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साहित्य लहर

लंका रूपी मन

डॉ. भगवान सहाय मीना
बाड़ा पदमपुरा, जयपुर, राजस्थान

मेरे लंका रूपी मन के, विषय विकारी रावण को।
आप जीतने आना प्रभु, आश्विन शुक्ल दशमी को।

अंधकार में दीप जलाने,सत्य विजय भव कहने को।
शुद्ध चरित्र करने मेरा, मैं आहूत कर दशहरे को।



लंका विजय की भांति,हरलो काम क्रोध मद लोभ को।
मन है पापी कपटी वंचक,हे प्रभु दूर करों इस रोग को।

धर्म पथ पर गमन करूं, नमन सीता के सम्मान को।
मैं कलयुग का केवट करता,नित वंदन श्रीराम को।




असत्य पर सत्य की जीत,प्रभु दोहरा दो इतिहास को।
कलयुग कर दो त्रेता,अवध बना दो मेरे हिंदुस्तान को।

घर-घर दीप जला दो, रावण भूल गए *भगवान* को।
भारत को बधाई, वंदन अभिनंदन पावन त्योहार को।




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