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देश अमीर लेकिन नागरिक गरीब क्यों : राणा

देश अमीर लेकिन नागरिक गरीब क्यों : राणा, जनता के चुने हुये प्रतिनिधि और सरकारी अधिकारी व कर्मचारी अपने दायित्वों को ठेंगा दिखा न केवल राजसत्ता का ही बल्कि व्यक्तिगत-पारिवारिक स्तर पर भी भरपूर मजा लूटने में अभ्यस्त हैं। # सतीश राणा, बाम बिचारक

देश राजनीतिज्ञ एक बार वोटों की वैतरणी पार कर चुनाव जीत येन-केन-प्रकारेण सत्ता हासिल कर ले और सरकारी कर्मचारी एक बार किसी तरह शीर्ष पद पर नियुक्ति भर पा जाएं फिर तो वे जैसे देश के और जनता के मालिक ही बन जाते हैं, वी.आई.पी. बनकर विशेष सुख-सुविधाओं के हकदार, कानून से ऊपर और जनता से अलग विशिष्ट वर्ग के व्यक्ति बनते ही जैसे सारा प्रशासन प्राथमिक रूप से उनकी सुख-सुविधाओं के लिए ही बन जाता है।

इसी विशिष्ट वर्ग मनोभावना के तहत मुफ्तखोरी करने, शासन का व्यक्तिगत-पारिवारिक सुविधाओं के लिए प्रयोग करने, अनैतिक सिफारिश करने, नौकरी दिलाने, ट्रांसफर पोस्टिंग कराने, भाई-भतीजावाद को बढ़ावा देने आदि के रास्ते अपनाने की जो प्रवृत्ति शुरू होती है वह दल के सिद्धांतों और मानवीयता को दरकिनार कर भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी, कमीशन खोरी, धोखाधडी करने आदि के चक्रव्यूह में इतना ज्यादा उलझा देती है की वहाँ न केवल राजनीति को सफेदपोश अपराधियों का जमावड़ा बना देती है।

बल्कि अपराधियों को संरक्षण दे गरीबों के हक भी मरवा देती है, जिन योजनाओं का लाभ गरीबों को मिलना चाहिए उससे गरीब और पात्रता रखने वाले लोग वंचित रह जाते हैं लेकिन विज्ञापन में योजना गरीबों के हितार्थ ही नज़र आती है। देश की अर्थव्यवस्था दुनिया की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के साथ दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ने वाली इकोनॉमी में शामिल है। भारत विश्व की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश बना है और इसके आगे अब अमेरिका, चीन, जापान और जर्मनी हैं।

उसके बावज़ुद देश में अमीर और गरीब की खाई दिन-व-दिन बढ़ती गयी अभी और बढती जा रही है वर्तमान भारत की परिस्थितियाँ अत्यन्त जटिल एवं विकट रूप धारण कर चुकी हैं। आजादी के 75 सालों बाद कागजों में कुछ और धरातल पर कुछ और की इस परिपाटी के चलते ही न तो गरीबी मिट सकी और न ही अन्नदाता किसान खुशहाल हो सका। जनता के सेवक नेतागण और सरकारी अफसरों के तालमेल से सर्बभाव सुखाय की भावना के चलते सरकारी कामों में ईमानदारी, प्रतिबद्धता और जनता के प्रति लगाव अपवाद स्वरूप ही रहा।

जनता के चुने हुये प्रतिनिधि और सरकारी अधिकारी व कर्मचारी अपने दायित्वों को ठेंगा दिखा न केवल राजसत्ता का ही बल्कि व्यक्तिगत-पारिवारिक स्तर पर भी भरपूर मजा लूटने में अभ्यस्त हैं। जिसने भी भारत में राज किया है वे देश के स्वाभिमान को गिरवी रखने में भी नहीं सरमाते। इन लोगो ने हमेशा यहां के लोगों को क्षणिक सुविधाओं का लालच देकर, बेकार की योजनाओं में उलझाकर बेवकूफ बनाया। शासन करने वालों ने लोगों को बहकाने का भी काम किया है। इसमें खैरात देने से लेकर बेकार की सब्सिडी देना भी शामिल है।

कुल मिलाकर भ्रष्टाचार और राजनीति में अपराधीकरण की बीमारी से निपटने के लिए जो नीतिगत खामियां और प्रशासनिक लापरवाही है, उससे निजात पाने का कोई सार्थक संघर्ष जनता [मतदाताओं] के बीच कभी दिखा ही नहीं, यही कारण है की जनता बेहाल रही और ये नेता अफसर खुशहाल होते चले गए , ऐसे मे न्यायपसंद जनवादी लोगो का चाहिए कि ऐसी हरामखोर ब्यवस्था से निजात दिलवाने वाले उन संघर्षो का साथ दे जो सही मयाने मे ब्यवस्था परिवर्तन कर समतामुलक समाज की स्थापना चाहते हैं।


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देश अमीर लेकिन नागरिक गरीब क्यों : राणा, जनता के चुने हुये प्रतिनिधि और सरकारी अधिकारी व कर्मचारी अपने दायित्वों को ठेंगा दिखा न केवल राजसत्ता का ही बल्कि व्यक्तिगत-पारिवारिक स्तर पर भी भरपूर मजा लूटने में अभ्यस्त हैं। # सतीश राणा, बाम बिचारक

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