आपके विचार

सुख की ओर

ऐसा करने से सुख की ओर आप बढ़ते रहेंगे। स्वार्थ में जीना राक्षसी प्रवृत्ति है। जितना हो सके इससे बचिए। सबके हित में कार्य करना मानवी पद्धति है। परमार्थ के लिए हमेशा तत्पर रहना मनुष्य का परम कर्त्तव्य है। ऐसा करने से भी सुख के नवीन द्वार खुलेंगे। #मुकेश कुमार ऋषि वर्मा, फतेहाबाद, आगरा, उत्तर प्रदेश

जीवन सुख- दु:ख का संगम है। आज सुख है तो कल निश्चित ही दुःख आयेगा। ये प्रकृति का नियम है। रात -दिन, सुबह -शाम, स्त्री -पुरुष, धूप -छांव, धर्म -अधर्म जैसे जोड़ा प्रकृति ने बनाया है ठीक वैसे ही सुख-दु:ख हैं। परंतु अगर हम ईश्वर में विश्वास रखते हैं तो हमारा दुःख दुःख न रहेगा, सुख बन जायेगा। गीता में स्पष्ट लिखा है कि जो हुआ वो अच्छा हुआ, जो हो रहा है वो अच्छा ही हो रहा है और जो भविष्य में होने वाला है वह भी अच्छा ही होगा।

दुःख का मूल कारण इच्छाओं की पूर्ति न होना ही है। वैसे इच्छाएं जागृत करना बुरा नहीं है। जैसे कहते हैं कि जैसा सोचोगे वैसे बन जाओगे… ये बात परम सत्य है, तो क्यों ना हम (जीव) लौकिक कामनाओं का त्याग करके ईश्वर प्राप्ति की ओर अपनी इच्छाएं जागृत करें। आप बिल्कुल चिंता मुक्त हो जाइए, क्योंकि ईश्वर ने आपकी आजीविका पहले से ही निश्चित कर रखी है। आप भटकते रहिए… होगा वही जो विधि (प्रकृति) ने लिख रखा है।

अगर आप सुखी रहना चाहते हैं, तो जो कार्य आप कर रहे हैं, करते रहिए। अपनी अनावश्यक कामनाओं को नष्ट कीजिए और ईश्वर प्राप्ति के लिए शुभ कर्मों को विस्तार दीजिए। ईश्वर सर्वत्र व्याप्त है, ऐसा विश्वास मन में हमेशा रखिए। इससे पाप कर्मों के प्रति हृदय में डर पैदा होगा और यही डर प्रभु प्राप्ति का सुगम मार्ग प्रशस्त करेगा।

सहज -सरल, सच्चा हृदय प्रभु प्राप्ति के लिए हमेशा उपयुक्त होता है और प्रभु ऐसे हृदयों में ही अपना निवास बनाते हैं।  निर्मल -पवित्र मन से प्रभु को याद कीजिए और सभी प्राणियों से प्रेम कीजिए। ऐसा करने से सुख की ओर आप बढ़ते रहेंगे। स्वार्थ में जीना राक्षसी प्रवृत्ति है। जितना हो सके इससे बचिए। सबके हित में कार्य करना मानवी पद्धति है। परमार्थ के लिए हमेशा तत्पर रहना मनुष्य का परम कर्त्तव्य है।

ऐसा करने से भी सुख के नवीन द्वार खुलेंगे। सच्चा सुख तो प्रभु प्राप्ति में ही है। बाकी आप अपने सांसारिक कर्तव्यों का निर्वहन भी करते रहिए।  गलत राह पर चलकर अगर कोई आगे बढ़ गया है तो उसका अनुसरण हरगिज न करें। प्रभु भक्ति में मगन रहें। ईश्वर चाहेगा तो आपको सहज ही उस स्थिति में पहुंचा देगा, जिसके लिए आपको प्रकृति ने नियुक्त किया है।

इसीलिए आप स्वयं पर अत्याधिक जोर लगाकर स्वयं को हृदय रोगी, मानसिक रोगी मत बनाइए। सहज -सरल व सच्चे बन रहिए। संसार को संसार के भरोसे छोड़कर बस आप अपना कर्त्तव्य पूर्ण कीजिए और ईश्वर भक्ति में मगन रहिए…।


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