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विचार वीथिका : जीवन साधना संयम का नाम है

विचार वीथिका : जीवन साधना संयम का नाम है… जीवन का भटकाव समाप्त हो जाता है। मन की चंचलता से मनुष्य विवेक के भाव से दूर होता जाता है और फिर पाप और पुण्य के अलावा धर्म अधर्म में भेद नहीं कर पाता है। #राजीव कुमार झा

जीवन में अपने मन को संयम में रखना सबका फर्ज है। मन की चंचलता से आदमी किसी काम को पूरा नहीं कर पाता और वह भटकता रहता है। कबीर ने संसार की माया को मन की चंचलता का कारण बताया था । यह बात सही है। संसार के प्रति अत्यधिक आसक्ति का भाव मनुष्य के मन को चंचल बनाता है।

सबको ईश्वर का सच्चा ध्यान करना चाहिए और विषय वासनाओं से उपर उठकर अपनी आत्मा के उद्धार में प्रवृत्त होना चाहिए। मन की चंचलता से आदमी यौन सुख स्त्री धन दौलत पाने की भावना से भर उठता है। मनुष्य के मन में स्थिरता होनी चाहिए। उसे सच्ची जीवन साधना से ही ज्ञान की प्राप्ति होती है। इससे उसके

जीवन का भटकाव समाप्त हो जाता है। मन की चंचलता से मनुष्य विवेक के भाव से दूर होता जाता है और फिर पाप और पुण्य के अलावा धर्म अधर्म में भेद नहीं कर पाता है। इस प्रकार मन की चंचलता उसे जीवनपथ से भटकाव पर अग्रसर करती है।

कविता : धूल


विचार वीथिका : जीवन साधना संयम का नाम है... जीवन का भटकाव समाप्त हो जाता है। मन की चंचलता से मनुष्य विवेक के भाव से दूर होता जाता है और फिर पाप और पुण्य के अलावा धर्म अधर्म में भेद नहीं कर पाता है। #राजीव कुमार झा

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