व्यक्त होना सीखें : प्यार हो या बात, व्यक्त नहीं होंगी तो मूर्ख मानी जाएंगी
![](https://devbhoomisamachaar.com/wp-content/uploads/2022/04/think-and-write-e1687150114812-780x467.jpg)
व्यक्त होना सीखें : प्यार हो या बात, व्यक्त नहीं होंगी तो मूर्ख मानी जाएंगी, स्त्री हो या पुरुष, अगर वह अपने मन की बात मन में रख कर घूमेगा तो उस व्यथा का निराकरण कभी नहीं होगा। आप कोई… नोएडा से स्नेहा सिंह की कलम से…
हम सुनते आए हैं कि न बोलने में नौ गुण। बात तो सही है। अमुक समय पर शब्दों को हजम कर जाना ही चतुराई है। पर जहां सचमुच बोलने की जरूरत है, वहां भी मौनव्रत धारण कर के बेठे रहने वाले को या तो मूर्ख माना जाएगा या फिर यह मान लिया जाएगा कि बेकार है। जिस तरह न बोलने में नौ गुण वाली कहावत प्रचलित है, उसी तरह जो बोले उसी की बेर बिकती है, यह कहावत भी खूब प्रचलित है। सामने वाले व्यक्ति के सामने कब व्यक्त हुआ जाए, जिसके पास इसका ज्ञान है, उस इंसान का मन भाग्य से ही कभी दुखी होगा। बात यह है कि कब नहीं बोलना है और कब व्यक्त होना है, इसके बीच की पतली रेखा को समझना बहुत जरूरी है। जिसके पास इसकी समझ होगी, वह तमाम जंग चुटकी बजा कर जीत लेगा।
एक सीधा सादा उदाहरण है। आप का विवाह हुए एक साल से भी ज्यादा का समय हो गया है। आप अपनी सास के साथ मिल कर रसोई संभाल रही हैं, पर आप को लगता है कि आप सास के साथ किसी काम को जिस तरह कर रही हैं, आप उसी काम को किसी दूसरी तरह से और अच्छा कर सकती हैं। आप उस काम को जिस तरह करना चाहती हैं, वह आप के लिए आसान और सार्थक रहेगा। सास को यह बात शांति से बताएं। यहां अपनी बात न बता कर मन में यह सोच लेना कि सास से कहूंगी तो उन्हें बुरा लगेगा तो?
बेकार में झगड़ा होगा तो? इस तरह की अनेक बातें मन ही मन सोच कर काम के प्रति असहजता अनुभव करने से अच्छा है अपनी बात कह देना। एक बार कह देने से मन का बोझ हलका हो जाएगा। सामने वाला भी समझ जाएगा कि आप को इस तरह नहीं, दूसरी तरह काम करने में मजा आता है। व्यक्त होने से किसी को बुरा लगेगा, यह सोच लेने के बजाय यह सोचना चाहिए कि अपने मन की बात कह देंगी तो सामने वाले व्यक्ति को आप को समझने में आसानी रहेगी। इसी तरह घर के झगड़े का भी है। दूसरी बात, घर में किसी तरह की कहासुनी हुई हो तो शब्दों को किस तरह काबू में रखा जाए, इस बात का भान होना चाहिए। तमाम लोग गुस्से में सामने वाला व्यक्ति अत्यंत दुखी हो जाए, इस हद तक खरीखोटी सुना देते हैं। ऐसा करने के बजाय शांति से समस्या को हल करना चाहिए। ऐसा करने से दोनों पक्षों का सम्मान बना रहेगा।
कहने का ढ़ंग : आप अपने मन की बात किस तरह कहती हैं, इसके ऊपर बहुत कुछ निर्भर होता है। अपने मन की बात कहनी है, पर किस भाषा में कहनी है, इसकी समझ होना बहुत जरूरी है। किसी को बुरा लग जाए, इस टोन में ऐसी भाषा में अपने मन की बात कहने के बजाय ऋजुता अपनाएं। जहां तक हो सके शांत और सरल भाषा में दिल की बात कहें। याद रखिए, कोई व्यक्ति आप से मोटी आवाज में बात कर रहा है तो आप भी उसी की तरह उबल कर बात करेंगी तो अंतत: बात का बतंगड़ ही बनेगा।
पर अगर आप शांति से बात करेंगी तो सामने वाला व्यक्ति जोरजोर से बोलने में शर्मिद॔गी का अनुभव करेगा और वह धीरे-धीरे शांत हो कर बात करने लगेगा। इसी तरह आप सामने वाले व्यक्ति से किसी बात का बुरा लगा हो, तो उससे चिल्ला कर कहने के बजाय शांति से दिल की बात कहें। ऐसा करने से बिना मतलब के बवाल से बच सकती हैं। बेकार में शामिल ऊर्जा खर्च नहीं होगी, मानसिक संताप का अनुभव नहीं होगा और किसी का मन भी दुखी नहीं होगा।
खुद को व्यक्त करें : स्त्री हो या पुरुष, अगर वह अपने मन की बात मन में रख कर घूमेगा तो उस व्यथा का निराकरण कभी नहीं होगा। आप कोई बात मन में रख कर घूमती रहेंगी और सोचें कि सामने वाला व्यक्ति आपकी व्यथा समझ लेगा तो ऐसा कभी नहीं होगा। याद रखिए, बिना मांगे मां भी खाना नहीं देती। इसलिए मन में जो हो, उसे कहना सीखें। कहेंगी तभी सामने वाला व्यक्ति समझेगा कि आप के अंदर क्या चल रहा है? आप कैसी परिस्थिति से गुजर रही हैं? प्यार हो या संताप, मन में क्या चल रहा है, यह बताना जरूरी है।
अक्सर ऐसा होता है कि आप को अपने पार्टनर के प्रति बहुत लगाव होता है, पर यह बात आप उसे बता नहीं सकतीं तो वह कैसे जानेगा कि तुम सचमुच उससे प्यार करती हो। इसलिए बताना जरूरी है। इसी तरह तुम सच्ची हो और बिना कारण तुम्हारे साथ कुछ गलत हो रहा है, अन्याय हो रहा है तो उस समय भी बोलना जरूरी है। अगर नहीं बोलोगी तो लोग तुम्हें मूर्ख समझेंगे और सही होने पर भी तुम्हारे साथ बारबार अन्याय करेंगे। लोग समझ जाएंगे कि चाहे जो भी कहो, इसके साथ जो भी अन्याय करो, चाहे जैसा व्यवहार करो, यह बोलेगी तो है नहीं।
जब लोग तुम्हारे लिए ऐसा समझ बैठेंगे, तब वे आप के साथ अधिक से अधिक उस तरह का व्यवहार करने लगेंगे। इसलिए जहां जरूरी हो, वहां बोलना जरूरी है। एक हद से अधिक किसी की हां में हां मिलाना भी ठीक नहीं है। हर जगह बुद्धिमत्ता का प्रदर्शन जरूरी नहीं है, पर जहां जरूरत हो वहां करना चाहिए। कोई आप को मूर्ख, गैर समझदार या कमजोर मान बैठे, इस हद तक अव्यक्त रहना उचित नहीं है।
👉 देवभूमि समाचार में इंटरनेट के माध्यम से पत्रकार और लेखकों की लेखनी को समाचार के रूप में जनता के सामने प्रकाशित एवं प्रसारित किया जा रहा है। अपने शब्दों में देवभूमि समाचार से संबंधित अपनी टिप्पणी दें एवं 1, 2, 3, 4, 5 स्टार से रैंकिंग करें।