आस्था विज्ञान का महापर्व मकर संक्राती-उत्तरैणी पर्व
भुवन बिष्ट
रानीखेत। हमारी भारत भूमि सदैव ही अपनी एकता अखण्डता के लिए विश्वविख्यात है वहीं विविधता में सदैव एकता की झलक भी यहाँ दिखाई देती है। देवभूमि उत्तराखण्ड अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए जाना जाता है वहीं देवभूमि आस्था परंपरा एंव त्यौहारों के लिए भी विश्वविख्यात है।
इस समय पूरा विश्व कोराना महामारी जैसे वैश्विक संकट से जूझ रहा है वही हमारे देश को भी इस महामारी ने संकट में अवश्य डाल दिया था किन्तु कोरोना की वैक्सीन आ जाने से एक नयी उम्मीद की किरण सभी के मन में जागृत हो गयी है।
फिर भी कोराना के कारण इस बार मकर संक्रांति उत्तरैणी पर होने वाले उत्सवों पर इसका असर अवश्य पड़ा है लेकिन सबसे पहले सुरक्षा आवश्यक है। त्यौहारों का अपना विशेष महत्व होने के साथ साथ ये समाज की एकता अखंडता को भी प्रदर्शित करते हैं।
मकर संक्राति का संबध प्रकृति,ऋतु परिवर्तन और कृषि से भी है । ये तीनों मानव जीवन का आधार हैं। प्रकृति के मुख्य कारक के रूप में मकर संक्राति पर सूर्य की आराधना व पूजा की जाती है।देवभूमि उत्तराखण्ड के बागनाथ की भूमि बागेश्वर में प्रसिद्ध उत्तैरायणी मेला लगता है, उत्तरायणी मेला पर्व संस्कृति व प्राचीन ईतिहास की कई अहम घटनाओं का साक्षी भी रहा है।
उत्तरैणी मेला ऐतिहासिक घटनाओं की भी गवाह रहा है। ब्रिटीश शासन काल में ही उत्तरैणी पर सरयू के तट पर कुली बेगार प्रथा का अंत किया गया था। यह प्रमुख ऐतिहासिक घटना की गवाह भी रही है भगवान बागनाथ की नगरी बागेश्वर। भगवान बागनाथ की कृपा से ही कुमाँऊं की सबसे अधिक लोकप्रिय प्रेमगाथा राजूला मालूसाही अमर एंव कुमाँऊं के ईतिहास में मील का पत्थर साबित हुई ।
मकर संक्राति पर गंगा स्नान का भी बड़ा महत्व है, इसी दिन ही पावन गंगा भगीरथ के पीछे पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर गंगा सागर में जा मिली थीं। इसलिए इस पर्व पर गंगा स्नान का सबसे बड़ा महत्व माना जाता है। इस दिन दान,तप,जप का विशेष महत्व होता है । मान्यता है कि सूर्य पूजा, दान से सूर्य देव की किरणों का शुभ प्रभाव मिलता है और अशुभ प्रभाव नष्ट हो जाते हैं। मकर संक्राति ऋतु परिवर्तन का भी प्रतिक है, यह धरती हमें अनाज देती है, जिससे पूरे जीव समुदाय का भरण पोषण होता है ।
प्रकृति ऋतु परिवर्तन कृषि ये तीनों ही प्राणी जीवन का आधार हैं । प्रकृति के कारक में इस उत्सव में सूर्य की पूजा की जाती है, जिन्हें शास्त्रों में भौतिक एंव अभौतिक तत्वों की आत्मा कहा जाता है । मकर संक्राति शिशिर ऋतु की विदाई और वसंत का आगमन के साथ अगहनी फसल के कट कर घर आने का भी प्रतिक है। मकर संक्राति का पर्व किसी न किसी रूप में मकर राशि से भी जुड़ा है, सूर्य का धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश का नाम ही ‘मकर संक्राति ‘ है।
मान्यता है कि धनु वृहस्पति की राशि है और सूर्य के धनु राशि में रहने पर मललास होता है, और इस समय मांगलिक कार्यो का आयोजन नहीं होता है, लेकिन सूर्य के इस राशि से मकर राशि में प्रवेश करते ही मललास समाप्त हो जाता है और मांगलिक कार्य आरंभ हो जाते है। कहा जाता है कि इस दिन से देवलोक का द्वार खुल जाता है । इस दिन से सूर्य की उत्तरायण गति आरंभ होती है और इसी कारण मकर संक्राति को ‘उत्तरायणी’ भी कहा जाता है।
पौराणिक गाथाओं के अनुसार इसी दिन भगवान विष्णु ने असुरों का अंत करके युद्ध समाप्ति की घोषणा की थी, उन्होंने सभी असुरों के सिरों को मंदार पर्वत में दबा दिया था । इसलिए मकर संक्राति को बुराईयों और नकारात्मकता को समाप्त करने का दिन भी माना जाता है। देवभूमि उत्तराखंड के कुमाँऊ में इस पर्व पर बच्चे बड़ो का आशीर्वाद लेते हैं और इन्हें गुड़ भेंट किया जाता है जो मिठास एंव एकता का प्रतिक है। घरों में आटे एंव गुड़ के मिश्रण से घुघुते बनाये जाते हैं । बच्चे घुघुतों की माला पहनकर कौवों को बुलाते हैं।
