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इस अव्यवस्था का ज़िम्मेदार कौन?

इस अव्यवस्था का ज़िम्मेदार कौन? जब कोई गरीब मरता है तो किसी को कानों-कान खबर नहीं होती। लेकिन अगर किसी एक्सीडेंट में किसी अमीर के कुत्ते को भी चोट आ जाए तो हर्जाना भरना… ✍🏻 प्रेम बजाज, जगाधरी ( यमुनानगर)

इस अव्यवस्था का ज़िम्मेदार कौन? जब कोई गरीब मरता है तो किसी को कानों-कान खबर नहीं होती। लेकिन अगर किसी एक्सीडेंट में किसी अमीर के कुत्ते को भी चोट आ जाए तो हर्जाना भरना... प्रेम बजाज, जगाधरी ( यमुनानगर)अक्सर सुनते हैं कि रोड़ एक्सीडेंट में कोई ना कोई मारा गय, किसी को ट्रक कुचल गया, किसी को बस कुचल गई और कभी फुटपाथ पर कोई कार वाला कार चढ़ा ले गया। जब कोई गरीब मरता है तो किसी को कानों-कान खबर नहीं होती। लेकिन अगर किसी एक्सीडेंट में किसी अमीर के कुत्ते को भी चोट आ जाए तो हर्जाना भरना, विक्टिम पर केस भी दर्ज किया जा सकता है।

ख़ैर… दरअसल हम बात इन्हीं एक्सीडेंट से रिलेटेड कर रहे हैं , कि क्या कोई जानता है इन रोज़मर्रा के एक्सीडेंट का ज़िम्मेदार कौन है। इन एक्सीडेंट का ज़िम्मेदार सरकार या अन्य लोग भी उस बाईक चालक या कार,बस, इत्यादि वालों को या शराब पीकर गाड़ी चलाने को ही ज़िम्मेदार ठहराते हैं। लेकिन हर एक्सीडेंट के पीछे ये सच्चाई नहीं होती।

माना कि सरकार ने बहुत से ब्रिज बनवाए, अधिकतर शहरों से बाहर ही हाई-वे बनाकर शहर का क्राउड कम किया, सड़कें भी काफी हद तक चौड़ी और नई बनाई हैं। सड़कें बनाई तो दी, लेकिन क्या सड़कें सुव्यवस्थित ढंग से है, अर्थात सड़कों को सुव्यवस्था है। कहने का तात्पर्य यह है कि क्या हर सड़क पर स्ट्रीट लाइट्स हैं? क्या हर चौराहे से पहले स्पीड ब्रेकर था रिफ्लेक्टर हैं?

क्या हर चौराहे पर लाल, पीली और हरी बत्ती अर्थात ट्रेफिक सिग्नल लाईट्स हैं? क्या हर चौराहे पर ट्रेफिक हवलदार तैनात हैं? नहीं! तो फिर उन हाई-वे और सड़कों को बड़ा बनाने का क्या फायदा। क्योंकि जितनी सड़क स्मूद होगी , चौड़ी होंगी व्हिकल उतना ही तेज़ रफ़्तार से चलेगा। अगर स्पीड ब्रेकर नही तो कम से कम रिफ्लेक्टर तो हों, जिससे आती हुई गाड़ी को दूर से अंदेशा हो जाए कि वहां कुछ अवरोधक हो सकता है, इसलिए स्पीड कम करनी चाहिए।

लेकिन अधिकतर देखा गया है कि ना स्पीड ब्रेकर, ना ट्रेफिक सिग्नल लाईट्स, ना ही कोई ट्रेफिक हवलदार चोराहे पर होता है, जो कि हादसे का कारण बन जाता है। अम्बाला कैंट में जनरल अस्पताल ( जो कि मल्टीस्पेशलिट अस्पताल है, अर्थात जहां जनरल ओ.पी. डी. से लेकर केंसर तक का इलाज किया जाता है ) के गेट से सामने ही अक्सर एक्सीडेंट होते रहते हैं। एक गेट के बिल्कुल सामने ही तिराहा अर्थात तीन तरफ को जाता रास्ता एवं दूसरे गेट के सामने चौराहा अर्थात चार तरफ मुड़ती हुई सड़कें हैं।



