साहित्य का सृजन संदर्भ और इसकी वैचारिक प्रवृत्तियां
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राजीव कुमार झा
सदियों से साहित्य मनुष्य को विचार और चिंतन की प्रेरणा प्रदान करता रहा है और यह संवेदनाओं की अभिव्यक्ति का सबसे जीवंत और पुराना माध्यम है ! साहित्य अनुभूतियों पर आधारित होता है और इनके माध्यम से कल्पना के धरातल पर लेखक यथार्थ का अन्वेषण करता है !
पौराणिक ग्रंथों में वर्णित असंख्य कथा कहानियों कविताओं के अलावा लोक साहित्य को इसकी पृष्ठभूमि के रूप में देखा जा सकता है ! वैदिक काल के बाद हमारे देश में जब सभ्यता का विकास हुआ तो कालांतर में हमारा सामाजिक जीवन भी व्यवस्थित रूप से आकार ग्रहण करने लगा !
इसी अनुरूप साहित्य का भी विकास हुआ और इस अनुरूप इसमें काफी परिवर्तन दृष्टिगोचर होते हैं ! साहित्य की मीमांसा कठिन है और आधुनिक काल में समाज , संस्कृति और राजनीति से जुड़े प्रश्न साहित्य के सृजनात्मक संदर्भ के रूप में प्रमुखता से उभरकर सामने आये ! सदियों से लेखकों और कवियों को इनसे रचनाकर्म की प्रेरणा मिलती रही है ! जीवन के अनेकानेक अर्थों और प्रसंगों की विवेचना साहितय सृजन का प्रमुख ध्येय है !
यह सांस्कृतिक धरातल पर मनुष्य के मनोभावों की विवेचना करता है ! भारत समृद्ध साहित्यिक परंपरा का देश है और संस्कृत के अलावा तमिल और अन्य भाषाओं में यहां साहित्य लेखन का प्रचलन रहा है ! मध्यकाल में यहां अनेक क्षेत्रीय भाषाओं का विकास हुआ और इनमें साहित्य लेखन का प्रचलन हुआ ! हिंदी भाषा और साहित्य को भी इसमें रखा जा सकता है !
भारतीय साहित्य से हमारा आशय यहां की समस्त भाषाओं में लिखे जाने वाले साहित्य से है और इसमें वैचारिक धरातल पर एकरूपता की प्रवृत्ति विद्यमान रही है और साहित्य का उद्देश्य समष्टि यानी समाज का कल्याण और मानवता का उत्थान रहा है ! भरत मुनि को यहां कला और साहित्य के प्रथम चिंतक के रूप में देखा जाता है !
यद्यपि इनके आविर्भाव से पहले रामायण और महाभारत की रचना यहां हो चुकी थी और इसके मूल में कृषि सभ्यता के विकास के बाद इस काल में शासन , नीति , धर्म और मनुष्य के आचार विचार को व्यवस्थित रूप देने से जुड़े चिंतन की भूमिका महत्वपूर्ण रही ! इन दोनों ही महाकाव्यों के कथानक के केन्द्र में इन बातों को प्रमुखता से स्थित देखा जा सकता है!
आगे गुप्तकाल में जिसे भारत के इतिहास का स्वर्णकाल भी कहां जाता है , इस दौर में संस्कृत साहित्य की अभूतपूर्व उन्नति हुई और काव्य के दोनों ही रूपों यानी श्रव्य और दृश्य काव्य में जीवन के कई प्रसंगों की सूक्ष्म भावाभिव्यंजना का चित्रण हुआ है ! प्रेम इस काल के साहित्य का प्रमुख विषय है और इसके माध्यम से साहित्य मनुष्य के जीवन के समस्त नये आयामों को कला के फलक पर सुंदरता से उकेरने में प्रवृत्त प्रतीत होता है!
कालिदास जो इस काल के प्रमुख कवि और नाटककार हैं , इनकी कृतियों ने इस दृष्टि से साहित्य के सृजन के नये सन्दर्भों को उद्घाटित किया और आज भी इनकी कृतियों को रसाभिव्यंजना के निकष पर लौकिक जीवन के उच्च सौंदर्य बोध का मूल उपादान माना जाता है ! कालिदास के अलावा भास , भवभूति और बाणभट्ट के काव्य और नाट्यलेखन ने हमारे देश के साहित्य लेखन को काफी प्रभावित किया है ! शूद्रक के नाटक मृच्छकटिकम की चर्चा भी इस संदर्भ में समीचीन है !