काले कौवा काले, घुघूती बौणा खाले।’
इस दिन कौवों को ‘घुघुते’ खिलाये जाते हैं। उत्तरैणी के पहले दिन गाँवों में बच्चे अपनी अपनी टोलियों के साथ जागरण, जगराता का भी आयोजन करते हैं और दूसरे दिन प्रातःकाल स्नान करके नये नये वस्त्र पहनकर बच्चे गाँव में घूूमकर अपने से बड़ों का आशीर्वाद लेते हैं। और बच्चों की टोलियों को गुड़ भेंट किया जाता है। फिर गुड़ आटे से घुघुते तैयार किये जाते हैं। अगले दिन प्रातःकाल बच्चे गले में घुघुतों की माला पहनकर कौओं को बुलाते हैं।
घुघुतिया पर्व मनाने की परंपरा चंद राजाओं के शासन काल में शुरू हुई। एक लोकगाथा के मुताबिक राजा कल्याण चंद के पुत्र निर्भय को मां बचपन में घुघुति कहकर पुकारती थी। राजा के मंत्री ने राज्य हड़पने की नीयत से घुघुति का अपहरण कर लिया। एक कौए के सहारे षड्यंत्र का राज खुल गया और राजा ने मंत्री के टुकड़े-टुकड़े करके कौओं को खिलाने के आदेश दिए। घुघुति के मिलने की खुशी में विशेष पकवान बनाकर कौओं को देने को कहा। लोकगाथा के अनुसार राजा कल्याण चंद की लंबे समय तक कोई संतान नहीं थी। बाद में भगवान बागनाथ की कृपा से उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई।
उनके इस पुत्र का नाम निर्भय चंद रखा गया। निर्भय चंद की मां प्यार से उसे घुघुति पुकारती थी। घुघुति को मोती की माला बहुत पसंद थी। जब भी घुघुति रोता था मां कहती- काले कौआ काले घुघुति की माला खाले… और बच्चे को डराती थी कि कौआ आएगा और तेरी माला ले जाएगा। मां के ऐसा कहने पर घुघुति चुप हो जाता था। धीरे- धीरे कौआ भी बच्चे को पहचानने लगा। इसी बीच राजा के मंत्री ने राज्य हड़पने की नीयत से षड्यंत्र रचकर बच्चे निर्भय (घुघुती) का अपहरण कर लिया।
कौआ बच्चे के गले की माला ले गया। इसी माला के सहारे राजा के सैनिक घुघुति के पास पहुंच गए और मंत्री के षड्यंत्र का भंडाफोड़ हो गया। राजा ने मंत्री को फांसी देकर उसके टुकड़े-टुकड़े कर कौओं को खिलाने के आदेश दे दिए। साथ ही पूरी प्रजा से विशेष पकवान बनाकर कौओं को खिलाने को भी कहा। मकर संक्राति का त्यौहार अपने आप में आस्था और विज्ञान का मेल है। उत्तराखंड में बागेश्वर की मान्यता ‘तीर्थराज’ की है।
भगवान शंकर की इस भूमि में सरयू और गोमती का भौतिक संगम होने के अतिरिक्त लुप्त सरस्वती का भी मानस मिलन है।नदियों की इस त्रिवेणी के कारण ही उत्तरांचलवासी बागेश्वर को तीर्थराज प्रयाग के समकक्ष मानते आये हैं ।यहां पर अनेक कर्मकांड, जनेऊं, धार्मिक संस्कार भी किये जाते हैं । स्कन्दपुराण के ही अनुसार मार्कण्डेय ॠषि यहाँ तपस्यारत थे । ब्रह्मर्षि वशिष्ठ जब देवलोक से विष्णु की मानसपुत्री सरयू को लेकर आये तो मार्कण्डेय ॠषि के कारण सरयू को आगे बढ़ने से रुकना पड़ा ।
ॠषि की तपस्या भी भंग न हो और सरयू को भी मार्ग मिल जाये, इस आशय से पार्वती ने गाय और शिव ने व्याघ्र(बाघ) का रुप धारण किया और तपस्यारत ॠषि से सरयू को मार्ग दिलाया । कालान्तर व्याघ्रेश्वर ही बागेश्वर बन गया । विष्णु की मानस पुत्री सरयू का स्नान पापियों को मोक्ष और सद्गति प्रदान करने वाला है । सरयू पापनाशक है ।
देवभूमि के बागेश्वर में उत्तरैणी का बहुत बड़ा मेला लगता है जो ऐतिहासिक, धार्मिक मान्यताओं को संजोये हुवे हैं । उत्तरैणी मेला प्रसिद्ध मेला है । त्यौहार धार्मिक स्थल आस्था के सबसे प्रमुख केन्द्र है। त्यौहार हमारी एकता अखंडता को भी प्रदर्शित करते हैं । आज संस्कृति सभ्यता परंपरा को संरक्षित करने के लिए सभी को प्रयासरत रहना चाहिए । जिससे आस्था और विज्ञान के अटूट मेल को संरक्षित किया जा सके। कोरोना से बचाव के उपाय सभी अपनायें, मास्क लगायें, दूरी बनायें और वैक्सीनेशन सभी करवायें। आओ जन जन को बचायें।
¤ प्रकाशन परिचय ¤
From »भुवन बिष्टलेखक एवं कविAddress »रानीखेत (उत्तराखंड)Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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