहरादून
उत्तराखंड में पांचों लोकसभा क्षेत्रों में प्रत्याशियों का प्रचार जमकर चल रहा है। हर प्रत्याशी अपनी जीत का दावा ठोक रहा है। 19 अप्रैल को मतदान होना है। लेकिन पहाड़वासियों पर जिस कदर मोदी का जादू छाया हुआ है उससे यही अनुमान लग रहा है कि फिर से पांच की पांच सीट भाजपा की ही झोली में गिरेंगी। बीते सालों में विकास क्या हुआ, कैसे हुआ, कहां-कहां हुआ इससे जनता को कुछ लेना-देना ही नहीं है? ना ही उन गंभीर मुद्दों से जो सरकारों की हीलाहवाली के चलते त्रिशंकु की भांति आज भी अधर में लटके पड़े हैं।
राज्य में वैसे भी भाजपा का धुंआधार प्रचार जनता का आकर्षण बना हुआ है। जिसके कारण जनता का एकदम भाजपा से मोहभंग होना बड़ा मुश्किल लग रहा है। एक कारण यह भी है कि विपक्ष भी उत्तराखंड में काफी कमजोर है। या यूं कहिए विपक्षी दल चारों खाने चित हैं। हालांकि, कांग्रेस व बसपा जैसे राष्ट्रीय दल हुंकार तो भर रहे हैं मगर उनकी हुंकार किसी के कानों तक पूरी तरह नहीं पहुंच पा रही है। राज्य में अब तक जो भी चुनाव हुए हैं उनमें दो ही दलों का वर्चस्व रहा है। तीसरा विकल्प यहां उभर ही नहीं पाया।
ना ही भविष्य में तीसरा मोर्चा उभर सकता है। सबसे बड़ा कारण जनता भी दोगली नीति चलती है। जनता को तीसरा कोई विकल्प विश्वसनीय भी नहीं लगता। वर्तमान में जितने प्रत्याशी चुनावी मैदान में उतरे हुए हैं यदि उनसे राज्य के विकास व अन्य ज्वलंत मुद्दों पर सवाल किए जाएं तो वे बगलें झांकते नजर आएंगे। अब तक यही होता आया है। सत्ता की कुर्सी जिसे भी मिली उसने पहाड़ का भाग्य चमकाने के बजाय अपना भाग्य पहले चमकाने की योजना बनायी।
थोथे गाल बजाकर पहाड़ की भोली-भाली जनता को यहीं के राजनीतिज्ञ बरगलाते आए हैं। अवसर है अब भी पहाड़ से संसद में ऐसे विश्वसनीय, कर्मठ, जुझारू व पहाड़ के हित की सोच रखने वाले जन-प्रतिनिधियों को भेजने का। इसे मत गंवाएं। अपने मतदान का प्रयोग जरूर करें।