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कला अनमोल है, बस नजरिया श्रेष्ठ होना चाहिए : माथुर

(देवभूमि समाचार)

कला एक अनमोल रत्न की तरह हैं । इसको मूल्यों से नहीं आंका जा सकता हैं अपितु कला के प्रति देखने वाले की नजरे श्रेष्ठ होनी चाहिए साथ ही साथ सकारात्मक सोच भी होनी चाहिए तभी देखने वाला कलाकार की कला के साथ सही ढंग से न्याय कर पायेगा । यह उद् गार बाल चित्रकार निमित्त माथुर ने साहित्यकार सुनील कुमार माथुर के साथ एक साक्षात्कार में व्यक्त किये।

मिकाडो इंटरनेशनल स्कूल उदयपुर के छात्र निमित्त माथुर ने बताया कि व्यक्ति को किताबी ज्ञान के साथ ही साथ प्रकृति का ज्ञान भी जानना चाहिए चूंकि जैसी आपकी सोच होगी वैसा ही आपकों समाज नजर आयेगा । अतः जीवन में सदैव सकारात्मक सोच रखनी चाहिए।

कला की कोई कीमत नहीं होती है अपितु वह अपने आप में अनमोल रत्न की तरह होती हैं । उसे देखने के लिए एक जौहरी जैसी पारखी नजर होनी चाहिए । माथुर ने कहा कि एक श्रेष्ठ कलाकार व श्रेष्ठ साधक के मन और मस्तिष्क हर वक्त समुद्र मंथन करते रहते हैं तब कहीं जाकर सकारात्मक सोच के साथ एक सुंदर चित्र ( कला ) उभरता हैं और उस चित्र में छिपे भाव को व्यक्ति भिन्न-भिन्न नजरिये , सोच व तरीके से देखता हैं और उसका जैसा नजरिया होता हैं वैसा ही उसे उस चित्र ( कला ) में नजर आता हैं ।

अतः व्यक्ति को अपना दृष्टिकोण व अपनी सोच को सदैव सकारात्मक रखना चाहिए । आपकी श्रेष्ठ सोच होगी तभी आप कलाकार की सुंदर कलाकृति , चित्र व पेंटिंग के साथ सही ढंग न्याय कर पायेंगे और आपकी प्रशंसा के दो बोल ही कलाकार की सर्वश्रेष्ठ व अमूल्य पूंजी हैं जिसे वह सहज कर रखता हैं । चूंकि सराहना के बोल कम ही बोले जाते हैं जबकि खामियों के ढेर लगा दिये जाते हैं ।

कहने का तात्पर्य यह है कि आप किसी को प्रोत्साहित नहीं कर सकते हैं तो कोई बात नहीं लेकिन किसी को हतोत्साहित करके उसका मनोबल तो मत तोडिये । कला का वरदान बहुत कम लोगों को ही मिलता हैं यानि जिन्हें ऐसा वरदान मिलता है वे भाग्यशाली लोग ही होते हैं । अतः कलाकार व उसकी कला का सम्मान करना सीखें । उन्हें प्रोत्साहन दीजिए ताकि वे अपना हुनर और भी अच्छे तरीके से निखार सकें।

News Source : सुनील कुमार माथुर (33 वर्धमान नगर, शोभावतो की ढाणी, खेमे का कुआ, पालरोड, जोधपुर, राजस्थान)

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