आपके विचार

सच्चा इंसान

सच्चा इंसान, जो बालक बालिका अपनी सभ्यता और संस्कृति के अनुरूप कार्य करते है वे कभी भी कठिनाइयों के दौर से नही गुजरते हैं चूंकि उन्हें कठिनाइयों को पार करने की कला का ज्ञान होता हैं …जोधपुर (राजस्थान) से सुनील कुमार माथुर की कलम से…

बागवान जिस प्रकार बगीचे में वृक्षों व पौधों की डालियों को समय समय पर कटिंग करके , पौधों में खाद पानी देकर, साफ सफाई करके न केवल बगीचे एवं बाग की शोभा ही बढाता हैं अपितु यह भी प्रयास करता है कि कैसे अधिक फल फूल प्राप्त करें और उनकी क्वालिटी अच्छी किस्म की हो, ठीक उसी प्रकार एक मां, शिक्षक, गुरु, समाज सुधारक, सच्चा संत एवं साधु का भी यही प्रयास रहता हैं कि देश का हर नागरिक सुशिक्षित हो, ज्ञानवान, चरित्रवान, संस्कारवान, गुणी, प्रतिभाशाली हो और उसमे दूसरों की मदद करने की उतम भावना हो।

वह न केवल अपने व अपने परिवारजनों के हित और कल्याण की ही सोचे अपितु समूचे समाज व राष्ट्र के हित एवं कल्याण की बात करें। कहने का तात्पर्य यह हैं कि हमारे माता पिता, संरक्षक, गुरू, समाज सुधारक व सच्चे साधु संत भी एक श्रेष्ठ माली ( बागवान ) हैं जो समय समय पर युवापीढ़ी को सही मार्गदर्शन प्रदान कर उन्हें देश का एक योग्य नागरिक व देशभक्त नागरिक बनातें है।

जो बालक बालिका अपनी सभ्यता और संस्कृति के अनुरूप कार्य करते है वे कभी भी कठिनाइयों के दौर से नही गुजरते हैं चूंकि उन्हें कठिनाइयों को पार करने की कला का ज्ञान होता हैं और वे उन्हें हंसते मुस्कुराते आसानी से पार कर अपना लक्ष्य हासिल कर लेते हैं। अतः ज्ञानी व गुणी बनने के साथ ही साथ व्यक्ति व्यवहारिक भी बनें। केवल किताबी ज्ञान से कुछ भी हासिल होने वाला नही है।

जीवन में ज्ञान की ज्योति निरंतर जलती रहनी चाहिए वह कभी भी बूझ न पायें इस बात का ख्याल रखना चाहिए। जीवन की ठोकरे हमें जीवन में बहुत कुछ सिखाती है और जो ठोकरें खाकर भी न संभले वह इंसान नहीं पशु समान हैं। जब मंदबुद्धि वाला इंसान भी समझदार हो सकता है तो फिर हम क्यों नहीं। जिसमें इंसानियत का गुण हैं, वही सच्चा इंसान हैं।

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सच्चा इंसान, जो बालक बालिका अपनी सभ्यता और संस्कृति के अनुरूप कार्य करते है वे कभी भी कठिनाइयों के दौर से नही गुजरते हैं चूंकि उन्हें कठिनाइयों को पार करने की कला का ज्ञान होता हैं ...जोधपुर (राजस्थान) से सुनील कुमार माथुर की कलम से...

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