तुलसीदास की रामकथा से सबको सदाचार की प्रेरणा मिलती है…!
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भारत के गांवों में तुलसीदास के रामचरितमानस का पाठ परायण की सदियों पुरानी परंपरा आज भी जीवित दिखाई देती है और अयोध्या को रामकथा की उद्गम भूमि के रूप में देखा जाता है। मध्य काल के मुस्लिम शासकों ने यहां भी मंदिर विध्वंस और रक्तपात से इस पावन भूमि की गरिमा को ठेस पहुंचाई। #राजीव कुमार झा
रामायण के कवि वाल्मीकि को संसार का महान कवि कहा जाता है और उन्होंने रामकथा में भारतीय समाज संस्कृति और जनजीवन की व समग्रता का सुंदर संजीव और सरस चित्रण किया है। भारत की समस्त भाषाओं में फिर रामकथा की रचना हुई और हिंदी में तुलसीदास का रामचरितमानस इनमें काफी प्रसिद्ध ग्रंथ माना जाता है।
साहित्य संस्कृति का प्रतिबिम्ब माना जाता है और इस दृष्टि से तुलसीदास के इस महान ग्रंथ में राम और रावण के रूपक के माध्यम से तुलसीदास मध्यकालीन भारत के विषय सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक परिवेश में धर्म, नीति,आचार विचार और जीवन मूल्यों के परिप्रेक्ष्य में तत्कालीन संस्कृति और सभ्यता से संवाद करने वाले हिंदी के प्रथम महाकवि हैं।
हिंदी कविता रस परंपरा के अपने प्रवाह में शुरू से जीवन की भावाभिव्यंजना में इसके समग्र तत्वों को अपने प्रतिपाद्य में समेटती रही है और इस दृष्टि से मानवीय धरातल पर तुलसीदास की रामकथा अपनी उदात्तता में सबके मन-प्राण को अभिभूत करती है। हिंदी आलोचना की परंपरागत धारा केचिंतकों का मत है कि तुलसीदास हिंदी की लोकभाषा अवधी में रामकथा पर आधारित अपने ग्रंथ रामचरितमानस की रचना करके समाज के सारे लोगों को लोकधर्म के महान आदर्शों की ओर उन्मुख कर रहे थे.
उनके संदेश आज भी प्रासंगिक हैं। आधुनिक युग की विषमता में तुलसीदास ने महात्मा गांधी की जीवन चेतना को भी गहराई से अभिभूत किया था और गांधी जी ने देश में कल्याणकारी शासन और विधान की अपनी परिकल्पना के रूप में रामराज्य का आदर्श तुलसीदास के रामचरितमानस से ही ग्रहण किया था। जार्ज ग्रियर्सन ने तुलसीदास को लोकनायक कहा है।
भारत के गांवों में तुलसीदास के रामचरितमानस का पाठ परायण की सदियों पुरानी परंपरा आज भी जीवित दिखाई देती है और अयोध्या को रामकथा की उद्गम भूमि के रूप में देखा जाता है। मध्य काल के मुस्लिम शासकों ने यहां भी मंदिर विध्वंस और रक्तपात से इस पावन भूमि की गरिमा को ठेस पहुंचाई।
यहां हिन्दू धर्मावलंबी दीर्घ काल से प्राचीन राममंदिर को तोड़ कर निर्मित मस्जिद को हटाकर मंदिर निर्माण की मांग करते रहे और हम सबका यह चिर प्रतीक्षित यह सपना साकार हो रहा है। इसके साथ हमें राम के जीवन चरित्र से भी सीख लेनी चाहिए और धर्म ज्ञान वैराग्य के साथ सहिष्णुता कर्म नैतिकता को जीवन में अपनाकर भ्रष्टाचार जातिवाद घृणा और विद्वेष पर आधारित वर्तमान जीवन संस्कृति का विरोध करना चाहिए।
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