जिस पर ना तो कोई सिग्नल लाईट्स हैं, ना ही स्पीड ब्रेकर है, और ना ही वहां पर कोई ट्रेफिक पुलिस है। बेशक अस्पताल के एक गेट के पास ही पुलिस का केबिन रखा हुआ है, लेकिन जिसमें पुलिस का कोई भी व्यक्ति नज़र नहीं आता। 17 फरवरी को रात के करीब 10 बज कर 50 मिनट पर हम अस्पताल के गेट से बाहर निकलते हैं और बड़ी मुश्किल से सड़क पार करके दूसरी ओर चाय पीने के लिए जाते हैं.



(क्योंकि अस्पताल में कोई केंटीन या चाय तक की एक छोटी सी रेहड़ी तक नहीं,इतना बड़ा अस्पताल जहां हज़ारों पेशेंट हैं, जिसके लिए हर पेशेंट के साथ कम से कम दो लोग तो होंगे ही, उनको बाहर सड़क पार जाना होता है, जिसमें जोखिम भी बहुत है )



हम बैठे चाय पी रहे थे कि अचानक से जैसे पहाड़ टूटा ऐसी आवाज़ के साथ सामने आग के गोले से दिखे। हमने देखा एक बुलेट को एक कार ने इतनी ज़ोर से टक्कर मारी कि बुलेट बीच में से दो टूकड़े हो गई और कार का आगे का हिस्सा डेमेज हो गया। बुलेट सवार दोनों लड़कों को उसी समय अस्पताल के अन्दर ले जाया गया जहां उन्हें सिरियस बता कर चंडीगढ़ पी.जी.आई. रैफर किया गया। उससे कुछ दिन‌ पहले भी एक मोटरसाइकिल सवार को एक ट्रक काफी दूर तक घसीटता चला गया, जो कि ट्रक के पहिए नीचे कुचला गया।



जब रात को ये हादसा हुआ तो अगले दिन‌ सुबह 11 बजे के बाद वहां पर दो पुलिस वाले तैनात दिखे जो कि केवल चालान काट रहे थे या किसी को रोक कर अपनी जेब भरने का जुगाड़ कर रहे थे। लेकिन दो दिन बाद फिर पुलिस वहां से गायब नज़र आई। यहां तक कि अम्बाला सिविल अस्पताल से लेकर यमुनानगर की तरफ आते हुए थाना छप्पर तक हर चौराहे का यही हाल है। और इसी तरह से ही कई जगह और भी देखा गया है।



वहां आगे आकर टोल टैक्स बैनर बना है, लेकिन वहां पूरा स्टाफ है, ताकि टोल पूरा वसूल हो। जहां जनता से पूरा टैक्स वसूल करना सरकार का हक है तो उस जनता की सुरक्षा सरकार का फ़र्ज़ नहीं? केवल सड़कें चौड़ी कर देने से कुछ नहीं होगा, उन‌ सड़कों पर सिग्नल लाईट्स, स्पीड ब्रेकर अवश्य होने चाहिए। इन सब एक्सीडेंट्स का ज़िम्मेदार कौन‌ है? क्या सड़क पर स्पीड ब्रेकर ना होना इस एक्सीडेंट का ज़िम्मेदार नहीं?



क्या उस चौराहे पर सिग्नल लाईट्स नहीं होनी चाहिए थी? क्या उस चौराहे पर जहां अधिक आवाजाही है, कोई ट्रेफिक पुलिस मेन नहीं होना चाहिए? हमारे देश का सिस्टम इतना ढीला क्यों है? क्या कोई कभी अपनी जिम्मेदारी समझेगा?

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