शब्दों की माला
शब्दों की माला… हां वह लोगों से चर्चा, विचार विमर्श कर और दुनियां को देख कर नये नये विचारों और शब्दों का संकलन जरूर करता है और उन्हें अपने जीवन में आत्मसात करता हैं। इतना ही नहीं फिर इन शब्दों को अपनी लेखनी के जरिए जन जन तक पहुंचाने का कार्य करता है। #सुनील कुमार माथुर, जोधपुर, राजस्थान
साहित्यकार को पैसे का मोह नहीं होता हैं , यही वजह है कि वह गरीबी में जीवन यापन कर रहे हैं। मुंशी प्रेमचन्द ने भी बडे ही कठिन दिन देखे हैं तब फिर हम कैसे करोडपति बन सकते हैं। यहां भी कंगाली में आटा गीला ही हैं। दुनियां समझती है कि साहित्यकार के पास जैसे शब्दों का खजाना होता है वैसे ही नोटों का खजाना भी। लेकिन यह उनका भ्रम है। आज का साहित्यकार भी घर फूंक तमाशा देख रहा है।
हां वह लोगों से चर्चा, विचार विमर्श कर और दुनियां को देख कर नये नये विचारों और शब्दों का संकलन जरूर करता है और उन्हें अपने जीवन में आत्मसात करता हैं। इतना ही नहीं फिर इन शब्दों को अपनी लेखनी के जरिए जन जन तक पहुंचाने का कार्य करता है। जो समाज की एक तरह से उत्तम और लोक कल्याणकारी सेवा कही जा सकती है। इसके लिए वे धन्यवाद एवं साधुवाद के पात्र हैं।
पुष्प विक्रेता एक एक फूल को पिरोकर एक सुंदर माला बनाता हैं, ठीक उसी प्रकार एक रचनाकार एक एक सुंदर शब्दों का इस्तेमाल करते हुए व कडी से कडी जोडते हुए शब्दों की माला पिरोते हुए एक नवीन ज्ञानवर्धक, प्रेरणादायक और मनोरंजक रचना का नव निर्माण करता हैं जो समाज सेवा का निस्वार्थ भाव से किया गया लोक कल्याणकारी व मानवीय कृत्य हैं। तभी तो साहित्यकारो को समाज का सजग प्रहरी कहा जाता है जो एक एक श्रेष्ठ शब्दों का इस्तेमाल करते हुए सद् साहित्य का सृजन करता है। जो वंदनीय और सराहनीय कार्य है।