साहित्य लहर

कहानी : संकुचित सोच के परिणामवश

बीना राय

रंजना आज अपने अतीत को निरंतर सोच रही थी। वह सोच रही थी कि किस तरह उसने जब अपने अत्यंत रुखे और बात बात पर उसके साथ मार पीट करने वाले पति के बारे में पिता से बताने पर पिता ने इज्जत की दुहाई दी और वह मान गई। फिर दिन बीतते गए और उसके पति के बुरे स्वभाव में जरा भी सुधार नहीं हुआ बल्कि और भी वह अत्याचार करने लगा तब जब पिता के ना रहने पर जब उसके भाई बहनों को यह पता चला कि वह अपने पति से अलग होने वाली है तो फिर उन्होंने भी अपने इज्जत की दुहाई देते हुए उसे समझाया कि क्या चाहती हो कि तुम्हारे ऐसा करने से हमारे और तुम्हारे बच्चों की शादी में अड़चन आए।

फिर सहते सहते जब और अति हुआ और कोई उसके दुःख से उसे बचाने वाला नहीं मिला तो उसने छोटी मोटी नौकरी के सहारे अपने बच्चों के साथ रहकर उस दुष्ट इंसान से अलग रहने की कोशिश में नाकाम रही क्योंकि उस वक्त तक उसका बड़ा बेटा किशोर हो चुका था और वह रंजना से इस बात पर कभी गिड़गिड़ा कर तो कभी खाना पानी छोड़कर उसे बेबस करता रहा घर और पति को नहीं छोड़ने पर और कहता रहा कि मां तुम सिर्फ मेरे कामयाब होने का इंतजार करो मैं सब बदल दुंगा तुम्हारे इस तरह जाने से रिश्ते नाते और समाज के लोग मुझे अपने तानों से मार डालेंगे।पर आज उसे अच्छी नौकरी करते हुए और उसके शादी हुए भी एक साल हो चुके थे पर रंजना का दुःख अपनी जगह ही था। आज उसके पति ने उसके बहु के सामने उसपर किसी दूसरे का गुस्सा उतारते हुए फिर बुरी तरह पीटा।

जब उसने बेटे से पूछा कि वक्त बदल दिया ना तो उसने कहा कि क्या चाहती हैं कि इतने स्टैंडर्ड कालोनी में इस इंसान से पूछताछ कर के शोर-शराबा करके अपनी इज्जत मिट्टी में मिलाऊ तब उसने कहा कि तो क्यों रखे हुए हो यहां इन्हें मेरे साथ तो उसका जवाब था इस लिए ताकि मेरे रिश्तेदारों में मेरी बुराई न हो कि खुद इतना अच्छा जीवन जी रहा है और पिता को गांव में रखा अलग रखा है। आज वह समझ चुकी थी कि अब कुछ नहीं होने वाला क्यों कि अपने दुखों का कारण तो वह खुद रही है पिता, भाई,बहन और बेटे के संकुचित विचारों को पोषित करते हुए । वह आखिरी सांस तक सबके इज्जत और संकुचित सोच को पोषित करने हेतु न तो ऐसे हैवान पति को छोड़ पाई और न ही घर को पर आज उसे अपने दुखों से उबरने हेतु यह संसार छोड़ना पड़ा।

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