साहित्य लहर

औरत

शिवानी सिंह

फूलों से भी नाजुक लोग समझ लेते हैं जिन्हें,
हर राह पर उनके चरित्र को टटोल लेते हैं जो ।
हर मोड़ पर अग्नि परीक्षा मांगते हैं जो लोग,
बेटों के लिए कुर्बान जो करते हैं लोग, वो समझ ले ये बात,
बेटियां वह फूल की कली से दिखती जरूर है, लेकिन धैर्य चट्टान सा होता है उनमें ।।

हर परीक्षा को पास कर दो परिवार जुड़कर जो रखती हैं, माता-पिता की लाडली उनकी लाठी अब बनती हैं, मां के साथ-साथ रसोईया जो बनती हैं। पिता का चश्मा बन अखबार वह पढ़ती है, भाई की दोस्त बन हर मुसीबतों से मिलकर लड़ती है। सासू मां की बेटी बन मालिश पैरों की करती है, पापा जी की लाडली ससुर जी की आंगन की लक्ष्मी बनती है।

पति की जीवन संगिनी बन हर भाड़ को आधा-आधा जो करती है। ननद की सहेली बन हर बात उसने कहती हैं। अपने बच्चों की मां बन परवरिश उनकी करती है दोस्त बन उनके साथ खेलकूद जो करती है ,उनकी हर परेशानी को हंसते-हंसते सॉल्व करती हैं ।।

बच्चों की मां, घर की लक्ष्मी, ममता की मूरत
मां पापा की लाडली ,पति की जीवन संगिनी,
ससुराल की लक्ष्मी, ना जाने कितने नाम
मिले ,कितने रूप मिले इस लिए
एक औरत हर रूप में ही सुंदर लगती है।।

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