साहित्य लहर

कविता : दोस्त के पास

दोस्त के पास… कोयल सी कूकती वह ऐसी लगती कोई जीवनराग अक्सर पास में उसके पायल की झंकार में सुनाई देता रहता रोज नदी के पार उसका चेहरा आलोकित हंसता शाम में सूरज उसको कहता… #राजीव कुमार झा

मेरे पास
अब कोई है
उसके हाथ
कोमल हैं
वह किसी दिन
अकेली खड़ी
मुझे देखती
हंस पड़ी
मानो दोस्त हो!

मेरे सपनों की
रानी
दीवानी हो गई
सांसों में महक
रही
बेहद मनचली
सुबह की महकती
गुलाब की कली

शीत धूप बारिश में
भीगती
हर मौसम की बहार
मेरी यार!
दिन में चार बार
कुशल क्षेम खैरियत
पूछती
सूरज के उगते

कोयल सी कूकती
वह ऐसी लगती
कोई जीवनराग
अक्सर पास में
उसके पायल की
झंकार में
सुनाई देता रहता
रोज नदी के पार
उसका चेहरा
आलोकित हंसता

बिहार : मंदिर और देवालय

शाम में सूरज
उसको कहता
कितना सुंदर लगता
चांदनी रात में
तुम्हारा श्रृंगार
हिमालय के आंगन में
गंगा की अविरल
बहती धार


दोस्त के पास... कोयल सी कूकती वह ऐसी लगती कोई जीवनराग अक्सर पास में उसके पायल की झंकार में सुनाई देता रहता रोज नदी के पार उसका चेहरा आलोकित हंसता शाम में सूरज उसको कहता... #राजीव कुमार झा

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