आपके विचार

बच्चों के लिए अब त्योहारों का मतलब पैसा खर्च करना

वीरेंद्र बहादुर सिंह

त्योहारों का सीजन आ गया है। नवरात्र बीत गई है। दीवाली भी आ गई है। लगातार कोरोना की वजह से तीन साल लोग त्योहार ठीक से नहीं मना सके, इसलिए इस बार लोग खूब धूमधाम से त्योहार मनाएंगे। बाकी त्योहार तो ठीक हैं, पर दीवाली पर प्रदूषण और शोरशराबा होने की वजह से थोड़ी घबराहट जरूर होती है।


थोड़ा संवेदनशील बनें

तीन साल पहले पड़ोसी से मेरा छोटा सा झगड़ा हो गया था। सच बात तो यह है कि मेरे वह पड़ोसी सामान्य संयोगों में अच्छे और संवेदनशील व्यक्ति हैं। तकरार का कारण दिवाली की वजह से कालेज में पढ़ता उनका बेटा और उसके मित्र थे। सभी असह्य शोर करने वाले ऊंची डेसीबल के फटाकड़े फोड़ रहे थे और वह भी ठीक मेरी खिड़की के सामने। इसमें मेरी गली काफी छोटी और संकरी है, जिससे सारा धुआं मेरे और आसपास के घरों में घुस रहा था। उनमें से ज्यादातर घरों में सीनियर सिटीजन रहते थे, जो कमरे में धुआं आने की वजह से खांस रहे थे। ऐसे में खिड़की खोलने का मतलब था धुएं को अधिक आने का आमंत्रण देना था।

पटाखे के कारण हम में से ज्यादा रहने वाले (जिसमें सीनियर सिटीजन भी शामिल थे? की आंखें पटाखे के केमिकल के कारण जल रही थीं और जिन घरों में बिल्ली और कुत्ते जैसे जानवर पले थे, वे भी इस तकलीफ से गुजर रहे थे, साथ ही वे डरे हुए भी बहुत थे। मात्र पालतू जानवर ही नहीं, पक्षी, बंदर और अन्य जानवर भी डर के मारे चीख रहे थे। हम जानते हैं कि उनके कान आवाज के प्रति काफी सेंसिटिव होते हैं और वे काफी चौड़ी रेंज की फिक्वंसी की आवाज सुनते हैं। वे जो पटाखे फोड़ रहे थे, उनमें से ज्यादातर पटाखे बम्ब के नाम से जाने जाते हैं। उनकी आवाज सुन कर तो सभी पशु-पक्षियों को यही लग रहा था कि वे युद्ध के मैदान में आ गए थे।

मेरी और अन्य सभी पड़ोसियों की विनती पटाखा फोड़ रहे सज्जन के बहरे कानों से गुजर कर रह गए। जैसे-जैसे गली के लोग शिकायत करने लगे, वैसे-वैसे यह पूरा इश्यू बच्चों और बड़ों के बीच एकदम गरम और कड़वा रूप लेने लगा। उनका कहना था कि दिवाली साल में एक बार ही आती है तो क्या बच्चे साल में एक दिन भी आनंद नहीं उठा सकते हैं? उनकी इस बात पर मैं ने उनसे निवेदन किया कि कालोनी के मिदान में जा कर पटाखा फोड़ें, पर उन्हें यह मंजूर नहीं था। आखिर हमें उस साल त्योहार के व्यंजनों की मिठास की अपेक्षा इस झगड़े की कड़वाहट अधिक याद रही।


त्योहार मनाने का सही मतलब क्या है?

त्योहार मनाने का हर आदमी के लिए अलग-अलग मतलब है। उदाहरणस्वरूप बच्चों के लिए त्योहार यानी कि छुट्टियां, मिठाई, दोस्तों और सगे-संबंधियों से मिलना, नए कपड़े पहनना, गिफ्ट पाना और पटाखे फोड़ना। दूसरी ओर युवाओं यानी कि नौकरी-धंधा वालों के लिए नौकरी-धंधा से छुट्टी और परिवार वालों के साथ रहने का सुनहरा मौका। हम बहुत ही भाग्यशाली हैं कि हमने भारत जैसे देश में जन्म लिया है। जहां हमें तमाम त्योहार मनाने का अवसर मिलता है। क्या आप जानते हैं कि त्योहार अस्तित्व में इसलिए आए हैं, क्योंकि वे बदलती ऋतु के साथ जुड़े हैं। यह सीजन खेती द्वारा इंसान की प्रवृत्तियों के साथ जुड़ा है। अगर सीखना चाहो तो ये त्योहार हमें एक जरूरी पाठ पढ़ाते हैं कि हम अपनी प्रकृति के प्रति संवेदनशील रह कर उसके साथ जुड़ाव सीखना चाहिए।


