साहित्य लहर

कविता : विद्या का पावन मन्दिर

जो पहले स्वंय तप कर फिर, बच्चों को तपाते हैं अर्थात् पहले स्वंय अध्ययन करते हैं और फिर वे बच्चों को पढाते हैं, इस पावन मंदिर की हर पाठ्य पुस्तक, हमारे लिए किसी धर्म ग्रंथ से कम नहीं है… #सुनील कुमार माथुर, जोधपुर (राजस्थान)

बच्चों शिक्षण संस्थाएं
विद्या के पावन मंदिर है
यह ईंट पत्थर की बनी
केवल कोई इमारत नहीं है
यह विद्या का पावन मंदिर है

यहां जो मन लगाकर पढता हैं
उसका जीवन धन्य हो जाता है
गांधी, सुभाष, टैगोर, तिलक
अम्बेडकर, शास्त्री, कलाम,
डाक्टर, इंजिनियर, क्या नेता, क्या अभिनेता
सभी इस पावन मंदिर की देन हैं

इसकी गरिमा को बनाए रखने का
हम सभी का पावन धर्म हैं
विद्या के इस पावन मंदिर में
बिना भेदभाव के शिक्षा दी जाती है
इस मंदिर के गुरू जन
हमारे लिए पूज्यनीय हैं, वंदनीय हैं

जो पहले स्वंय तप कर फिर
बच्चों को तपाते हैं अर्थात्
पहले स्वंय अध्ययन करते हैं और फिर
वे बच्चों को पढाते हैं
इस पावन मंदिर की हर पाठ्य पुस्तक
हमारे लिए किसी धर्म ग्रंथ से कम नहीं है

यह पुस्तकें ही हमारे
व्यक्तित्व का निर्माण करती हैं
जो पढ लिख जाता है
उसका जीवन संवर जाता हैं
बच्चों शिक्षण संस्थाएं

शिक्षा के पावन मंदिर है अतः
पढ लिख कर तुम इसका मान बढाओं और
राष्ट्र का गौरव बढाओं

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