पेंशन बिना कर्मचारी कैसे जीएं

सुनील कुमार माथुर
राजस्थान सरकार एक ओर करोडों रूपये के हर रोज बडे बडे विज्ञापन देकर दैनिक समाचार पत्रों को आर्थिक लाभ पहुंचा रही है वहीं दूसरी ओर शिक्षकों को सेवानिवृति के बाद पेंशन से वंचित रख कर उन्हें आर्थिक व मानसिक तनाव भुगतने के लिए मजबूर कर दिया हैं। जबकि पेंशन कर्मचारियों का हक है । वे कोई भिक्षा नहीं मांग रहे है।
एक ओर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कह रहे है कि सेवा ही कर्म सेवा ही धर्म हैं और उनकी सरकार ने राजस्थान में 1 जनवरी 2004 और उसके बाद नियुक्त हुए कार्मिकों के लिए पूर्व पेंशन योजना ( ops ) लागू की हैं और सामाजिक सुरक्षा पेंशन के अंतर्गत वृध्दजनों , विशेष योग्यजन , विधवा , एकल नारी सहित लगभग एक करोड लोगों को पेंशन दी जा रही हैं ।
जब सरकार अपने जनप्रतिनिधियों को पेंशन दे रही है तो फिर राजस्थान स्वैच्छिक ग्रामीण शिक्षा सेवा नियम में नियुक्ति पर पेंशन का मामला क्यों लटका रखा है । ये शिक्षक पहले अनुदानित शिक्षण संस्थाओं में स्वीकृत पदों पर कार्यरत थे । हाईकोर्ट ने पहले 2018 में अपने फैसले में कहा था कि राजस्थान सिविल सेवा ( अंशदाई ) पेंशन नियम 2005 लागू से पूर्व नियुक्त अनुदानित शिक्षण संस्थाओं के कर्मचारियों को पेंशन नियम 1996 के अनुसार सरकारी सेवकों के समान पेंशन से वंचित करना असंवैधानिक है । लेकिन सितम्बर 2021 में हाईकोर्ट ने 2018 का आदेश वापस ले लिया ।
जब सरकार अपने आप को लोक कल्याणकारी सरकार कहती है तो फिर इन कर्मचारियों को पेंशन से वंचित रखना कहा तक उचित है। जब सरकार ने ओल्ड पेंशन स्कीम लागू कर दी तो फिर इन कर्मचारियों को पेंशन क्यों नहीं । आज ये कर्मचारी आर्थिक व मानसिक वेदना झेल रहे है । अतः सरकार जनहित में इन कर्मचारियों को पेंशन देकर इन्हेें न्याय प्रदान करें । ताकि ये कर्मचारी भी अपने परिवारजनों के संग आदर्श व सुखी जीवन व्यतीत कर सके । पेंशन कर्मचारियों का हक है न कि भिक्षा।
¤ प्रकाशन परिचय ¤
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From »सुनील कुमार माथुरस्वतंत्र लेखक व पत्रकारAddress »33, वर्धमान नगर, शोभावतो की ढाणी, खेमे का कुआ, पालरोड, जोधपुर (राजस्थान)Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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