आधुनिक जमाने के त्योहारों की ट्रेजडी

बहुत ज्यादा दुख की बात यह है कि आजकल के बच्चे त्योहार मनाने का सही महत्व जाने बिना त्योहार मना रहे हैं। जानकारी देने के बजाय उन्हें उपभोक्तावादी संस्कृति की ओर धकेला जा रहा है। जिससे वे त्योहारों का अर्थ चीजों पर पैसा खर्च मान रहे हैं और दुर्भाग्य से ज्यादातर त्योहारों के प्रति नई पीढ़ी सहिष्णुता दिखाने के बजाय त्योहार इस तरह मनाती है कि जानवरों और पक्षियों को चोट पहुंचती है। मकर संक्राति पर उपयोग में लाया जाने वाला मांझा केवल पक्षियों को ही नहीं, इंसानों को भी चोट पहुंचाता है। होली के कृत्रिम रंग हमारी त्वचा को ही नहीं, पृथ्वी को भी नुकसान पहुंचाते हैं। मैं ऐसे तमाम बच्चों को जानता हूं, जो पर्यावरण को ले कर अपने अभिभावकों से भी अधिक जागृत हैं। पैरेंटिंग का अर्थ यह भी है कि हमें आने वाली हकीकतों के साथ तालमेल बैठाना सीखना चाहिए और क्लाइमेट चेंज और प्रदूषण जैसी वैश्विक चुनौतियों का आज के समय में महत्व यह है कि हम त्योहारों को इस तरह मनाएं कि हमारा पर्यावरण प्रदूषित न हो।



आजकल के त्योहारों में क्या खुट रहा है

आज त्योहार अपनी एक मूलभूत महत्ता खो रहे हैं। भारत का हर त्यौहार तमाम पौराणिक कहानियों से घिरा है। पर नई पीढ़ी को इस सब के बारे में बहुत कम जानकारी है। इसका आसान रास्ता यह है कि अभिभावकों को अड़ोस-पड़ोस के बुजुर्गों अथवा परिवार के दादा-दादी को इस प्रवृत्ति में इन्वाल्व करना चाहिए और उनके माध्यम से बच्चों को हर त्योहार से जुड़ी पौराणिक कहानियों की जानकारी दिलाना चाहिए। कहानी सुनाने के बाद बच्चों को प्रोत्साहित करना चाहिए कि वे इन पौराणिक कथाओं का रोल प्ले अथवा कठपुतली खेल करें। उदाहरण के रूप में छोटी उम्र के बच्चे दिवाली के दौरान रामायण की किसी घटना अथवा होली के दौरान प्रह्लाद की कहानी का प्रस्तुतिकरण कर सकते हैं। रंगोली की बात करें तो यह बच्चों की रचनात्मकता और गणित के कौशल का विकास करती है। शायद आप को पता होगा कि रंगोली के रंगों में चूना होता है, जो चीटियों को भगाता है। आप को पता ही है कि कितना अधिक विज्ञान हर तत्व में है।



त्योहारों के व्यंजनों को नहीं भुलाया जा सकता

अंत में हर त्योहार में शामिल है बदलती ऋतु के साथ तालमेल बैठाने वाले व्यंजन और बड़ियां, ये सभी खाद्य पदार्थ हमारे स्वास्थ्य के लिए लाभदायक भी हैं। इसीलिए जरूरी है कि बच्चों को यह भी जानना जरूरी है कि किस त्योहार में कौन सा खास तरह का व्यंजन बनाया जाना चाहिए। इस तरह बच्चों को अधिक होलिस्टिक (सर्वग्राही) लर्निंग और अपनी संस्कृति के साथ गहराई फे जुड़ने का मौका मिलेगा।

आने वाली पीढ़ी को अपनी अपनी संस्कृति की धरोहर को सौंपना पुरानी पीढ़ी की बहुत ही महत्वपूर्ण जिम्मेदारी तथा फर्ज है। यह पूरी प्रक्रिया शेयरिंग और केयरिंग के सही मूल्यों के साथ हो तो यह उससे भी महत्वपूर्ण है। हमारे त्योहार ही हमें हमारी जमीन और संस्कृति के साथ जोड़े रखती है। तो चलिए हम इन त्योहारों को सही अर्थ में मनाएं प्रकृति और अन्य का सम्मान करते हुए।



¤  प्रकाशन परिचय  ¤

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वीरेंद्र बहादुर सिंह

लेखक एवं कवि

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जेड-436-ए, सेक्टर-12, नोएडा-201301 (उत्तर प्रदेश) | मो : 8368681336

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देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड)

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