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खत और मोबाइल

खत और मोबाइल… वो भी क्या दिन थे। समय निकाल कर खत लिखा करते थे और फिर उन्हें पोस्ट करने के बाद जवाब आने का इन्तजार करते थे। हम न केवल खत का ही इन्तजार करते थे अपितु पोस्टमैंन कि भी इन्तजार करते थे। उसकी साइकिल पर लगी घंटी की टन टन सुनकर हम डाक लेने के लिए दौड पडते थे।‌ #सुनील कुमार माथुर, जोधपुर, राजस्थान

खत ( पत्र, चिट्ठी, ) का जीवन में बड़ा ही महत्व है। यह हमारे संदेश वाहक है और एक व्यक्ति के सुख दुःख दूसरे व्यक्ति तक पहुंचाने में अपनी अहम भूमिका अदा करते थे। लेकिन आज खत नदारत हो गये। आज की पीढी ने पोस्टमैन, लेटर बाक्स, पोस्टकार्ड, अन्तर्देशीय पत्र व डाक विभाग से जारी लिफाफे तक नहीं देखे। ये खत उनके लिए अजायबघर की चीजें हो गई है। जब यह देखते है और सुनते है तो दिल को बडी ठेस पहुंचती है।

वो भी क्या दिन थे। समय निकाल कर खत लिखा करते थे और फिर उन्हें पोस्ट करने के बाद जवाब आने का इन्तजार करते थे। हम न केवल खत का ही इन्तजार करते थे अपितु पोस्टमैंन कि भी इन्तजार करते थे। उसकी साइकिल पर लगी घंटी की टन टन सुनकर हम डाक लेने के लिए दौड पडते थे।‌ चूंकि वह हमारे लिए सुख दुःख के समाचार लाता था।‌

इसके अलावा पोस्टमैन रोजगार के लिए नियुक्ति पत्र, पत्रिकाएं, मनिआर्डर लाता था।‌ डाक मे अधिकतर पोस्टकार्ड, अन्तर्देशीय पत्र व लिफाफे अधिक होते थे।‌ पत्र पढ कर मन गद् गद् हो जाया करता था। चूंकि पत्र लेखन भी एक कला हैं। खत को सही ढंग से हर कोई नहीं लिख सकता।‌ चूंकि खत लिखने के लिए अच्छी भाषा, राइटिंग, तरीका, सुंदर सुंदर विचारों, भावों, भाषा शैली मिलती थी। कभी कभी कोई पत्र महत्वपूर्ण होता था तो उसे एक तार मे डाल कर दीवार पर लटका दिया जाता था और जब जरूरत होती निकाल कर देख लिया जाता था।

घर में एक आला होता था। जहां कांच, कंघा, तेल की शीशी, सेविंग का सामान रखा रहता था और जिस बाक्स में सेविंग का सामान होता था उसके पीछे हर रोज आई डाक रख दी जाती थी ताकि बाहर गया हुआ परिवार का सदस्य आता तो वहां डाक देखकर सभी हाल चाल जान लेता था और घर का मुखिया ही पत्रों का जवाब दिया करते थे।‌ इसलिए जहां पत्र रखे जाते थे उसे कांच का आला कहा जाता था।‌

उस समय जगह जगह लेटर बाक्स लगे होते थे। अतः पत्र पोस्ट करने में कोई भी परेशानी नहीं होती थी और हर क्षेत्र में डाकघर होते थे। इसलिए डाक सामग्री खरीदने में भी कोई भी परेशानी नहीं होती थी। लेकिन आज यह सब बातें पुरानी हो गई। मोबाइल क्या आया सब कुछ छू मंतर हो गया। डाक आनी बंद हो गई। अनेक डाकघर बंद हो घये। लेटर बाक्स हटा दिये गये। मोबाइल पर हाथों-हाथ बात होने, विडियो कालिंग होने, मेल व व्हाट्सएप पर संदेश व सामग्री मिलने, गूगल पर हर समस्या का तत्काल हल मिलने से खतों का चलन बंद हो गया।

हाथों-हाथ बात होने से खतों का इंतजार करना बंद हो गया। लेकिन एक बात आज भी विचारणीय है कि मोबाइल के आने से बच्चों के सोचने-समझने, चिंतन मनन की शक्ति का हृास हुआ हैं। लिखने की शक्ति, भाषा की शुद्धता, सुन्दर राइटिंग का भी हृास हुआ है। हां व्हाट्सएप पर जो मैसेज आते हैं। अगर आप उन्हें ध्यान से पढे तो आपकों पता चलेगा कि हमारे बच्चों की हिन्दी कितनी कमजोर है। वह अलग बात है कि हम उनके भावों को समझ लेते है, वरना हिन्दी का बंटाधार है।

कविता : एक बंजारा


खत और मोबाइल... वो भी क्या दिन थे। समय निकाल कर खत लिखा करते थे और फिर उन्हें पोस्ट करने के बाद जवाब आने का इन्तजार करते थे। हम न केवल खत का ही इन्तजार करते थे अपितु पोस्टमैंन कि भी इन्तजार करते थे। उसकी साइकिल पर लगी घंटी की टन टन सुनकर हम डाक लेने के लिए दौड पडते थे।‌ #सुनील कुमार माथुर, जोधपुर, राजस्थान

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