सृजनशीलता
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ठीक उसी प्रकार जब हम पूजा स्थल, खथा भजन स्थल पर कथा व भजन कीर्तन सुनने जाते हैं तब जैसे जैसे हम उस स्थल की ओर जाते है वैसे-वैसे हमारे मन मस्तिष्क की गंदगी (नकारात्मक सोच व तमाम तरह की बुराइयां) दूर होती जाती है व हमारे मन-मस्तिष्क में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। #सुनील कुमार माथुर, जोधपुर (राजस्थान)
व्यक्ति को हर वक्त कुछ न कुछ करते रहना चाहिए। खाली कभी भी नहीं बैठना चाहिए। चूंकि खाली दिमाग शैतान का घर होता है। इसलिए सदैव नित नया करते रहना चाहिए। आपकी सृजनशीलता ही आपकी श्रेष्ठ पहचान है। कहते हैं कि प्रभु के नाम का स्मरण करते रहना चाहिए चूंकि इस में हमारा कुछ भी धन नहीं लगता है।
इसी तरह प्रभु की प्रतिमा पर जल चढाने से हमारा कोई धन खर्च नहीं होता हैं। फिर भी न तो हम धर्म स्थल या मंदिर जाकर ईश्वर के नाम का स्मरण करते हैं और न ही जल चढ़ाने जाते हैं। यह एक चिंता की बात हैं। जीवन में सृजनशीलता निरन्तर जारी रहनी चाहिए। अधिकांश लोग साहित्य सृजनकर्ता, कवियों, लेखकों व कलमकारों को निठल्ला तक कहते हैं। वे कहते हैं कि इन निठल्लों के पास काम नहीं।
बस बैठे बैठे कुछ न कुछ लिखते रहते हैं। इन निठल्लों का बस यही एक मात्र काम रह गया है। चूंकि इसमें इनका क्या खर्च होता हैं। शायद ऐसी घटिया सोच व मानसिकता वाले लोग ही होते हैं व इनकी सोच हमेंशा नकारात्मक सोच ही रहती हैं। वे राष्ट्र की उन्नति प्रगति, विकास, उत्थान से कभी भी खुश नहीं होते हैं। वे भूल जाते है कि सृजनशीलता हमारी बुद्धि और विचारों का श्रेष्ठ मिलन हैं।
जिनके मिलन से समाज व राष्ट्र को बहुत बडी सफलता प्राप्त होती है। श्रेष्ठ साहित्य सृजन के लिए गहन चिंतन मनन करना पडता हैं। जबकि घासलेटी साहित्य दिमाग की गंदगी की उपज होते हैं। जब श्रेष्ठ चिंतन मनन होगा तभी मक्खन की तरह श्रेष्ठ विचारों की उत्पत्ति होती है और श्रेष्ठ साहित्य सृजन होता हैं। जो समाज में जनजागृति लाता हैं।
ठीक उसी प्रकार जब हम पूजा स्थल, खथा भजन स्थल पर कथा व भजन कीर्तन सुनने जाते हैं तब जैसे जैसे हम उस स्थल की ओर जाते है वैसे-वैसे हमारे मन मस्तिष्क की गंदगी (नकारात्मक सोच व तमाम तरह की बुराइयां) दूर होती जाती है व हमारे मन-मस्तिष्क में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। अतः सृजनशीलता को हल्केपन में न लें व सृजनशीलता को निर्बाध रूप से अपने जीवन में बनायें रखें।