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कर्मवीरों ने पहाड़ से लिया लोहा

ज्यों-ज्यों दिन बीतते रहे फंसे श्रमिकोंं के परिजनों व अंदर फंसे श्रमिकों एवं बाहर उनके परिजनों के साथ-साथ अन्य लोगों के दिलों की धड़कनें बढ़ती रही। राज्य व केंद्र सरकार, बचाव दलों के पुरजोर प्रयास व देवभूमि के देवी-देवताओं के आशीर्वाद से सभी श्रमवीरों को सकुशल सुरंग से बाहर निकालने में मिली सफलता वास्तव में वाही-वाही के लायक है। #ओम प्रकाश उनियाल

उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के सिलक्यारा-डंडालगांव निर्माणाधीन सुरंग के एक हिस्से में जब भू-धंसाव हुआ तो उसमें कार्य कर रहे 41 श्रमिकों के फंसने से अफरा-तफरी मच गयी थी। सुरंग ढहने पर कई सवाल हर तरफ से उठने लगे थे। लेकिन इसके कारण का जवाब किसी के पास नहीं था। फंसे श्रमिकों को बचाने की चिंता सबको पहले थी। घटना घटने की सूचना पाते ही शासन-प्रशासन ने प्राथमिकता के आधार पर पहले सुरंग में फंसे श्रमिकों को बाहर निकालने का निर्णय लिया।

राहत एवं बचाव कार्य में लगे तमाम दलों के 16 दिन के अथक प्रयासों से आखिरकार 17वें दिन सभी 41श्रमवीरों को सकुशल, सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया। घटना 12 नवंबर 2023 को सुबह के वक्त घटी। सूचना मिलते ही एसडीआरएफ, एनडीआरएफ, प्रशासन, पुलिस, एनएचआईडीसीएल आदि दल राहत एवं बचाव कार्य के लिए घटनास्थल पर पहुंचे। बचाव एवं राहत कार्य तत्काल तो शुरु तो किया गया लेकिन बार-बार कई प्रकार की अड़चनें बचाव दलों के सामने आने लगी।

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से लेकर प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, रेलमंत्री आदि भी स्थिति का जायजा एवं जानकारी लेते रहे। 12 नवंबर को जब देश में दीपावली का त्योहार मनाया जा रहा था तब उत्तरकाशी जिले की सिलक्यारा टनल में फंसी 41 जिंदगियां बाहर निकलने के लिए आतुर थी। बचाव दलों को हर तरह के तमाम प्रयासों के बावजूद भी असफलता ही हाथ लगती रही। हालांकि, बाद में टनल में फंसे श्रमिकों को पाईप के माध्यम से ऑक्सीजन, खाना, पानी, दवाईयों इत्यादि की व्यवस्था की जाती रही।

श्रमिकों से बातचीत के जरिए हर समय बराबर संपर्क बनाए रखा गया। उन्हें जल्द बाहर निकालने का आश्वासन सबकी तरफ से दिया जाता रहा। पल-पल उनकी कुशल-क्षेम पूछी जाती रही। दिन बीतते रहे बचाव दलों के सामने अड़चनें आती रही लेकिन कर्मवीरों ने हिम्मत नहीं हारी। अपना आत्मविश्वास बनाए रखा। सुरंग में फंसे श्रमवीरों ने भी अपने मनोबल को डिगने नहीं दिया। बाहर निकाले जाने के आश्वासन उनकी उम्मीद जगाते रहे।

आधुनिक मशीनें भी जब क्षतिग्रस्त होती रही तब अन्य विकल्पों का सहारा लिया गया। पहाड़ी के ऊपर से भी हॉरिजेन्टल ड्रिलिंग की गयी। तथा परंपरागत पद्धति ‘रैट माइनिंग’ का प्रयोग किया गया। जो कि कामयाब रही। श्रमिकों को बाहर निकालने के लिए राज्य से लेकर केन्द्र सरकार तक ने जिस प्रकार की पूरी ताकत झोंकी हुई थी उससे हरेक की आशा बलवती हो रही थी। फंसे श्रमिकों व बचाव दलों की सुरक्षा का भी पूरा ख्याल रखा रखा जाता रहा।

ज्यों-ज्यों दिन बीतते रहे फंसे श्रमिकोंं के परिजनों व अंदर फंसे श्रमिकों एवं बाहर उनके परिजनों के साथ-साथ अन्य लोगों के दिलों की धड़कनें बढ़ती रही। राज्य व केंद्र सरकार, बचाव दलों के पुरजोर प्रयास व देवभूमि के देवी-देवताओं के आशीर्वाद से सभी श्रमवीरों को सकुशल सुरंग से बाहर निकालने में मिली सफलता वास्तव में वाही-वाही के लायक है।

 


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