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लम्बा कारावास : भूतकाल से जीवन को जोड़कर भविष्य की सोचना

लम्बा कारावास: भूतकाल से जीवन को जोड़कर भविष्य की सोचना, अपने जीवन में, परिवार में और अपने मस्तिष्क में बीते हुये बुरे समय का ख्याल बनाये रखता है। भूतकाल से अपने जीवन को संबंधित रखते हुये अपने भविष्य की नाव में सवार होता है, तो उसका मन और जीवन सदैव विचलित अवस्था में ही रहता है। #राज शेखर भट्ट. सम्पादक

एक सिक्के के दो पहलू होते हैं और तीसरा पहलू बनता भी है तो उसकी अहमियत कुछ नहीं होती। हमारा जीवन भी चारों तरफ से पूरे जीवनकाल के दौरान दो-दो पहलुओं से घिरा हुआ है। उदाहराणार्थ देखें तो जन्म और मृत्यु, शुरूआत और समाप्ति, सुख और दुख, प्यार और तकरार, परेशानी और शांति, दिन और रात, सत्य और असत्य…। अतः अपने पूरे जीवनकाल में प्रत्येक इनसान इन्हीं की छाया में जीवन जीता है।

कहने का तात्पर्य कोई समझे या न समझे, लेकिन सत्य केवल इतना है कि हमारे जीवन में प्रत्येक पल दो पहलुओं से घिरा रहता है, जिसे हम अच्छा और बुरा कहते हैं। उसी तरह परिवार भी केवल दो लोगों से ही बनता है, जिसे हम स्त्री और पुरूष में बांटते हैं। जीवन की शुरूआत कहें या परिवार की शुरूआत या किसी व्यवसाय की शुरूआत कहें, हर जगह दो तरीके के पहलू हमारे साथ रहेंगे। इन दोनों को हमने अपनाना होगा और दोनों के साथ जीवन जीना भी होगा। दोनों में से एक को भी हम छोड़ नहीं सकते हैं।

बात केवल इतनी है कि दोनों प्रकार के पहलू, स्थितियां या परिस्थितियां हमारे साथ रहेंगी। दोनों के बिना जीवन जिया नहीं जा सकता और दोनों के साथ भी जीवन जिया नहीं जा सकता है। यहां जरूरत है केवल सामंजस्य बनाने की, पहलुओं पर जीवन ढालकर जीने की और स्थितियों का हिसाब देखते हुये परिस्थतियों को सकारात्मक रूप देने की। क्योंकि स्थितियां वर्तमान समय हैं, जो हमारे भूत (हमारे बीते हुये समय) ने हमें दी हैं और वर्तमान समय का जीवन ही हमारे भविष्य में आने वाली परिस्थितियों को आकार देता है।

यदि हम मानते हैं कि दुनिया में दो ही तरीके के लोग होते हैं, एक अच्छा और एक बुरा। बुरे को एक तरफ कर अच्छे इनसान की बात करें तो कोई भी इनसान एक अच्छा जीवन जीना चाहता है। उसकी इच्छा रहती है कि वह अच्छा खाये, अच्छा सोचे, अच्छा बोले, अच्छा सुने, अच्छे कार्य करे, अच्छे लोगों से मिले और उसके जीवन का प्रत्येक पहलू अच्छा हो।

लेकिन इनसानी मस्तिष्क कभी इनसान के वश में नहीं होता, बल्कि प्रत्येक इनसान उसके अनुसार जीवन-यापन करता है। उसी मस्तिष्क के प्रलोभनों में आकर हम अपने जीवन को एक सोच रूपी महासागर में लाकर छोड़ देते हैं और अपने मन में रेखाचित्र खींच-खींचकर उस महासागर के किनारों को भूल जाते हैं। परिणाम केवल इतना होता है कि जीवन भर उसी महासागर के किनारों को ढूंढने में लगे रहते हैं।



