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देवी-देवताओं को समर्पित धार्मिक त्योहार

धार्मिक त्योहार ईश्वर को समर्पित होते हैं। इनका महत्व तब और भी बढ़ जाता है जब जन-कल्याण की भावना से बिना किसी भेदभाव के मनाए जाते हैं। #ओम प्रकाश उनियाल

हिन्दू धर्म में देवी-देवताओं की काफी मान्यता एवं महत्व है। इसी कारण उनकी पूजा-अर्चना कर स्मरण किया जाता है। देवी-देवताओं के पूजन के तरीके भी अलग-अलग होते हैं। जब भी इंसान पर कोई संकट आता है तो सबसे पहले अपने आराध्य देवी-देवता को याद करता है। दु:ख की घड़ी में देवताओं का स्मरण करने से मन को जो सुकून व आत्मिक शांति मिलती है उसका अलग ही अनुभव होता है।

हालांकि, यह भी देखा जाता है कि जब सुख-शांति और समृद्धि होती है तो मनुष्य ईश्वर को भी भुला बैठता है। उसके अंदर अहम् की भावना घर करने लगती है। लेकिन जरा-सी विपति आते ही वह प्रभु को किसी न किसी रूप में पुन: याद करने लगता है। कबीर दास जी ने ठीक ही कहा है कि-दु:ख में सुमिरन सब करें, सुख में करे न कोय….।

हिन्दू धर्म में देवी-देवताओं के नाम पर धार्मिक त्योहार मनाए जाते हैं। जिन्हें हर वर्ग के लोग मनाते हैं। दीपावली पर लक्ष्मी, दशहरे और रामनवमी में प्रभु राम और देवी के नौ रूप, जन्माष्टमी पर भगवान श्रीकृष्ण, बसंत पंचमी पर विद्या की देवी मां सरस्वती आदि कई धार्मिक त्योहार हैं।

जिनमें व्रत, पूजन, कथा-पाठ, दान, भंडारा, भजन-कीर्तन, हवन-यज्ञ, जलाभिषेक विधि-विधान से करने की परंपरा है। मनुष्य की प्रवृत्ति ऐसी है कि उसको किसी का भय नहीं होता है। भय खाता है तो केवल परमपिता परमात्मा से  जो इस सृष्टि का संचालन करता आ रहा है। जो अदृश्य है। जिस न देख सकते हैं, न छू सकते हैं केवल स्मरण कर ही संतुष्टि प्राप्त कर सकते हैं।

धार्मिक त्योहार ईश्वर को समर्पित होते हैं। इनका महत्व तब और भी बढ़ जाता है जब जन-कल्याण की भावना से बिना किसी भेदभाव के मनाए जाते हैं।


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