आपके विचार

आखिर कब तक होता रहेगा साहित्यकारों का शोषण

साहित्यिक पत्र पत्रिकाओं का विमोचन के बाद कोई भी खरीददार नहीं है। हर कोई फ्री में पत्रिका चाहता हैं। पुस्तक पढने वाले अब पाठक कहां हैं। मोबाइल पुस्तकों को निगल गया है। यही वजह है कि आज श्रेष्ठ साहित्य का सृजन करना यानि भूखें मरना ही कहा जा सकता हैं।  #सुनील कुमार माथुर, जोधपुर (राजस्थान)

सच्चाई को हर रोज उजागर कर मैं लेखक बन गया फिर यही लेखन मेरा शौक बन गया। इतना ही नहीं अब तो यह पूरी तरह से मेरे दिलों दिमाग में छा गया दिन देखा न रात देखी हर दिन कलम चलाता रहा न जाने जीवन के 66 बसंत कब निकल गये और न जाने इन 66 वर्षों में कितना लिख डाला। हर रोज सच्चाई को उजागर किया। हर रोज जमकर कलम चलाई। पत्नी की फटकार सुनी। उसकी खरी खोटी सुनी।

लाला हरिश्चन्द्र की औलाद बन कर और मुंशी प्रेमचंद बनकर केवल घर फूंक तमाशा ही देखा। हर किसी ने तुम्हारी लेखनी का जमकर फायदा उठाया पुरस्कार व सम्मान के नाम पर आनलाईन प्रमाण पत्रों से क्या पेट भर पायेगा। पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित ये कविताएं, आलेख, साक्षात्कार, पुस्तक समीक्षाएं क्या ये ही तुम्हारी जमा पूंजी हैं। क्यों दिमाग पर जोर डालकर लेखन करते हो क्या दिया इस लेखन ने, कभी यह गम्भीरता से सोचा हैं।

पत्र पत्रिकाओं में लेख लिखने से कभी किसी का पेट नहीं भरता हैं। पेट भरने व जीवन की आवश्यकताओं व जरुरतों को पूरा करने के लिए धन दौलत चाहिए। आज के वक्त में जीवन में उसी व्यक्ति की इज्जत है जिसके पास पैसा, गाडी, बंगला और तमाम ऐशो आराम का सामान हैं। लेखकों को पूछने वाला आज इस समाज में कोई नहीं है। चूंकि हर कोई आज मोबाइल और व्हाट्सएप पर पूरी तरह से निर्भर हैं। नतीजन साहित्य आज अटाला कहा जा रहा है।

साहित्यिक पत्र पत्रिकाओं का विमोचन के बाद कोई भी खरीददार नहीं है। हर कोई फ्री में पत्रिका चाहता हैं। पुस्तक पढने वाले अब पाठक कहां हैं। मोबाइल पुस्तकों को निगल गया है। यही वजह है कि आज श्रेष्ठ साहित्य का सृजन करना यानि भूखें मरना ही कहा जा सकता हैं। सम्पादक मंडल से मिलने वाला मानदेय, लेखकीय प्रति, श्रेष्ठ लेखन का प्रमाण पत्र तक अब लेखकों को मिलना बंद हो गया हैं, तब भला ऐसे श्रेष्ठ साहित्य लेखन की ज्योति कैसे जलती रहेगी।

सम्पादक मंडल कहता है कि उठाओ कलम और लिख दीजिए मन की बात और हमें भेज दीजिए, लेकिन मिला क्या ठन ठन गोपाल। उन्होंने तो आपके लेखन से अपने अपने पृष्ठ रंग दिये और तुम्हारे जैसे साहित्यकार भूखों मरने के कगार पर आ गये। आखिर कब तक साहित्यकारों का शोषण होता रहेगा। कौन उनकी सुध लेगा।


Advertisement… 


Advertisement… 

One Comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: Devbhoomi Samachar
Verified by MonsterInsights