चुनाव से पहले…!
ओम प्रकाश उनियाल (स्वतंत्र पत्रकार)
चुनाव से पहले राजनितिक दलों में एक-दूसरे पर तरह-तरह के आरोप-प्रत्यारोप लगाने का सिलसिलसिला शुरु होता है। जमकर भड़ास निकाली जाती है। विकास कार्यों में हुए भ्रष्टाचार की पोल-पट्टी खोली जाती है। यहां तक कि कई नेता तो एक-दूसरे का चरित्र प्रमाणित करने में भी नहीं चूकते।
दल-बदलुओं की सक्रियता बढ़ जाती है चुनावी मौसम में। अवसरवादिता का भरपूर फायदा उठाने वाले हिसाब-किताब लगाकर दलों को परखते हैं, ताकि उस दल में उनका पदार्पण आसानी से हो सके। गली-कूचे के छुट्टभैए नेता से लेकर बड़े नेता तक ताक में रहते हैं अवसर का फायदा उठाने की ।
जिसका फायदा राजनीतिक महत्वकांक्षा पाले हुए खूब उठाते हैं। ऐसे भी कर्मठ नेता होते हैं जो कि जिस दल में शामिल रहते हैं उसकी बुराई बिल्कुल नहीं सुनना चाहते। दल में चाहे उनकी खास अहमियत हो न हो, कोई उन्हें भाव दे या न दे लेकिन चुनाव आते ही वे दल का झंडा-डंडा लेकर इस कदर समर्पित हो जाते हैं कि जैसे सारा भार दल ने इन्हीं के कंधों पर थोप रखा हो।
जब दल के झंडे व बैनर लगाने की होड़ चलती है तो कई बार एक-दूसरे के बैनर, झंडे उतारने व फाड़ने में घमासान होने की नौबत आने के दृश्य भी देखने को मिलते हैं। मान-मनोव्वल से लेकर सिर फुटव्वल की प्रक्रिया जारी रहती है।
नए-नए दलों का गठन चुनाव से पहले होने लगता है या जिन दलों की कोई अहमियत ही नहीं वे भी अपने-अपने दल के प्रत्याक्षी चुनावी रणभूमि में उतारने की घोषणा करने में पीछे नहीं रहते । दलों में जिसे टिकट नहीं मिला उसकी राजनीतिक महत्वकांक्षा इतनी जाग्रत होती है कि निर्दलीय होकर चुनाव लड़ने की तैयारी में जुट जाता है।
कुर्सी पर बैठने की लालसा में अनेकों निर्दलीय भी चुनाव लड़ने की ताल ठोकने में पीछे नहीं रहते। जीत गए तो वाह-वाह, नहीं जीते तो भी वाह-वाह। ये भी कई प्रकार के के होते हैं। कुछ वोट काटने वाले, कुछ ले-देकर मैदान से हट जाने वाले । तो कुछ अपने आप की पहचान बनाने वास्ते।
जिससे वे अपने आगे पूर्व प्रत्याशी का ठप्पा लगवा सकें। चुनाव से पहले राजनैतिक दलों का घोषणाओं, शिलान्यासों, सौगातों और रैलियों का जो दौर चलता है वह काफी दिलचस्प होता है । मतदान तो करना ही पड़ेगा। हरेक को मतदान करना भी चाहिए। निष्पक्ष मतदान। स्वच्छ छवि का जन-प्रतिनिधि ही चुनकर भेजना चाहिए।
जो आम जन की आवाज उठा सके। राजनीतिक दलों एवं राजनीति करने वालों के बीच तो हर चुनाव से पहले यह हलचल होती ही रहती है। ऐसी गरमाहट न हो तो चुनाव के प्रति मतदाताओं का आकर्षण कम हो जाएगा। मतदाताओं को रिझाना भी जरूरी है। चुनावी खेला चुनाव की रंगत फीकी नहीं पड़ने देता।
¤ प्रकाशन परिचय ¤
From »ओम प्रकाश उनियाललेखक एवं स्वतंत्र पत्रकारAddress »कारगी ग्रांट, देहरादून (उत्तराखण्ड)Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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