धर्म-संस्कृति

यज्ञोपवीत संस्कार : आत्मीय पवित्रता

यज्ञोपवीत संस्कार : आत्मीय पवित्रता… जनेऊ की लंबाई 96 अंगुलका जनेऊ धारण करने वाले को 64 कलाओं और 32 विद्याओं को सीखने के लिए 32 विद्याएं चार वेद, चार उपवेद, छह अंग, छह दर्शन, तीन सूत्रग्रंथ, नौ अरण्यक है। #सत्येंद्र कुमार पाठक

सनातन धर्म एवं स्मृतियों के अनुसार यज्ञोपवीत संस्कार का महत्वपूर्ण उल्लेख मिलता है।यज्ञोपवीत संस्कार व उपनयन संस्कार में जनेऊ पहन कर विद्यारंभ होता है। मुंडन और पवित्र जल में स्नान संस्कार के अंग होते हैं। सूत से बना पवित्र धागा यज्ञोपवीतधारी व्यक्ति बाएँ कंधे के ऊपर तथा दाईं भुजा के नीचे पहनता है। यज्ञोपवीत एक विशिष्ट सूत्र को विशेष विधि से सात ग्रन्थित करके बनाया जाता है। ब्राह्मणों के यज्ञोपवीत में ब्रह्मग्रंथि होती है। तीन सूत्रों वाले इस यज्ञोपवीत को गुरु दीक्षा के बाद हमेशा धारण किया जाता है। तीन सूत्र सनातन त्रिमूर्ति ब्रह्मा, विष्णु और महेश के प्रतीक होते हैं। अपवित्र होने पर यज्ञोपवीत बदल लिया जाता है।

बिना यज्ञोपवीत धारण किये अन्न, जल ग्रहण नहीं किया जाता। पारस्कर गृहसूत्र ऋग्वेद 2/2/11 के अनुसार यज्ञोपवीत धारण करने के लिए यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं प्रजापतेर्यत्सहजं पुरस्तात्। आयुष्यमग्रं प्रतिमुंच शुभ्रं यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेजः।। छन्दोगानाम्:ॐ यज्ञो पवीतमसि यज्ञस्य तथा त्वोपवीतेनोपनह्यामि।। यज्ञोपवीत उतारने के लिए एतावद्दिन पर्यन्तं ब्रह्म त्वं धारितं मया। जीर्णत्वात्वत्परित्यागो गच्छ सूत्र यथा सुखम्।। का मंत्र क्या जाता है। जनेऊ को उपवीत, यज्ञसूत्र, व्रतबन्ध, बलबन्ध, मोनीबन्ध और ब्रह्मसूत्र के नाम से जाना जाता है। जिस लड़की को आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन करने के लिए जनेऊ धारण करती है। ब्रह्मचारी तीन और विवाहित छह धागों की जनेऊ पहनता है।

यज्ञोपवीत के छह धागों में से तीन धागे स्वयं के और तीन धागे पत्नी के लिए कहा जाता हैं। आध्यात्मिक कार्य के लिए जनेऊ में तीन-सूत्र: त्रिमूर्ति ब्रह्मा, विष्णु और महेश के प्रतीक तथा देवऋण, पितृऋण और ऋषिऋण के प्रतीक और सत्व, रज और तम के प्रतीक, तीन सूत्र गायत्री मंत्र के तीन चरणों के प्रतीक, आश्रमों के प्रतीक, जनेऊ के 9 तारों में एक मुख, दो नासिका, दो आंख, दो कान, मल और मूत्र के दो द्वारा मुख से अच्छा बोले और खाएं, आंखों से अच्छा देंखे और कानों से अच्छा सुनने का प्रावधान है। जनेऊ में पांच गांठ को प्रवर में ब्रह्म, धर्म, अर्ध, काम और मोक्ष का प्रतीक, पांच यज्ञों, पांच ज्ञानेद्रियों और पंच कर्मों का प्रतीक है।

जनेऊ की लंबाई 96 अंगुलका जनेऊ धारण करने वाले को 64 कलाओं और 32 विद्याओं को सीखने के लिए 32 विद्याएं चार वेद, चार उपवेद, छह अंग, छह दर्शन, तीन सूत्रग्रंथ, नौ अरण्यक है। 64 कलाओं में वास्तु निर्माण, व्यंजन कला, चित्रकारी, साहित्य कला, दस्तकारी, भाषा, यंत्र निर्माण, सिलाई, कढ़ाई, बुनाई, दस्तकारी, आभूषण निर्माण, कृषि ज्ञान आदि हैं। जनेऊ बाएं कंधे से दाये कमर पर पहनना चाहिए। मल-मूत्र विसर्जन के दौरान जनेऊ को दाहिने कान पर चढ़ा लेना चाहिए और हाथ स्वच्छ करके ही उतारना चाहिए। जनेऊधारक को मलमूत्र करने के बाद खुद को साफ करना है इससे इंफेक्शन का खतरा कम से कम हो जाता है।

