आपके विचार

अजीब सफर

किसी ने सही कहा है कि रिश्तों को वक्त देना पडता है तभी वे नीभ पाते हैं। जैसे पौधों को समय-समय पर पानी देना पडता है, ठीक उसी प्रकार रिश्तों को प्रेम, स्नेह, मिलनसारिता, प्रतिक्षा, धैर्य और सहनशीलता रूपी खाद से सींचा जाता हैं तभी वे पीढी दर पीढी चल पाते है। #सुनील कुमार माथुर, जोधपुर (राजस्थान)

जीवन जीना भी एक कला है और जिसने इस कला को सीख लिया उसका जीवन निखर गया और वह अपने जीवन में कामयाब हो जाता हैं। लेकिन अंहकार के कारण अधिकांश लोग अपने लक्ष्य को हासिल करने में विफल हो जाते हैं। हमारे बड़े बुजुर्गो ने कहा है कि मैं श्रेष्ठ हूं ऐसा सोचना आत्मविश्वास है, लेकिन यह कहना कि सिर्फ मैं ही सर्वश्रेष्ठ हूं यह सोचना सबसे बडा अंहकार है। आज का इंसान सिर्फ मैं ही सर्वश्रेष्ठ हूं कि आस पर जी रहा है जो केवल मूर्खता के सिवाय कुछ भी नहीं है।

इंसान इस नश्वर संसार में खाली हाथ आता है और खाली हाथ ही जाता है फिर भी सारी जिंदगी यह मेरा है, यह मेरी पत्नी, बच्चे का है मैं ही लगा रहता हैं। कभी वह यह नहीं कहता है कि यह हम सब का हैं। वह दिन रात हाय धन, हाय धन कर रहा हैं लेकिन अब तक कोई अपने साथ कुछ भी नहीं ले गया। तभी तो कफन के जेब नहीं है। अरे, आज तो स्थिति ऐसी हो गई है कि पिता बेटे को अच्छी शिक्षा दिला रहा हैं, अच्छा खिला पिला रहा है, तमाम तरह की ऐसों आराम की सुविधाएं उपलब्ध कराई , बडा सा कारोबार लगा दिया, हर तरह से योग्य बना दिया।

अगर वहीं संतान मृत्यु के समय अंतिम संस्कार में शामिल नहीं हो या माता-पिता के अंतिम दर्शन न करे तो ऐसी औलाद से अच्छा यही है कि उन माता-पिता के औलाद न होती तो ही ठीक था। ऐसा धन और औलाद किस काम का / की जो अपनों के भी काम न आये। वास्तव में जीवन का सफर ही अजीब सा हैं।

किसी ने सही कहा है कि रिश्तों को वक्त देना पडता है तभी वे नीभ पाते हैं। जैसे पौधों को समय-समय पर पानी देना पडता है, ठीक उसी प्रकार रिश्तों को प्रेम, स्नेह, मिलनसारिता, प्रतिक्षा, धैर्य और सहनशीलता रूपी खाद से सींचा जाता हैं तभी वे पीढी दर पीढी चल पाते है।


Advertisement… 


Advertisement… 

3 Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: Devbhoomi Samachar
Verified by MonsterInsights