आपके विचार

कब तक लुटती रहेगी बेटियों की अस्मिता…?

ओम प्रकाश उनियाल

जब घर में बेटी पैदा होती है उसे लक्ष्मी की संज्ञा दी जाती है। हालांकि समाज में ऐसे भी लोग हैं जो बेटी पैदा होने पर शोक मनाते हैं। यहां तक कि बधाई देने में भी हिचकिचाते हैं। जबकि बेटा पैदा होने पर हर तरफ से बधाईयां ही बधाईयां मिलती रहती हैं। समाज की रूढ़िवादी अवधारणा आज भी यही बनी हुई है कि बेटी तो बोझ होती है।

आज के बदलते समाज में जबकि अनेकों बेटियां बड़ी होकर शिक्षित बनकर समाज में नाम ऊंचा कर रही हैं। बहुत कम परिवार हैं जो बेटियों को स्वतंत्रता प्रदान करते हैं आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं। अधिकतर देखा गया है कि उनको बचपन से ही इस प्रकार से डराना शुरु कर दिया जाता है कि उन्हें घर की देहरी लांघने में भी हिचकिचाहट होने लगती है।

एक तो पहले से ही लिंग भेदभाव किया जाता है दूसरे तरह-तरह की पाबंदियां उस पर थोप दी जाती हैं। ज्यादातर लोग बेटियों के भविष्य के बारे में कम और उनके विवाह के बारे में पहले से ही चिंतित होने लगते हैं। समाज का कड़ुवा सच यह है कि बेटी को अपने घर से लेकर दूसरे घर में जाने पर भी दबकर ही रहना पड़ता है।

बचपन से ही उसे कमजोर कर दिया जाता है। यही कारण है कि बेटियां दरिंदों का शिकार बनती हैं। उसकी शक्ति तो परिवार पहले ही हर बात को लेकर कचोट-कचोटकर इस कदर क्षीण कर देते हैं कि वह किसी से मुकाबला करने में भी झिझक महसूस करती है। बेटा कुछ भी करे तो माफ, बेटी जरा किसी से बात भी कर बैठे तो पास-पडौस से लेकर परिवार में तरह-तरह की बातें बननी शुरु।

एक तरफ ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ का नारा दिया जाता है दूसरी तरफ समाज में घटिया सोच रखने वाले दरिंदे बेटियों की अस्मिता से खुलेआम खिलवाड़ कर सीना चौड़ा कर खुद को गर्वान्वित महसूस करते हैं। ताजी घटना उत्तराखंड राज्य की है। जहां ऋषिकेश के एक क्षेत्र में ऊंची राजनीतिक पहुंच के दरिंदों ने जिस प्रकार से जघन्य अपराध को अंजाम दिया वह अवर्णननीय है।

जिससे पहाड़ के लोगों में भारी आक्रोश बना हुआ है। देश में हर रोज न जाने कितनी बेटियां दरिंदगी का शिकार होती हैं। लेकिन उनकी आवाज दबकर रह जाती है। या कुछ दिन बाद हो-हल्ला मचने के बाद राजनीतिक, प्रशासनिक दबाव व पुलिस की शिथिल एवं निष्क्रिय कार्य-प्रणाली, लचर न्याय-व्यवस्था के चलते दब जाती हैं।

जिसके कारण हर प्रकार के अपराधियों को शह मिलती है। बेटियों को बचाना है तो सरकार और समाज को पूरी तरह से जागरूक होना पड़ेगा। ‘बेटी बचाओ….’ जैसे नारों को दीवारों, वाहनों पर पोतकर नहीं। बेटियों वाले परिवार बेटी को सशक्त बनाएं। बेटियां खुद भी सशक्त बनें।


¤  प्रकाशन परिचय  ¤

Devbhoomi
From »

ओम प्रकाश उनियाल

लेखक एवं स्वतंत्र पत्रकार

Address »
कारगी ग्रांट, देहरादून (उत्तराखण्ड) | Mob : +91-9760204664

Publisher »
देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: Devbhoomi Samachar
Verified by MonsterInsights