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शरीर में कुल 365 एनर्जी पॉइंट होते हैं। कान के नीचे वाले हिस्से (इयर लोब) की रोजाना पांच मिनट मसाज करने से याददाश्त बेहतर होती है। पढ़नेवाले बच्चों के लिए बहुत उपयोगी है। भूख कम करनी है तो खाने से आधा घंटा पहले कान के बाहर छोटेवाले हिस्से (ट्राइगस) को दो मिनट उंगली से दबाएं। भूख कम लगेगी। यहीं पर प्यास का भी पॉइंट होता है। निर्जला व्रत में लोग इसे दबाएं, तो प्यास कम लगेगी।उपयोग: डिप्रेशन, सिरदर्द, चक्कर और सेंस ऑर्गन यानी नाक, कान और आंख से जुड़ी बीमारियों में राहत। दिमागी असंतुलन, लकवा और यूटरस की बीमारियों में असरदार बुरे स्वप्न आने की स्थिति में जनेऊ धारण करने से ऐसे स्वप्न नहीं आते, जनेऊ के हृदय के पास से गुजरने से यह हृदय रोग की संभावना को कम करता है.



क्योंकि इससे रक्त संचार सुचारू रूप से संचालित होने लगता है। जनेऊधारक को दांत, मुंह, पेट, कृमि, जीवाणुओं के रोगों से बचाती है।जनेऊ को दायें कान पर धारण करने से कान की नस दबती है, जिससे मस्तिष्क की कोई सोई हुई तंद्रा कार्य करती है।दाएं कान की नस अंडकोष और गुप्तेन्द्रियों से जुड़ी होती है। मूत्र विसर्जन के समय दाएं कान पर जनेऊ लपेटने से शुक्राणुओं की रक्षा होती है। कान में जनेऊ लपेटने से मनुष्य में सूर्य नाड़ी का जाग्रण होता है। कान पर जनेऊ लपेटने से पेट संबंधी रोग एवं रक्तचाप की समस्या से बचाव है।जनेऊ यानि दूसरा जन्म पहले माता के गर्भ से दूसरा धर्म में प्रवेश है।



उपनयन यानी ज्ञान के नेत्रों का प्राप्त होना, यज्ञोपवीत यज्ञ-हवन करने का अधिकार प्राप्त होना।जनेऊ धारण करने से पूर्व जन्मों के बुरे कर्म नष्ट हो जाते हैं। जनेऊ धारण करने से आयु, बल, और बुद्धि में वृद्धि होती है। जनेऊ धारण करने से शुद्ध चरित्र और जप, तप, व्रत की प्रेरणा मिलती है। जनेऊ से नैतिकता एवं मानवता के पुण्य कर्तव्यों को पूर्ण करने का आत्म बल मिलता है। जनेऊ के तीन धागे माता-पिता की सेवा और गुरु भक्ति का कर्तव्य बोध कराते हैं।यज्ञोपवीत संस्कार बिना विद्या प्राप्ति, पाठ, पूजा अथवा व्यापार करना सभी निर्थरक है।जनेऊ के तीन धागों में 9 लड़ होती है, फलस्वरूप जनेऊ पहनने से 9 ग्रह प्रसन्न रहते हैं।शास्त्रों के अनुसार ब्राह्मण बालक 09 वर्ष, क्षत्रिय 11 वर्ष और वैश्य के बालक का 13 वर्ष के पूर्व संस्कार होना चाहिये और किसी परिस्थिति में विवाह योग्य आयु के पूर्व करते हैं।


यज्ञोपवीत संस्कार : आत्मीय पवित्रता... जनेऊ की लंबाई 96 अंगुलका जनेऊ धारण करने वाले को 64 कलाओं और 32 विद्याओं को सीखने के लिए 32 विद्याएं चार वेद, चार उपवेद, छह अंग, छह दर्शन, तीन सूत्रग्रंथ, नौ अरण्यक है। #सत्येंद्र कुमार पाठक

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