आपके विचार

पहले और आज के जीवन में अन्तर

सुनील कुमार माथुर

पहले के जीवन में और आज के जीवन में भारी अन्तर आया हैं । पहलें हर इंसान दिल से खुश था चूंकि रियायती दर पर हर सुविधाएं उपलब्ध थी । मूलभूत सुविधाएं जन – जन तक पहुंचाने के लिए प्रशासन व सरकारें सजग व सतर्क रहती थी राशन की दुकानों पर गेहूं के अलावा चावल , दालें, घी – तेल , कपडा , शक्कर , केरोसीन आदि – आदि चीजें पर्याप्त मात्रा में मिलती थी जिसके कारण बाहर दुकानों से सामान कम ही खरीदना पडता था । राशन की दुकानें भी समय पर पूरे महिने खुली रहती थी । चाहे माल हो या न हो ।

रिश्ते पवित्र होते थे । मजबूत होते थे और भरोसेमंद । हर व्यक्ति मेहनतकश था । बडे भाई के कपडे छोटे होने पर छोटा भाई उन्हें हंसते मुस्कुराते पहन लेता था । किताबे हर साल नहीं बदलती थी और एक बार खरीदी पुस्तकों से कई बच्चे पढ लेते थे । संयुक्त परिवार था और परिवार की आर्थिक स्थिति मजबूत थी । रिश्तेदारों का आना – जाना लगा रहता था और उनके आने पर सब मिलकर बेहद आनंद उठाते थे ।

हर कोई सेवाभावी व्यक्ति था । चेहरा देखकर पता लगा लेते थे कि अमुक व्यक्ति परेशानी में हैं और चुपके से उसकी मदद कर दी जाती थी और किसी को कानों कान कोई खबर नहीं पडती थी । लेकिन आज रात – दिन व जमीन व आसमान का अन्तर आ गया हैं । आज रियायती दर पर कुछ भी नहीं मिलता हैं । आज हर वस्तुओं के दाम इतने बढे हुए है कि खरीदते समय ऐसा लगता हैं कि हम ब्लैक में खरीद रहे हैं ।

आज मूलभूत सुविधाएं पाना आसमान के तारे तोडने के समान हो गया हैं । चूंकि न तो प्रशासन व न ही केन्द्र व राज्य सरकारों में जन कल्याण की भावना हैं । प्रशासन बेबस हैं चूंकि उनके पास जन कल्याण के कार्यों के लिए कोई अधिकार नहीं है । उनके हाथ बंधे हैं और वो अपनी तरफ से कोई भी पंगा लेने की स्थिति में नहीं हैं । भीतर ही भीतर सरकारी कानून कायदों से वह भी परेशान हैं लेकिन करे तो क्या करें ।

राशन की दुकानें अब एक सपना हो गया हैं । आज की युवापीढ़ी तो जानती भी नहीं है कि यह कौन सी दुकाने हैं चूंकि आज केवल बी पी एल परिवार ही जानता हैं कि राशन की दुकानें किसे कहते हैं । आज के रिश्ते भी स्वार्थ के हो गये हैं जिन्हें हम समाज क्या कहेगा बस इस लाज शर्म के मारे जबरन निभा रहें है । ऐसे रिश्तों में किसी भी प्रकार की खुशी , आनंद व स्नेह का भाव नहीं है जो कि होना चाहिए । बस मात्र एक औपचारिकता निभा रहें है ।

आज प्रकाशक सरकारों व निजी स्कूलों के साथ साठगांठ कर अधिक मुनाफा कमाने के चक्कर में हर वर्ष पाठ्यक्रम बदल रहे हैं । हर रोज बदलती बेहुदी फैशन के चक्कर में आज बडे भाई के छोटे हुए कपडे छोटा भाई पहनने से इंकार कर रहा हैं । नतीजन व्यापारी वर्ग इसका बेजा फायदा उठा रहे हैं और मंहगी पाठ्य पुस्तकें व कपडे बेच रहें है ।

राशन की दुकानों से आज आम जनता को कुछ भी नहीं मिल रहा है जिसका लाभ व्यापारी व बिचौलिए उठा रहें है और मनमाने दामों में खाध सामग्री बेच कर रातों रात लखपति व करोडपति बन रहें है और जनता गरीब होती जा रही हैं । आज सेवाभावी लोग भी सेवा कम और पब्लिसिटी ज्यादा कर रहें है जिसके चलते जरूरतमंद कई परिवार ऐसे हैं जो ऐसे लोगो से सामग्री लेने से कतराते हैं चूंकि वे उन्हें आवश्यक सामग्री देते हुए फोटो साथ में खिंचते है ।

आज संयुक्त परिवार खंडित हो रहें है और वे आर्थिक दृष्टि से भी कमजोर हो रहें है चूंकि कृत्रिम मंहगाई ने जनता का सुख चैन छिन लिया हैं । यहां तक की पानी , बिजली , चिकित्सा, शिक्षा , आवास का भी संकट पैदा कर दिया हैं । आज हालात यह हैं कि सब्जियों व सलाद के बीच से नीम्बू तक गायब हो गया व केन्द्र व राज्य सरकारे हाथ पर हाथ धरे बैठी हैं । क्या जनता को इससे भी बुरे दिन देखने पडेगे ।

मूलभूत सुविधाओं से आज आम आदमी वंचित होता जा रहा हैं । व्यक्ति की आमदनी चार आने हैं व खर्चा दो रूपये हो गया हैं । उसका वेतन बढाने के लिए सरकार को फुर्सत नहीं है । जनता के लिए हर वक्त खजाना खाली है । कर्मचारियों का वेतन भले ही सरकार ने न बढाया हो , लेकिन मंहगाई बढाकर जनता को येन केन प्रकारेण फुटपाथ पर जरूर ले आई हैं ।

केन्द्र व राज्य सरकारें मंहगाई के मामले में चुप है मौन हैं चूंकि उन्होंने पूंजीपतियों व बिचौलियों को छूट दे रखी हैं कि जनता-जनार्दन को जमकर लूट लो चूंकि चुनावों के राजनैतिक दलों को चुनाव लडने के लिए चंदा ये लोग ही तो देते हैं । बस पहले और आज के जमाने में यही अन्तर हो गया हैं । जनता करे भी तो क्या करें।


¤  प्रकाशन परिचय  ¤

Devbhoomi
From »

सुनील कुमार माथुर

लेखक एवं कवि

Address »
33, वर्धमान नगर, शोभावतो की ढाणी, खेमे का कुआ, पालरोड, जोधपुर (राजस्थान)

Publisher »
देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड)

6 Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: Devbhoomi Samachar
Verified by MonsterInsights