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मित्रता की महक

जो बात हम अपने परिवारजनों को आसानी से नहीं बता सकते, वहीं बात हम अपने मित्रों को आसानी से विस्तार के साथ बता देते हैं। यह तभी सम्भव है जब हम अपने मित्र पर विश्वास करते हैं लेकिन जब मित्र ही दगा दे जायें तो फिर मित्रता, दोस्ती व मधुर संबंधों की बात करना एक बेमानी होगी। #सुनील कुमार माथुर, जोधपुर (राजस्थान)

दोस्ती का रिश्ता एक ऐसा रिश्ता होता हैं जिसमे कोई टेवा नहीं मिलाया जाता हैं फिर भी जन्म जन्म का अटूट साथ होता हैं। मित्र ही एक ऐसा साथी है जिसे हम अपने मन की हर बात कहकर मन का बोझ हल्का कर लेते हैं। लेकिन जब मित्र ही दगाबाज निकल जाये और मित्र ही मित्र की पीठ में छुरा घोंप दे तो मित्रता के सारे रिश्ते तार तार हो जाते हैं। फिर वे न तो किसी सीमेंट से न ही फेविकोल से और न ही किसी गम से जोडे जा सकते हैं।

दगाबाज मित्र यह भूल जाते हैं कि कर्म यह एक ऐसा रेस्टोरेंट हैं, जहां हमें आर्डर देने की कोई जरूरत नहीं है। हमें वो ही मिलता है जो हमने पकाया हैं। जिस दिन इंसान यह बात समझ गया बस उसी दिन रिश्तों की मजबूती को समझ पायेगा। मित्रता कृष्ण और सुदामा जैसी तभी होगी जब हम अहम का त्याग कर दूसरों की पीडा को अपनी पीडा समझ पायेंगे।

सभी दिन एक से नहीं होते हैं। दुःख सभी के जीवन में आते हैं। मतलब की दोस्ती रखना कोई दोस्ती नहीं है। दोस्ती का अर्थ वही जानता हैं जिनके मन मस्तिष्क में सकारात्मक सोच हो और जो हर परिस्थिति में समान रहने की कला को जानता हो। अच्छे मित्र बनें न की स्वार्थी ‌। मित्रता को ईमानदारी और निष्ठा के साथ निभाइये। उसे स्वार्थ में पड़कर कलंकित मत कीजिए।

जो बात हम अपने परिवारजनों को आसानी से नहीं बता सकते, वहीं बात हम अपने मित्रों को आसानी से विस्तार के साथ बता देते हैं। यह तभी सम्भव है जब हम अपने मित्र पर विश्वास करते हैं लेकिन जब मित्र ही दगा दे जायें तो फिर मित्रता, दोस्ती व मधुर संबंधों की बात करना एक बेमानी होगी। मित्रता की महक पुष्प की महक से भी अच्छी और सुगंधित होती हैं जो सदैव निस्वार्थ बनी रहनी चाहिए।


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