आक्रोशित होकर कानून अपने हाथ में न लें
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ओम प्रकाश उनियाल
किसी समस्या का समाधान आक्रोशित होकर हिंसक होना ही नहीं है बल्कि शांतचित रहकर, सकारात्मक ढंग से सोच-विचार कर भी हल निकाला जा सकता है। लेकिन, हमारी मानसिकता इतनी कमजोर या जड़ हो चुकी है कि जरा-सा किसी ने भड़काया नहीं कि आपा खो बैठते हैं।
अपना आक्रोश सबसे पहले सरकारी, गैर-सरकारी संपत्तियों पर निकालते हैं। उस समय यह नहीं सोचते कि जो नुकसान हम कर रहे हैं उसका भार हम पर ही पड़ेगा। हम ही लोगों को तरह-तरह परेशानियों का सामना करना पड़ेगा। यही नहीं जान-माल की जो क्षति होती है वह अलग।
प्रत्येक नागरिक को अपनी मांगे उठाने का पूरा अधिकार है लेकिन जायज तरीके से। हिंसक बनकर या हिंसा की राह अपनाकर नहीं।
जैसाकि, अभी अग्निपथ योजना के विरोध करने का जो तरीका युवाओं ने अपनाया उससे पता चलता है कि युवा-वर्ग इतना कुंठित हो चुका है कि उसमें सोचने-समझने की शक्ति भी समाप्त हो चुकी है।
माना कि बेरोजगारी से युवा परेशान हैं मगर कानून को हाथ में लेकर क्या समस्या का निदान संभव है? यह तो अपने पैरों पर स्वयं कुल्हाड़ी मारने वाली बात हुई। युवा ही जब आक्रोशित व हिंसक कदम उठाएगा तो क्या उससे देशहित की अपेक्षा की जा सकती है?
अक्सर यह देखा गया है कि जब भी हिंसक आंदोलन होते हैं तो भीड़तंत्र को जोड़ने का प्रयास किया जाता है। किसी भी मुद्दे का विरोध करने के पीछे किसी न किसी का हाथ होता है। उसमें चाहे राजनैतिक दल हों या अन्य स्वयं को जनता के हितैषी बताने वाले तथाकथित संगठन व लोग।
जिनका काम मुद्दा उछालना या चिंगारी सुलगाना होता है। बाकी काम नासमझ खुद ही करते हैं। हर बात का विरोध मुद्दा बनाकर करने की आदत हमें छोड़नी होगी। यह ध्यान रखें कानून के हाथ काफी लंबे होते हैं। कानून से बाहर न जाएं। कोई भी गैर-कानूनी काम न करें जिससे आपकी इज्जत पर दाग लगे।
¤ प्रकाशन परिचय ¤
![]() | From »ओम प्रकाश उनियाललेखक एवं स्वतंत्र पत्रकारAddress »कारगी ग्रांट, देहरादून (उत्तराखण्ड) | Mob : +91-9760204664Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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