साहित्य लहर

मुसाफिर

अनजान सफ़र के मुसाफिर बने हमसफ़र

प्रेम बजाज

” एक्सक्यूज़ मी,”

“जीईई कहिए” !

“क्या मैं यहां बैठ सकता हूं” ?

आक्षी इधर – उधर देखने लगी तो, राहुल बोला …. “जी बस में कोई सीट खाली नहीं है” ।

“इट्स ओके, बैठ जाईए” ।

राहुल आक्षी के साथ बैठ जाता है ।

लगभग आधे घंटे बाद बस अपने गंतव्य पर ( अम्बाला ) पहुंच जाती है और आक्षी बस से उतर कर टैक्सी बुलाती है , और उसमें बैठकर रेलवे स्टेशन जाती है ।

वहां पहुंचते ही पता चला कि जम्मु जाने वाली ट्रेन प्लेटफार्म पर आ चुकी है , और वो ट्रेन में चढ़ जाती है ।

लेकिन जैसे ही ट्रेन के डिब्बे में एंटर किया तो सामने राहुल नज़र आया जो अभी अभी अपना सामान रख रहा था ।
राहुल भी उसे देख अचंभित होकर …… “अरे मैम आप “?
आक्षी चौंक कर, “आप भी” ?

“जीईईईई , शायद हम लोग एक जगह जा रहे हैं “।

आक्षी बस मुस्करा कर चुप हो जाती है , उसे लगता है किसी अजनबी से इतना खुलना अच्छा नहीं । ।
रास्ता लम्बा है 6-7 घण्टे का , तो थोड़ी – बहुत बातचीत चलती रहती है रास्ते में ।

लेकिन आक्षी अपने बारे में ज्यादा कुछ नहीं बताती ।
राहुल बताता है कि उसने एम.बी.ए. किया है और पूना में अच्छी कम्पनी में नौकरी करता है । उसका घर यमुनानगर में है माता-पिता वहीं रहते हैं ।

आक्षी कुरूक्षेत्र से है ,और एम.फिल का लास्ट सेमेस्टर है , बस इससे अधिक कुछ नहीं बताती ।

गाड़ी जब जम्मु पहुंचती है दोनों एक दूसरे को बाय करके अपने – अपने रास्ते चले जाते हैं । लेकिन आक्षी के मन में कुछ अजीब सी हलचल है ।
ऐसा तो पहले कभी नहीं हुआ , आज मुझे ऐसा क्यों लग रहा है जैसे कुछ खो गया मेरा ।
आक्षी के चचेरे भाई की शादी है , जो जम्मु रहते हैं , पूरा परिवार तीन दिन पहले ही जम्मु आ गया था , आक्षी के पेपर चल रहे थे इसलिए वो शादी से एक दिन पहले ही आई है ।

अगले दिन शादी है सब हल्ला- गुल्ला कर रहे हैं , लेकिन आक्षी का मन नही लग रहा , उसे उस मुसाफिर साथी की रह – रह कर याद सता रही है , और खुद पर गुस्सा भी आ रहा है कि जब वो बात करना चाहता था , क्यो नही उससे अच्छे से बात की , उसका फोन नम्बर ही ले लेती या अपना दे देती , कम से कम बात तो हो जाती ।

बारात चलने लगी सब नाचते – झूमते जा रहे हैं ।
जेसे ही बारात होटल में पहुंचती है , तो स्वागत में सामने राहुल खड़ा नज़र आया ।

आक्षी की मानो मुराद पूरी हो गई ।
राहुल को देख कर लगा जैसे कोई खज़ाना मिल गया हो , और दिल ने चाहा कि दौड़कर राहुल को गले लगा ले , लेकिन दुनियादारी , लोकलाज ,तो स्त्री का गहना है , पांव वहीं थम के रह गए ।
दिल के हाथों मजबूर , दूनियां की बंदिशों में बंधी , चुपचाप बारात के साथ अन्दर प्रवेश किया , हर समय रह- रह कर नजरें राहुल को ढुंढती रहती , लेकिन राहुल अपने काम में व्यस्त ,लड़की वाले जो ठहरे , बारातियों की खातिरदारी में कोई कमी ना रह जाए ।

बड़े अच्छे से सब रिति- रिवाज़ पूरे हुए , विदाई का समय आया , सब दुल्हन से मिल रहे हैं और बारातियों से कुछ कमी रही हो तो क्षमा मांग रहे हैं ।
उन्हें अश्रुपात करते देख आक्षी की भी आंखें नम हो गई ।
राहुल भी खड़ा है उनके साथ , अचानक वो आक्षी के पास आता है ……
“आक्षी जी , कोई भूल- चूक हो तो क्षमा किजिएगा , और आप की सुन्दर आंखें भीगी हुई अच्छी नहीं लगती”

कहते हुए एक पेपर टिशु आक्षी की ओर बढ़ाता है , आक्षी भी उसे ले लेती है , लेकिन जैसे ही आक्षी टिशु को खोलती है तो क्या देखती है उस पर फोन नं लिखा है ,और वो राहुल की तरफ देखती है , राहुल निगाहों से ही बात करने को कहता है , और आक्षी सबसे नज़रें चुरा कर हामी भर देती है ।

