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युद्ध भी धरती और पर्यावरण के लिए घातक

ओम प्रकाश उनियाल

आज समूचे विश्व में प्रदूषित होते पर्यावरण व जलवायु परिवर्तन से होने वाले खतरों की बात तो की जाती है लेकिन इसके लिए जिम्मेदार कौन हैं इस पर न तो कभी गहन चर्चा की जाती है और यदि की भी जाती है तो अमल में नहीं लायी जाती। पर्यावरण दूषित होने का एक नहीं बल्कि अनेकों कारण हैं।

प्रदूषण का भी एक प्रकार नहीं है। वायु, जल, ध्वनि आदि कई प्रकार का प्रदूषण इस धरती पर फैलता ही जा रहा है। धरती पर तरह-तरह का प्रदूषण फैल रहा है तो स्वभाविक है कि जलवायु परिवर्तन होगा ही। जिसकी वजह से तरह-तरह की आपदाएं भी घटित हो रही हैं। ऋतुओं का संतुलन बिगड़ रहा है।

मनुष्य धरती, आकाश व पानी को अपने काबू में करके यह साबित करना चाह रहा है कि उससे बड़ा शक्तिशाली कोई और नहीं है। मगर जब प्रकृति की मार उस पर पड़ती है तो विनाश की लीला से धरती पर उथल-पुथल मच जाती है।

आए दिन मनुष्य परिणाम भुगत भी रहा है। फिर भी चेत नहीं रहा है। विश्व में एक तरफ चैन-अमन का माहौल खत्म होता जा रहा है। दूसरी तरफ प्रकृति की मार से मनुष्य के अलावा अन्य प्राणी भी जूझते रहते हैं।

जिन देशों में युद्ध छिड़ता है तो वहां की धरती गोला-बारुद से पूरी तरह बर्बाद हो जाती है। पर्यावरण बुरी तरह प्रभावित होता है। ताजा उदाहरण रूस व यूक्रेन के बीच का युद्ध दो माह से छिड़ा हुआ है। यूक्रेन की धरती बुरी तरह बारूद के थपेड़े सह रही है। गाजा, सीरिया, अफगानिस्तान के युद्ध भी ज्यादा पुराने नहीं हैं। हिरोशिमा के बारे में तो सबने सुना ही होगा।

यही कारण है कि युद्ध भी धरती के लिए सबसे अधिक घातक हैं। वैसे भी सैन्य-प्रशिक्षण में भी न जाने कितना गोला-बारूद इस धरती में समा जाता है। जिसका कुप्रभाव ही तो पड़ता है धरती और पर्यावरण पर । यह तो स्वीकारना ही पड़ेगा कि धरती को विनाश की तरफ धकेलने वाला मनुष्य ही है।


¤  प्रकाशन परिचय  ¤

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ओम प्रकाश उनियाल

लेखक एवं स्वतंत्र पत्रकार

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कारगी ग्रांट, देहरादून (उत्तराखण्ड) | Mob : +91-9760204664

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देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड)

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