बहरहाल, सोचने वाली बात केवल इतनी है कि कैसा महासागर, कैसा रेखाचित्र, कैसे किनारे, कैसा जीवन, कैसे जीवन के मोड़ और कैसे जीवन में आने वाले दो पहलू ‘उतार और चढ़ाव’? इन सभी सवालों के लिए केवल एक ही जवाब है, जिसे हम भूतकाल की परेशानियों के कारण भविष्य का विचारणीय दुख और वर्तमान जीवन की कीलों के बीच फंसा हमारा मस्तिष्क है। जिस कारण हमें हमारा जीवन एक लम्बा कारावास लगने लगता है, हमारा वर्तमान का समय अमावस्या की रात और आने वाला समय घुन लगी दीवारों में परिवर्तित होता नजर आता है।



किसी ने सच ही कहा है कि ‘‘यदि आप अपने भूत और भविष्य की लड़ाई में फंस जायेंगे तो आप देखेंगे कि आपने अपना वर्तमान भी खो दिया है।’’



उपरोक्त पंक्ति को थोड़ा सा विस्तारित कर समझने का प्रयास करें तो कोई भी समझ सकता है, लेकिन उसे जरूरत है कि वह अपने मन को शांत करके चिंतन-मनन करे। क्योंकि जो इनसान अपने वर्तमान समय में अपने बीते हुये कल की लकीरों को खींचना शुरू करता है। अपने जीवन में, परिवार में और अपने मस्तिष्क में बीते हुये बुरे समय का ख्याल बनाये रखता है। भूतकाल से अपने जीवन को संबंधित रखते हुये अपने भविष्य की नाव में सवार होता है, तो उसका मन और जीवन सदैव विचलित अवस्था में ही रहता है। उसका वर्तमान समय, वर्तमान जीवन पूर्ण रूप से नकारात्मक नहीं होगा, बल्कि सकारात्मक होगा और जीवन में खुशी पहलू भी होगें, लेकिन चिंता के साथ, परेशानी के साथ होंगे और उसका अन्र्तमन कभी शांत नहीं हो सकता है।

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लम्बा कारावास: भूतकाल से जीवन को जोड़कर भविष्य की सोचना, अपने जीवन में, परिवार में और अपने मस्तिष्क में बीते हुये बुरे समय का ख्याल बनाये रखता है। भूतकाल से अपने जीवन को संबंधित रखते हुये अपने भविष्य की नाव में सवार होता है, तो उसका मन और जीवन सदैव विचलित अवस्था में ही रहता है।

8 Comments

  1. इंसान को वर्तमान में जीना चाहिए और अपने लक्ष्य की ओर आगे बढना चाहिए । बिती बातों को मन मस्तिष्क पर हर वक्त सवार नहीं होने देना चाहिए अन्यथा हमारा वर्तमान भी बिगड जायेगा । यह ठीक है कि हम इतने सक्षम नहीं हैं कि मन मस्तिष्क पर नियंत्रण रख सके लेकिन हमारे में इतना सामर्थ्य अवसर होना चाहिए कि बीते संकट को गले से लगाकर नया कुछ भी न करें । जीवन को आनंदमय जीना हैं तो वर्तमान में जीना होगा जो हो गया उसे बुरे सपने की तरह भुलना होगा ।

  2. राज शेखर जी का आलेख सम सामयिक तो है ही साथ ही यह एक ऐसा विषय है जो मानव मात्र के लिए सदा ही एक गाइड की तरह ज़रूरी भी है l
    हम एक ऐसे युग में जी रहे हैं जहाँ, इस भाग दौड़ भरी ज़िन्दगी में न समय होता है, न धैर्य, न सहिष्णुता l हमेशा जल्दी होती है l हम या तो भूत में जी रहे होते हैं या फिर भविष्य की चिंता में l
    ऐसे में एक रिमाइंडर की तरह यह आलेख अच्छा मार्ग दर्शन कर रही है l
    लेखक राज शेखर जी को साधुवाद l

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