कोई देख ना ले , जल्दी से टिशु को पर्स में रख लिया , मन प्रफुल्लित हो उठा , शायद यही चाहती थी , कुछ मालूम नहीं ये दिल क्या चाह रहा था , लेकिन ये सब अच्छा लग रहा था ।

इशारों-इशारों में दोनों एक-दूसरे को बाॅय करते हैं ।
आक्षी चाचा के घर वापिस आकर एक दिन रहकर उसके बाद परिवार के साथ ही कुरूक्षेत्र घर वापिस आ जाते हैं सब , लेकिन मन में अजीब सी कशमकश है कि राहुल को फोन करें या नहीं ।

दिल कहता बात करो अभी के अभी , और दिमाग कहता ना जाने कैसा हो , किसी को पता चल गया तो क्या होगा ।
इसी कशमकश में दो दिन बहुत मुश्किल से निकलते हैं , तीसरे दिन राहुल को फोन मिलाया ।
उधर से फोन उठाते ही राहुल बोला …..” हैलो , आक्षी जी” ।
“आप कैसे जान गए कि फोन मैंने किया , कोई और भी तो हो सकता था”।

“मेरा दिल कह रहा था आप फोन ज़रूर करेंगी , दो दिन से हर पल आपके ही फोन का इंतजार कर रहा था”।

इस तरह से दोनों का रोज़मर्रा का काम था ,जब तक बात ना कर लेते नींद ना आती , एक बैचैनी महसूस होती।

धीरे-धीरे ना जाने कब ये दोस्ती इतनी गहरी हो गई कि दोनों को एक दिन भी बात किए बिना अच्छा ना लगता ।

इधर आक्षी की पढ़ाई भी पूरी हो चुकी थी , मां- पापा रिश्ते देखने में जुट गए ,लेकिन आक्षी को ये सब अच्छा ना लगता , किसी और से रिश्ता जुड़ने के नाम से ही घबराहट होती ।

उसने अब तो सोच ही लिया था कि राहुल से कह देगी कि उसके बिना नहीं जी सकती , फिर मन में ख्याल आता कि ना मालूम राहुल के दिल में भी उसके लिए कुछ है भी या नहीं , राहुल ने कभी इस तरह से कुछ कहा भी नहीं , बस हमेशा उन दोनों में नार्मल जाॅब पर, कभी साहित्य पर , कभी राजनीति पर या कभी किसी रेसिपि पर बात होती थी ।

अकेला रहने की वजह से राहुल नई-नई डिशेज़ की रेसिपि आक्षी से पूछता और बनाता था ।
राहुल भी आक्षी को चाहता था , लेकिन वो कह नहीं पा रहा था , उसे लगता था कि ना मालूम आक्षी को कैसा लगे !
आखिर एक दिन पापा ने बताया कि उन्हें एक लड़का पसंद आया है और कल वो आक्षी से मिलने आ रहे हैं , आक्षी को सुनकर अच्छा नहीं लगा ‌। आखिरकार उसने राहुल को फोन किया ।
“राहुल , कल मुझे लड़केवाले देखने आ रहे हैं”।
राहुल हंसते हुए …..”ओहो , मतलब तुम्हारी शादी होने वाली है , फिर तो तुम मुझे भुल जाओगी , बात भी नहीं करोगी , बस हर पल अपने उन के ख़्यालो में कोई रहोगी” ।
रूआंसी आवाज़ में…” पता नहीं क्या होगा, ख़ैर जो होगा , देखा जाएगा” ।

“क्यों आक्षी ऐसा क्यों कह रही हो , क्या तुम किसी को चाहती हो” ??
“अगर ऐसा है तो बोल दो मां- पापा को”।

“हां एक मुसाफिर भा गया है , मगर ना जाने वो मुसाफ़िर कहां खोया है , ढुंढ रही हूं , कहीं मिले तो मां- पापा से कहूं” ।

“आक्षी वो मुसाफ़िर तुम्हारे दिल में है , अपने दिल में झांक कर देखो वहीं मिलेगा , बस तुम्हारी सहमति का इंतजार कर रहा था”।

“मैं सहमत हूं “।

ख़ुशी से , “सच , सच आक्षी , क्या तुम मेरे जीवन के दिए में रोशनी करने के लिए बाती बनोगी ??
सच बताऊं तो जब मैंने तुम्हें बस में पहली बार देखा था , मैं तब से ही इस मुसाफ़िर पे दिल हार बैठा था”।

अगले ही दिन राहुल अपने माता-पिता को लेकर आक्षी के घर पहुंच जाता है शादी की बात करने के लिए । दोनों के माता-पिता राजी हो गए इस शादी के लिए ।

*दोनों मुसाफ़िर एक नए सफर पर निकल पड़े , थामे एक – दूजे का साथ , किया वादा ज़िन्दगी भर निभाने का साथ *

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