नाम की महिमा
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सुनील कुमार माथुर
लोग प्रायः यह कहते है कि नाम में क्या धरा ( रखा ) हैं , लेकिन जीवन में नाम का अपना ही महत्व हैं । अखबार में नाम और अपना फोटो प्रकाशित करवाने के लिए लोग इधर उधर मुंह मारते फिरते हैं । लोग आज अपने नाम और पद को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हैं । वे भले ही आम जनता के बीच में दो शब्द भी नही बोल सकते हैं और न ही किसी प्रकार का लेखन का कार्य सही ढंग से करना जानते है । लेकिन पत्र पत्रिकाओ में अपना छपा नाम देखकर बेहद खुश होते हैं । मानों उन्हें लाखों की लाटरी लग गयी हो ।
यहीं वजह हैं कि जब हम गांधी जयंती , शास्त्री , नेहरू , महाराणा प्रताप , सुभाष चन्द्र बोस , डॉ अब्दुल कलाम आजाद , डॉ राजेन्द्र प्रसाद , अटल बिहारी वाजपेई , मुंशी प्रेमचन्द जैसे महापुरुषों की जयंती व पुण्यतिथि मनाते हैं तो सभी वक्ता प्राय : यही कहते है कि हमें इनके जीवन से प्रेरणा लेनी चाहिए । लेकिन यह नहीं बताते कि इनका जीवन कैसा था । चूंकि वे खुद भी नही जानते हैं । उनका बोलने का मूल ध्येय यही होता है कि कल के अखबार में हमारा नाम आये कि इन्होंने भी अपने विचार व्यक्त किये ।
बस यही गंदी सोच आज मीडिया ने आत्मसात कर ली है । अखबार में हमें कहीं भी महापुरुषों के जीवन दर्शन के बारे में पढने को नहीं मिलता है । पहले जो पाठ महापुरुषों के पाठ्यक्रम में थे वे भी शिक्षा में सुधार के नाम पर हटा दिये गये । आज का साहित्यकार भी यही उम्मीद करता है कि उसकी लिखी पुस्तक की समीक्षा करते वक्त समीक्षक हर पैराग्राफ में लेखक का जमकर गुणगान करें ।
यहां तक कि अब तो उन्हीं को मान सम्मान मिलता है जो चापलूसी करने में माहिर हो । एक प्रशस्ति पत्र एवं स्मृति चिन्हृ पाने के लिए लोग न जाने कितने समय तक चापलूसी करते हैं । यहां तक की वे आयोजको के तलवे तक चाटने से नहीं चुकते है । वहीं दूसरी ओर ऐसे भी लेखक हैं जो संपादकों व प्रकाशकों को खरी खोटी सुनाने से भी नहीं चुकते हैं चूंकि वे जानते हैं कि उनकी लेखनी में दम हैं तो उनकी रचना कहीं भी प्रकाशित हो जायेगी । इसलिए वे चापलूसी नहीं करते हैं ।
वहीं दूसरी और ऐसे भी लेखक हैं जिनका ध्येय यही है कि पत्र पत्रिकाओ का स्तर कैसा भी हो लेकिन उसमें उनका नाम छपना चाहिए । यही वजह हैं कि आज साहित्य का स्तर गिर रहा हैं व कोई कोई तो संपादक मंडल भी रचनाकार को यह सलाह देते है कि इधर उधर करके कोई रचना बनाकर भेज दीजिये यानि कि चोरी करके रचना लिखने की सलाह भी देते है ।
भला ऐसे माहौल में श्रेष्ठ साहित्य की कैसे उम्मीद की जा सकती हैं । श्रेष्ठ साहित्य लेखन हेतु श्रेष्ठ चिंतन मनन का होना नितांत आवश्यक हैं । श्रेष्ठ साहित्यकारों को अपने नाम की भूख नही होती है । वे तो सदैव श्रेष्ठ विचारों को जन जन तक पहुंचाते हैं यही उनका रचनात्मक मिशन हैं और यही उनकी श्रेष्ठता की पहचान हैं।
¤ प्रकाशन परिचय ¤
![]() | From »सुनील कुमार माथुरस्वतंत्र लेखक व पत्रकारAddress »33, वर्धमान नगर, शोभावतो की ढाणी, खेमे का कुआ, पालरोड, जोधपुर (राजस्थान)Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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